For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


जोन्ही भर के जोर पर, चिहुँकल छनकि अन्हार
ढिबरी भर के आस ले, मनवाँ सबुर सम्हार

रहि-रहि मन अकुतात बा, दुअरा लखन-लकीर 
सीता सहमसु चूल्हि पर, बाया-बाया पीर

दर-दर भटकसु रामजी, रावन बड़हन पेट
चहुँप अजोध्या जानकी, भइली मटियामेट

तुलसी देई पूरि दऽ, भाखल अतने बात
बंस-बाँस के सोरि पर, कसहूँ नति हो घात

हमरो राजाराम के, लछमन भइले लाल
अँगना-दुअरा-खेत पर, सहमत लागो चाल

*********************************************

(मौलिक व अप्रकाशित)

शब्दन के भावार्थ -

[जोन्ही - सितारे ; चिहुँकल - चौंकना ; छनकि - चट् से, छिनक कर ; अन्हार - अँधेरा ; सबुर - धीरज ; अकुताना - चंचल होना ; दुअरा - द्वार पर ; लखन-लकीर - लक्ष्मण-रेखा ; सहमसु - सहमती हैं ; चूल्हि - चूल्हा ; बाया-बाया - रोम-रोम ; पीर - दर्द, पीड़ा ; बड़हन - बहुत बड़ा ; चहुँप - पहुँच ; देई - देवी ; पूरि दऽ - पूरा कर दो ; भाखल -  भाखा हुआ, मनता माना हुआ ; अतने - इतना ही ; सोरि - जड़, मूल ; नति हो - मत हो ; घात - षड्यंत्र, आघात ; सहमत लागो चाल - मतैक्यता बनी रहे ]

Views: 2171

Replies to This Discussion

लाजवाब! मैंने पढ़ा और कई कई बार पढ़ा! देशज भाषा में इतनी सशक्त अभिव्यक्ति! निश्चित ही ये उदाहरण है हम सब के लिए और ऐसे उदहारण पेश करना आपके ही बस की बात है! 

आपको सादर नमन!

भाई बृजेशनीरजजी,
भोजपुरी भाषा अपने मूल रूप में बोली जाय तो उसके शब्दों का लालित्य मदमाती धार की तरह अनायास होता है. वाक्यों के प्रयुक्त शब्दों के उच्चारण में जो आरोह-अवरोह बनता है वह स्वर-लहरियों का ही आभास देता है. इच्छा होती है, बस उसके प्रवाह के साथ बहते जाइये ! और ऐसा सभी आंचलिक और समृद्ध भाषाओं के साथ है.

आपने जिस आत्मीयता और तल्लीनता से इन छंदों को सम्मान दिया है, वह आपकी संवेदनशीलता का ही परिचायक है. आपके अनुमोदन से मेरा रचनाकर्म सार्थक हुआ.
शुभ-शुभ

बूढ़ पुरनिया वाली कहानी जइसन आदरणीय ,बहुतै नीक लगा
भोजपुरी की पूरी मधुरता सामिल अहै //

बहुत ही सुन्दर दोहावली आदरणीय सौरभ जी //हार्दिक बधाई आपको //सादर 

:-)))))
अपना से तूं बाज ना अइबऽ... हा हा हा हा....

रचना को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाई
शुभ-शुभ

एक दम निक कहलs हs राम भाई, बुढ पुरनिया वाली कहानी !!! जय हो :-))))))))))

जय होऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ

एमे बाग़ी ना बोलिहें त के बोली ?  खूब नू मजा मीलल ! .. आहि याहि .. !! .. हा हा हा हा... 

तनिका आवे द आदरणीय के.. ऊहे तहार कपरछिल्ली करिहें.. :-))))))))))

हा हा हा हा हा.................

कपरछिल्ली कि चंडोला आदरणीय हहहह हाहाहा  

बचुआ कुछऊ कहु रे..   :-)))))

मतलब मांगमुड़ी से है..  हा हा हा हा...... 

मने कि, हम सोच-सोच के मारे दोबर हुए जा रहे हैं, बुक्का फारे.. दाँत चियारे .. .  जे, गनेसी भाई की मुड़ी भर मांग .. :-))))))

आ उस्तरा आदरणीय योगराज भाईजी के करकमलों में...   हा हा हा हा.. .

हा हा हा हा.... :-))))))))))))))))))))))

आदरणीय सौरभ जी 

बहुत सुन्दर दोहावली 

ग्रामीण जीवन की भावपूर्ण झलकियाँ प्रस्तुत की है आपने आदरणीय

आंचलिक शब्दों को बहुत लालित्यपूर्ण तरह से बांधा है... प्रवाह और माधुर्य देखते ही बनता है.

शब्द शब्द का अर्थ अर्थ जोड़ कर ही इन दोहों को समझ पा रही हूँ..अर्थ भी साथ में प्रस्तुत करने के लिए आभार

पहला दोहा बहुत पसंद आया... नन्हीं सी आस की किरण ही मन को सब्र देती है, आने वाले कल का दृढ़ आधार बन जाती है 

दूसरे दोहे में नारी पर सीमाओं की जकड़न और उसकी आतंरिक पीर को बहुत सजीवता से प्रस्तुत किया है

तीसरा दोहा भी बहुत मर्मस्पर्शी है.. रावण का बिम्ब आम आदमी द्वारा झेली जानी वाली जिस विकराल समस्या को प्रस्तुत करता है वह बहुत पसंद आया 

चौथा दोहा भी बहुत पावन शब्द चित्र है... जैसे अपनों की दुआओं में एक सुप्रवाहित चेतना को जीता है 

अंतिम दोहे में परिवार में परस्पर अटूट स्नेह का सुन्दर चित्र है 

इस उत्कृष्ट दोहावली के लिए साधुवाद आदरणीय 

सादर

आदरणीया,
यह अवश्य है कि भोजपुरी भाषा की महत्ता किसी अंचल मात्र की भाषा होने कारण नहीं है, बल्कि यह भाषा अपनी ठसक और अपने लालित्य दोनों के लिए जानी जाती है. कहना न होगा ऐसा आचरण और अन्य तीन भाषाएं ही निभाती दीखती हैं.. और उनमें से एक इसकी सहोदरा है, यानि, काशिका (बनारसी), तो दूसरी इसकी समभावी, यानि, अवधी.

भोजपुरी भाषा का इतिहास जुझारुओं का इतिहास रहा है. और इसके बाह्य और आंतरिक रूपों की प्रत्यक्ष भिन्नता और उनका प्रच्छन्न वैविध्य जानाकारों तक को चकित करता है.

प्रस्तुत दोहों के माध्यम से भोजपुरी भाषा के इसी आचरण को समक्ष लाने का प्रयास हुआ है.
आपने दोहा-प्रति दोहा संक्षिप्त भावार्थ प्रस्तुत कर मुझे एकदम से भावुक कर दिया है, कि, मेरा प्रयास सार्थक हुआ.
सादर
 

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

आपका हार्दिक अभिनन्दन, आदरणीय श्याम वर्माजी, कि आपको मेरे भोजपुरी दोहे पांद आये.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय, 'नूर साहब, ग़ज़ल लेखन पर आपके सिद्धहस्त होने से मैंने कब इन्कार किया। परम्परागत ग़ज़ल…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अजय अजेय जी,  आपकी छंद-रचनाएँ शिल्पबद्ध और विधान सम्मत हुई हैं.  सर्वोपरि, आपके…"
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"योग ****    छोटी छोटी बच्चियाँ, हैं भविष्य की आस  शिक्षा लेतीं आधुनिक, करतीं…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश जी अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई इस ग़ज़ल के लिए।  "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि शुक्ल भैया,आपका अलग सा लहजा बहुत खूब है, सादर बधाई आपको। अच्छी ग़ज़ल हुई है।"
Thursday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
Tuesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
Monday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service