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"इक तो तू  रोज दारू पीकर आता है, रोज समय से पहले भाग जाता है...और जो काम बताओ, उसे पूरा ही नहीं करता...ऐसा कर, कल से काम पे आना बंद कर..समझ !" रामेश्वर ने रोज रोज से तंगाकर गुस्से में कहा..

लखन ने बिना पछतावा किये, वहां से जाते हुए कहा..."अपने को क्या, सरकार इतना सस्ता राशन दे रही है, बच्चे स्कूल में दिन को खा ही आते है, घरवाली मजूरी करती ही है....अपनी बोतल...."

जितेन्द्र ' गीत '

( मौलिक व्  अप्रकाशित )

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 1, 2013 at 10:56pm

आदरणीय बृजेश जी, आपका बहुत बहुत आभार

सादर!

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 10:49pm

 सरकारी राहत पर अच्छा व्यंग है! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 1, 2013 at 10:16pm

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय माथुर साहब

सादर!

Comment by D P Mathur on October 1, 2013 at 9:04pm

आदरणीय जितेन्द्र जी बहुत सटीक व्यंग्य किया है आपने ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 16, 2013 at 11:32pm

यह सच है, जिन हालातों का लघुकथा में बयान किया है, बहुत हद तक सच्चाई ही है, आपका कहना भी सही है की सहायता से निकम्मापन

आ जाता है,

आपने रचना पर अपना अमूल्य समय दिया आपका बहुत बहुत आभार, आदरणीय शुभ्रांशु जी, स्नेह बनाये रखिये,

सादर!

Comment by Shubhranshu Pandey on September 16, 2013 at 5:47pm

आदरणीय जितेन्द्र जी, बहुत सुन्दर कथा है.

कभी कभी किसी की सहायता उसको जाहिल और निकम्मा बना देता है,

सहायता देने वाले को पता होना चाहिये कि उसके सहायता का प्रार्थी उसका उपयोग कैसे करता है. वर्ना जिस हालात का बयान आप कर रहे हैं वो एक सच्चाई है....

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2013 at 11:42pm

सच! कहा आपने, सामाजिक चेतना व् नैतिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है, आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण जी, आशीर्वाद बनाये रखिये

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2013 at 9:26pm

लघुकथा पर आपकी  कर्मठ, जुझारू व् सकारात्मक प्रतिक्रिया से, रचना को सार्थकता का प्रमाण मिलता है, आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश जी, आशीर्वाद व् स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2013 at 9:11pm

आपका कहना सही है, लखन जैसे लोग ही सरकारी व्यवस्था को कलंकित कर रहे है,

लघुकथा के शीर्षक हेतु आपका कहना स्वीकार करता हूँ, आपकी लेखनकर्म के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया ने मन में ख़ुशी व् आत्मबल दोगुना कर दिया, आपका बहुत बहुत आभार गीतिका जी,

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2013 at 8:32pm

आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया से अति मनोबल मिला, आपका बहुत बहुत आभार ,आदरणीय अरुण अनंत जी,

सादर!

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