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ग़ज़ल : सत्य लेकिन हजम नहीं होता

बह्र : २१२२ १२१२ २२

 

झूठ में कोई दम नहीं होता

सत्य लेकिन हजम नहीं होता

 

अश्क बहना ही कम नहीं होता

दर्द, माँ की कसम नहीं होता

 

मैं अदम* से अगर न टकराता

आज खुद भी अदम नहीं होता

 

दर्द-ए-दिल की दवा जो रखते हैं

उनके दिल में रहम नहीं होता

 

शे’र में बात अपनी कह देते

आपका सर कलम नहीं होता

 

*अदम = शून्य, अदम गोंडवी

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 14, 2014 at 8:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया Saurabh जी


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Comment by Saurabh Pandey on March 14, 2014 at 4:23pm

दर्द-ए-दिल की दवा जो रखते हैं

उनके दिल में रहम नहीं होता..

इस ग़ज़ल के मार्फ़त साझा हुए इस खास शेर को मैं अपना रहा हूँ, भाईजी.

इस कामयाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई..

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 12, 2014 at 9:03pm

बहुत बहुत धन्यवाद बृजेश  जी

Comment by बृजेश नीरज on March 2, 2014 at 6:56pm

वाह! बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2014 at 6:55pm

बहुत बहुत शुक्रिया Dr.Prachi Singh जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2014 at 6:54pm

आभारी हूँ बृजेश नीरज जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2014 at 6:54pm

बहुत बहुत शुक्रिया ram shiromani pathak जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2014 at 6:53pm

बहुत बहुत धन्यवाद गिरिराज भंडारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2014 at 6:53pm

बहुत बहुत शुक्रिया  जितेन्द्र 'गीत' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2014 at 6:53pm

बहुत बहुत धन्यवाद laxman dhami जी

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