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"शाह जी आज़ तीन-चार पूड़े (पुड़िया) वादु (अधिक) देना।" महिन्द्रा दबी आवाज में बोला।
"क्यों ज्यादा किस लिये?" सर्फुल्ला कुछ आशंकित हो गया।
"ओ शाहजी, पिंड दे कोलेज विच वी थोड़े मुन्डे होर सैट किते ने, नशे लई।"(गाँव के काॅलेज में भी कुछ लड़के और तैयार किये है नशे के लिये) महिन्द्रा इधर उधर देखकर बोला।
सर्फुल्ला हॅस कर बोला। "ओ लैजा।लैजा। बस धंधा चालु रख, किसी को छोड़ना नहीं।"
"हाँ शाहजी हाँ। पेला कंडा (पहला कांटा )ही स्टूडेंट युनियन दे प्रधान ते सुट्टया ऐ (फेका है)।" कहता हुआ महिन्द्रा जा चुका था।
और सर्फुल्ला के कानो में अपने बेटे की गूंजती आवाज उसके दामन तक पहुँचने वाली आग को महसूस करने लगी थी। "अब्बु। दो हजार काफी है, यूनियन लीडर हूँ आज पार्टी जमकर होगी।"
'विरेन्दर वीर मेहता' (मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 6, 2015 at 2:43pm

आदरणीय मितिलेश वामनकर भाई कथा पर आपके स्नेह भरे शब्दों के लिए बहुत बहुत आभार...

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 6, 2015 at 2:41pm

आदरणीय क्रिशन मिश्रा जी आपके प्रोत्साहित शब्दों के लिए तहे दिल से हार्धिक आभार !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 5, 2015 at 10:58pm

आदरणीय विरेन्दर वीर मेहता जी शानदार प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 7:44pm

वाह आग लगाने वाला गर ये सोचे के उसका अपना मकान भी जल सकता है तो ऐसी घटनाए हो ही ना शानदार प्रस्तुति पर बधाई आ० भाई वीर जी!

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