For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपेक्षा है तुझे....! (अतुकांत)

सब कुछ

है तेरा

तुझ पर, तेरे कारण ही

और तेरे ही लिए हैं

अपने दामन में पाले हैं तूने

समान, असमान भाव से 

कांटे भी, फूल भी

देव और दानव  

जल भी तेरा, थल भी

मरुस्थल और तेरे ही है पर्वत

तेरी ही नदियाँ

तेरा ही आश्रय है, सागर को

अश्विन से फाल्गुन तक

सिकुड़ती है,  तू

ज्येष्ठ की दहक में 

तपती और पिघलती रही

अथाह सहनशीलता है,  तुझमे

इस तरह सिकुड़ने और

पिघलने के बाद

बस!  एक अपेक्षा है तेरी

 

कोई बरस जाए तुझ पर

भर दे, तुझमें

इतनी तृप्ति और नमी 

कि, तू संतृप्त होकर

बिखेर दे सारे जहाँ में

खुशियाँ ही खुशियाँ

सर्वस्व है तू

फिर भी, हमेशा की तरह

इस वर्ष भी

अपेक्षा है तुझे...!

   जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

Views: 701

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2015 at 12:21am

आपकी विस्तृत स्नेहिल प्रतिक्रिया व् रचना की सराहना पाकर, बहुत संबल मिला ,आदरणीया कांता जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2015 at 12:19am

आदरणीय विजय जी, आपको कविता अच्छी लगी, लेखनकर्म सार्थक हुआ. आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2015 at 12:18am

आदरणीय समर साहब, कविता पर आपकी उपस्थिति व् सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by kanta roy on May 12, 2015 at 6:42pm
कोई बरस जाए तुझ पर
भर दे, तुझमें
इतनी तृप्ति और नमी 
कि, तू संतृप्त होकर
बिखेर दे सारे जहाँ में
खुशियाँ ही खुशियाँ....... पढकर मन भी तृप्त हुआ ..... इतने सुंदर भाव .... दिल खोल कर हृदय के समस्त भावों को मानों कागज पर उकेर दिया .... कागज भी संतृप्त हुई ... लेखन भी साकार हुआ .... बधाई
Comment by vijay nikore on May 12, 2015 at 4:41pm

आपकी लघु-कथा तो अच्छी लगती ही हैं, कविता भी अच्छी लगी।

Comment by Samar kabeer on May 12, 2015 at 10:29am
जनाब जितेन्द्र पस्टारिया जी ,आदाब ,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2015 at 12:28am

आदरणीय डा.विजय जी, रचना आपका आशीर्वाद पाकर, धन्य हुई. आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2015 at 12:26am

आदरणीय गिरिराज जी, अतुकांत पर आपकी स्वीकारोक्ति , मेरा मनोबल बड़ा रही है. आपकी सराहना के लिए ह्रदय से आभारी हूँ.यह अतुकांत मैंने लाइव महोत्सव अंक- ५५ में प्रस्तुति हेतु कोशिश की थी किन्तु नेट की समस्या रहते ,मैं प्रस्तुत नहीं कर पाया.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2015 at 12:21am

आदरणीय मनोज जी, रचना पर आपकी सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 11, 2015 at 10:40pm
सुन्दर , कल्याण की भावना से ओतप्रोत , बधाई, प्रिय जीतेन्द्र जी, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service