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छुटकारा / लघुकथा /कान्ता राॅय

बरसों से पति का शराब पीकर मारने की आदत सह रही थी वो , लेकिन कल रात उसका पीकर आने के बाद बेटी का हाथ पकडना अखर गया था ।

सुबह अंगीठी के साथ वह भी सुलगती रही.  क्षोभ , घृणा , मोह और कुंठाओं को सिलबट्टे पर बरसों से संचित आँखों का नमकीन पानी डाल - डाल कर जोर - जोर से पीसती जा रही थी । आज वह कुछ तय कर बैठी थी ।


कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by kanta roy on August 13, 2015 at 10:58am
कथा पर मेरा हौसला बढाने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय तेजवीर जी ।
Comment by TEJ VEER SINGH on July 17, 2015 at 10:39am

आदरणीय कांता जी,लघुकथा के माध्यम से नारी ह्रदय की मनोदशा का अच्छा चित्रण किया है!हार्दिक बधाई!

Comment by kanta roy on July 16, 2015 at 3:38pm
बहुत ही खूबसूरत विन्यास किया है आपने आदरणीय मिथिलेश जी । मै अभी तुरंत इसे एडिट करती हूँ । हृदय तल से आभार आपको इस उचित मार्गदर्शन के लिए ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 2:54pm

आदरणीया कांता जी, एक कटु सत्य को उजागर करती बेहद संवेदनशील लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

//सुबह अंगीठी के साथ वो भी सुलगती हुई सिलबट्टे पर सालों का क्षोभ , घृणा , मोह और कुंठाओं को बरसों सींचित नमकीन आँखों के पानी डाल - डाल कर जोर - जोर से पीसती जा रही थी ।//

इस पंक्ति के वाक्य विन्यास पर ध्यान चाहूंगा. 

सुबह अंगीठी के साथ वह भी सुलगती रही.  क्षोभ , घृणा , मोह और कुंठाओं को सिलबट्टे पर बरसों से संचित आँखों का नमकीन पानी डाल - डाल कर जोर - जोर से पीसती जा रही थी ।

सादर 

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