For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छाया वाद के अंतिम स्तम्भ आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री अब हमारे बीच नहीं रहे ...

उत्तर छायावाद के प्रवर्तक कवि आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री बृहस्पतिवार की रात साढ़े बजे अंतिम सांस लेते हुए सदा-सदा के लिए चिरनिद्र में सो गए। उनकी अंत्येष्टि शुक्रवार को दोपहर सकिंदरपुर घाट पर होगी। लगभग दो माह से बीमार चल रहे आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री दो सप्ताह पूर्व ही यहां के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) में स्वास्थ्य लाभ लेने के बाद वापस अपने घर 'निराला निकेतन' लौटे थे। आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री के निधन के साथ ही उत्तर छायावादी साहित्य और कविता की लगभग साढ़े नौ दशक से निरंतर कायम एक अध्याय का आज अंत हो गया। 1916 में गया जिले के मैग्राउर्फ मायाग्राम गांव मे एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री वर्ष 1939 में मुजफ्फरपुर संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत शिक्षक के रूप में आये और मुजफ्फरपुर के ही होकर रह गए थे। 5 जनवरी 1953 को संस्कृत महाविद्यालय से अवकाश ग्रहण कर शास्त्री जी ने राम दयालु सिंह महाविद्यालय में हिन्दी और संस्कृत विभागाध्यक्ष के रूप में अपना योगदान दिया और 1978 में यहां से अवकाश ग्रहण किया। अपने 96 वर्ष के उम्र तक पहुंचने के बाद भी आचार्य शास्त्री जी ने अपनी लेखनी को जारी रखा था। आचार्य शास्त्री ने 1938 में 'काकली' नामक संस्कृत काव्य संग्रह की रचना कर साहित्य जगत में अपनी अलग पहचान बनाई। लगभग 90 हिन्दी और संस्कृत में कविता, गीति नाटय़ महाकाव्य आदि पुस्तकों की रचना कर वे एक मूर्धन्य साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हो गए थे।

1935-1945 के बीच आचार्य शास्त्री ने 55 कहानियां भी लिखीं। इनके साथ ही उन्होंने कई पुस्तकों और पत्रिकाओं का संपादन भी किया। उन्होंने संस्कृत और हिन्दी की दर्जनों पुस्तकों की रचना की थी। इसके लिए उन्हें दयावती पुरस्कार, सवरेच्य प्रथम राजभाषा सम्मान, राजेन्द्र शिखर सम्मान, भारत-भारती सम्मान आदि पुरस्कारों से भी नवाजा गया। अचार्य शास्त्रीजी के निधन की खबर से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। उनके अंतिम दर्शन के लिए मुजफ्फरपुर के साहित्य प्रेमियों की भीड़ उनके आवास 'निराला निकेतन' में उमड़ पड़ी। जिनको कछु नहीं.. झा आजाद के मुख्यमंत्रित्व काल का है। शास्त्री जी को बिहार रत्न से सम्मानित किया गया था, एक लाख रुपये की सम्मान राशि के साथ। सम्मान समारोह में कही गयीं शास्त्री जी की दो पंक्तियां उनकी ईमानदार अभिव्यक्ति की साखी की नाई आज भी साहित्यप्रेमियों के बीच बारम्बार उद्धृत होती हैं- मैं आया नहीं हूं लाया गया हूं, खिलौने देकर बहलाया गया हूं। और तमाम पल्रोभनों को एक झटके-से नकारने की यह अदा जानकी जी की मौलिक अदा थी, इसे उन्होंने साबित किया बाद के दिनों में पद्मश्री सम्मान को ठुकराकर। साफ-साफ कहा कि मुझे इसकी जरूरत नहीं, नयी पीढ़ी को इसकी ज्यादा दरकार है। बेवजह नहीं कि जानकी बल्लभ शास्त्री से मिलने वालों को अचानक कबीर याद हो आते- चाह गई चिन्ता गई मनुवा बेपरवाह, जिनको कछु नहीं चाहिए वो ही शहंशाह। हिंदी साहित्य में छायावाद के अवसान के बाद जो रिक्तता आई थी उसकी भरपाई करनेवालों में बच्चन, नरेंद्र शर्मा, अंचल, दिनकर और नेपाली के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण नाम जानकी बल्लभ शास्त्री का भी था। शास्त्री जी का जाना इस मायने में हिंदी की एक गौरवशाली काव्य परंपरा के आखिरी स्तंभ का ढहना भी है। शास्त्री जी के साहित्यिक अवदान पर बहुत र्चचा हो चुकी है, बहुत अभी बाकी है। एक गद्यकार के रूप में उनके उपन्यास 'कालिदास' को और उनके संस्मरण 'एक असाहित्यिक की डायरी' को हिन्दी साहित्य का इतिहास सम्मान और श्रद्धा के साथ रेखांकित करता रहेगा। हिंदी समाज अगर आज हिंदी को साठ से ज्यादा उत्कृष्ट कृतियों का तोहफा देनेवाले जानकी बल्लभ शास्त्री का अनुग्रह जानता और मानता है तो यह सर्वथा स्वाभाविक है। मगर शास्त्री जी को अमरता प्रदान करते हैं उनके गीत जो सामान्य जन की जुबान पर लोकगीतों की तरह काबिज देखे जा सकते हैं। मेघगीत की इन पंक्तियों के जरिए उनके संपूर्ण काव्य-व्यक्तित्व की अनुगूंज हिंदी पट्टी में पाश्र्व संगीत की तरह लगातार बजती रही है और अनंत काल तक बजती रहेगी- 'ऊपर ऊपर पी जाते हैं जो पीने वाले हैं, कहते ऐसे ही जीते हैं जो जीनेवाले हैं'।

साभार : राष्ट्रीय सहारा

Views: 1548

Reply to This

Replies to This Discussion

मन बहुत दुखी हुआ जानकार...आचार्य जी के देहांत से देश को अपूर्णीय क्षति हुई है....

भगवन आचार्य की आत्मा तो शांति प्रदान करें...

साहित्य जगत ने एक बहुमूल्य रत्न खो दिया है जिसकी पूर्ति असंभव है, किन्तु काल के चक्र को कोई भी नहीं रोक सकता यही सत्य है | ईश्वर आचार्य जी की आत्मा को शांति प्रदान करे और उनके परिवार जन को इस विषम परिस्थिति को सहने की शक्ति |

दु:खद समाचार। आचार्य जी की आत्‍मा को परमात्‍मा स्‍वयं में समाहित करे। शोकसंतप्‍त परिवार को यह दु:ख सहन करने की शक्ति ईश्‍वर प्रदान करे।

९५ वर्ष की आयु तक साहित्य की अभूतपूर्व सेवा करने के पश्चात आज शाष्त्री जी का हमारे बीच न होना ,,,,
एक ऐसा प्रकाश पुंज विलोपित हो गया जिसकी क्षतिपूर्ति कोई नहीं कर सकता 
२६ जनवरी, २०१० को भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया किन्तु इसे 'मजाक' कहकर शास्त्रीजी ने अस्वीकार कर दिया।
शोक समाचार ने मन दुखी कर दिया
साहित्य वाचस्पति, 'विद्यासागर, 'काव्य-धुरीण 'साहित्य मनीषी जानकी बल्लभ शास्त्री जी को विनम्र श्रद्धांजलि....!!
ek hi satya hain mirtyu jise aana hi hain is satya ko sawikar to karna hi padega magar bahut bada nuksan huaa hain ista purty muskil hain bhagwan unke aatma ko santi de,
आपके शब्द स्वयमेव एक कालजयी हस्ती के प्रति श्रद्धासुमन है ! शत शत नमन है !!! दुखद समाचार !!!
बहुत दूख है, हिन्दी जगत के इस पुरोधा को खो देने का. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे.

 

श्री आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी,

 

भगवान आपकी  आत्मा को शांति दे

 

श्री आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी,

"""आपने इस लोक पर आने का अपना फर्ज बखूबी निभा दिए.

 अपनी अमिट  लेखनी से समाज में एक नई दिशा दे दिए...........,

आने वाले नए लोगो को आप से प्रेरणा मिलती रहेगी

बुझेगी ना कभी ओ लौ ,जो आप ने अपने तेज से  जलाई है , 

उसकी ज्योति हमेशा जलती रहेगी और उस ज्योति आभा में  साहित्य प्रकाशमय होता रहेगा .............

हम आपको खोकर जितने दुखी है ईस्वर  आपको पाकर उतना ही खुश हुवा होगा , 

भगवान आपकी  आत्मा को शांति दे

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service