For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपनी साँसें भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं

अपनी साँसे भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं,
बात इतनी सी मगर दिल से ये निकली ही नहीं |

दिल में आतिश है बहुत ये हुस्न बे जलवा नहीं
चाहता हूँ आग उसमें पर वो जलती ही नहीं |

शाम से शब ग़ैर की ज़ुल्फ़ों में जब करने लगे
रात ऐसी जो हुई फिर सुब्ह निकली ही नहीं |

जब तलक थे हमकदम, अपना सफ़र चलता रहा,
दरिया क़तरा जब हुवा, मंज़िल वो मिलती ही नहीं |

इस कदर रोया हूँ मैं आखें भी धुंधला सी गई,
आज कुछ बूँदे भी आँखों से निकलती ही नहीं |  

हर्ष महाजन

.
हर्ष महाजन
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1240

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on July 27, 2015 at 5:41pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सच कहा आपने | आप सब का आशीर्वाद यूँ ही बना रहे | दिली शुक्रिया ओबोओ मंच का जहां आप जैसे गुनुजनों से मुलाक़ात हुई |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 27, 2015 at 4:59pm

आदरणीय हर्ष जी संशोधन के बाद क्या खूब निखार आया है ग़ज़ल में. वाह वाह 

आदरणीय समर कबीर जी मेरे कहे के अनुमोदन के लिए और मिसरे में आपके सुझाए इस संशोधन "बात इतनी सी मगर दिल से ये निकली ही नहीं" को देखकर झूम गया हूँ क्योकि यही मिसरा मुझे भी सूझा था. चलिए आपके जैसा एक मिसरा तो सोचा. 

Comment by Harash Mahajan on July 27, 2015 at 10:08am

आदरणीय Rahul Dangi जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 27, 2015 at 8:13am
सुन्दर प्रयास हुआ है आदरणीय बस थोडा गुनीजनों की राय पर गौर किजिएगा
Comment by Harash Mahajan on July 26, 2015 at 8:44pm

आदरणीय Samar kabeer जी आपकी इस्लाह और इनायत से  गज़ल का आकार कुछ इस तरह हुआ है दिली शुक्रिया एक बार फिर |

...

अपनी साँसे भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं,
बात इतनी सी मगर दिल से ये निकली ही नहीं |

दिल में आतिश है बहुत ये हुस्न बे जलवा नहीं
चाहता हूँ आग उसमें पर वो जलती ही नहीं |

शाम से शब ग़ैर की ज़ुल्फ़ों में जब करने लगे
रात ऐसी जो हुई फिर सुब्ह निकली ही नहीं |

जब तलक थे हमकदम, अपना सफ़र चलता रहा,
दरिया क़तरा जब हुवा, मंज़िल वो मिलती ही नहीं |

इस कदर रोया हूँ मैं आखें भी धुंधला सी गई,
आज कुछ बूँदे भी आँखों से निकलती ही नहीं |  

हर्ष महाजन

Comment by Harash Mahajan on July 26, 2015 at 8:27pm

आदरणीय kanta roy जी आपकी इस हौंसिला अफजाई का मैं दिल से शुक्र गुज़ार हूँ | आपको मेरा पेश करदा इंतेखाब पसंद आया है  तो यूं समझिये मी मेहनत सफल हो गई | यकीन मानिए अपना ये इंतेखाब इस मंच पर प्रस्तुत करते हुए मैं डर रहा था कि शायद मैं अपने भाव आप सब तक पहुंचाने में कामयाब रहूँगा या नहीं | क्या कहूँ ---आपके इन खूबसूरत अलफ़ाज़ के लिए एक बार फिर से शुक्रिया |
उम्मीद करता हूँ आईंदा भी नज़रें इनायत होती रहेंगी |


साभार !!

हर्ष महाजन

Comment by Harash Mahajan on July 26, 2015 at 8:13pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत दिनों से आप सबकी कृतियों को देखा है उनके भाव समझने की भी बहुत कोशिश की है है ....मुझे बहुत ख़ुशी हुई के आपकी कलम से कुछ शब्द मेरी रचना पर उतरे | दिल से आभार व्यक्त कैसे करूँ समझ नहीं आता | ग़ज़ल आपको पसंद तो यकीन जानिये नेरी म्हणत सफल हुई और आपके मशवरे का आगे से ख्याल रखूंगा | गुजारिश है आप इसी तरह राह दिखाते हुए हौंसिला अफजाई करते रहिएगा  और नज़रें करम बनाये रखियेगा | बहुत बहुत शुक्रिया |

साभार


हर्ष महाजन

Comment by Harash Mahajan on July 26, 2015 at 8:06pm

आदरणीय Samar kabeer जी आपकी इस्लाह के लिए मेरे पास शब्द नहीं कि क्या कहूँ ..... दोष मुक्त करते हुए आपने इस नाचीज़ की  रचना  को मान दिया और इसके के ज़रिये बहुत कुछ दे दिया .... जिस तरह खोल कर हर चीज़ को समझाया है दिल तक पहुंची है..आपकी दी हर राय पर अगली रचना में ध्यान रखने की कोशिश करूंगा | आपसे  अनुरोध है अपना हाथ ऐसे ही बनाए रखियेगा , बहुत बहुत शुक्रिया |

साभार !!!

हर्ष महाजन

Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 2:18pm
मन को छूकर निकली है यह दर्द की लहर । हर पंक्ति हर शेर में एक कशिश सी है । क्या सुंदर अल्फाज़ सजाये है आपने अपने जख्में जिगर के कि सच ही लगा है
इस कदर रोया हूँ मैं, आँखें भी धुंधला सी गई,
आज चंद बूँदें भी आँखों से निकलती ही नहीं ...... वाह ! वाह ! ........ बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2015 at 12:05pm

आदरणीय हर्श भाई , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई । आदरणीय समर भाई की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर है , ख्याल कीजियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय यूफ़ोनिक अमित जी नमस्कार। ग़ज़ल तक आने तथा इस्लाह देने के लिए हार्दिक आभार ।आवश्यक…"
14 minutes ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर भाई सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवद । "
17 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय Rachna Bhatia जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें।  1 जिसकी…"
41 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। भाई अमित जी के सुझाव भी अच्छे हैं।…"
2 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"जी भाई  मैं सोच रही थी जिस तरह हम "हाथ" ,"मात ",बात क़वाफ़ी सहीह मानते…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"पाँचवें शेर को यूँ देखें वो 'मुसाफिर' को न भाता तो भला फिर क्योंकर रूप से बढ़ के जो रूह…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. रचना बहन, तर की बंदिश नहीं हो रही। एक तर और दूसरा थर है।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"कर्म किस्मत का भले खोद के बंजर निकला पर वही दुख का ही भण्डार भयंकर निकला।१। * बह गयी मन से गिले…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार बहुत अच्छा प्रयास तहरी ग़ज़ल का किया आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की…"
8 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service