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आदरणीय VIRENDER VEER MEHTA जी मेरे कहे के अनुमोदन से आश्वस्त हुआ हार्दिक आभार आपका
आ वीरेंद्र वीर मेहता जी आप की लघुकथा गजब की बनी है . इस में नफरत के बीजारोपण का सही चित्रण हुआ है. बधाई आप को.
निर्दयता की बुनियाद तो उसी दिन ही पड़ गयी थी, जिसे गलत संगत के ईंटो ने जेल का रूप दे दिया जिसकी कैद से छुटना बहुत मुश्किल था | सफल लघुकथा के लिए बधाई स्वीकारे आदरणीय वीरेन्द्र वीर मेहता जी |
वाह बहुत सुंदर रचना हुई आदरणीय वीर मेहता जी .जिस परवरिश की बुनियाद ही हिंसा पर रखी हुई हुई हो वहां प्रेम और भई चारे की फसल उगने से रही .
निःशब्द हूँ आपके द्वारा प्रदत विषय पर सशक्त लघु कथा की प्रस्तुति पर। अंतिम पंक्तियाँ ''इस गुनाह की बुनियाद तो उसी दिन पड़ गयी थी जिस दिन पहली बार मेरी गुलेल से जख्मी परिंदे की तड़प पर मेरी खुशी में शामिल हो आपने मेरी पीठ थपथपाई थी'' कथा का निचोड़ हैं जो विचारों में सिहरन पैदा करती हैं। इस अनमोल कृति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय VIRENDER VEER MEHTA जी।
वाह.... सुन्दर रचना पर आपने भी बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया दी है सर
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