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आदरणीया शशि बंसल जी , आपके अनुमोदन का आभार.
एक नई सोच लिऐ बहुत ही सुन्दर लघु कथा बनी है वीनय कुमार जी. ईस कथा के लिऐ बधाई स्वीकार करे.
बहुत बहुत आभार आदरणीय मदन लाल श्रीमाली जी..
लघुकथा : बुनियाद
"भईया ! अब बाबूजी और माँ तो रहे नहीं और आप भी मुंबई में ही सेटेल हो गए हैं, तो क्यों न गाँव वाला घर और जमीन बेच दी जाए ? मैंने छोटे से भी बात कर ली है वो भी तैयार है."
"न मुन्ना न ! वो मकान और जमीन तो बाबूजी की अंतिम निशानी है, हमें उसे संभाल कर रखना चाहिए."
"नहीं भईया ! हम दोनों को पैसे की जरुरत है, उस प्रोपर्टी की कीमत डेढ़ करोड़ मिल रही है हम तीनों को पचास-पचास लाख मिल जायेंगे."
"तो ठीक है तुम दोनों मुझसे पचास-पचास लाख ले लों और अपना हक छोड़ दो."
दो साल पहले की ये बातें मोहन के आँखों के सामने किसी चलचित्र की भांति तैर ही रही थी कि पीछे से पंडित जी की आवाज़ ने उनकी तन्द्रा भंग कर दी.
"आइये मोहन बाबू ! भूमि पूजन कीजिये, “कृष्ण मेमोरियल हॉस्पिटल” की बुनियाद रखी जा रही है."
(मौलिक व अप्रकाशित)
सराहना हेतु आभार आदरणीया कांता जी, दरअसल इसबार व्यस्तता के कारण कुछ लिख नहीं सका था, एकाएक प्लाट हिट किया और परिणाम सामने है.
प्रदत्त विषय पर बहुत अच्छी लघुकथा | आपकी रचना का इंतज़ार था और इंतज़ार का फल बेहतरीन मिला | बधाई इस लघुकथा पर.
बहुत बहुत आभार आदरणीय विनय कुमार जी, आप सभी से मिलने वाला प्रोत्साहन ही है जो इस बार मैं भाग ले सका.
सराहना और उत्साहवर्धन हेतु आभार आदरणीया शशी बंसल जी.
आ गणेश जी बागी जी ,बढ़िया लघुकथा हुई है ,हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया मीना पाण्डेय जी.
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