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ये अपनी भाषा की मिलावट से हुई ....आदत छूटती ही नहीं
का दीदी ??/हम समझे नाही
सादर नमन केके ??
भैया अपनी ही भाषा के रौ में लिख गये ..रौ मतलब धुन
"मम्मी ,मर्द न, पर भैया तो ..|"// इस वाक्य का क्या अर्थ है?..इसकी ब्याख्या कैसे करें हम ...हमें लगा इससे ही क्लियर हैं ....खैर देखते हैं कि कुछ और खुल के शब्द लिख सकते क्या जो समझ आये ..शयद ये बस हमे ही समझ आ रहा |
थोड़ी देर में ही काकी ने लौटकर अपनी सहमति की मुहर लगा दिया|
ऊपर से..जल्दबाजी में ध्यान न दिए |
बेजान से ज्यादा जानदार मोहरे चलाने में दिमाग लगाना पड़ता मालूम|"// ..दिमाक लगाना पड़ता हैं मालूम आपको
ये जल्दबाजी आज की नहीं, बहुत पुरानी है.
आभार आपका दिल से आद० _/\_सादर
आदरणीय सविता मिश्र जी आप की लघुकथा बहुत उम्दा होती यदि आप इस में थोड़ी सी कसावट और ले आती . लघुकथा में कथ्य और तथ्य दोनों है. बधाई आप को इस विषयानुरूप लघुकथा की सुंदर, सार्थक और बढिया प्रस्तुति के लिए.
आदरणीय भैया पूछ-पूछ के तो हारे कि ये कसावट लाये कैसे | समझ साहित्य लिखने की नहीं शायद बस कलम चलाते जाते | सादर _/\_ यदि आप इस कथा में मार्गदर्शन करें तो हमें ख़ुशी होगी |
आदरणीय सवितामिश्रा जी आप आ योगराज प्रभाकर जी की टिप्पणी अवलोकन करें.
शुक्रिया भैया
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