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लौट आओ साजन सावन के पहले - (अरुणेन्द्र मिश्र)

वो लम्हे विरह गीत न बन जाये

लौट आओ साजन सावन के पहले

पपिहा पीऊ पीऊ आवाज लगाये

पेडो पर पड गये झुले

कजरी लागे मोहे सौतन

बदरा की बुन्दे जलये तन मन

लगी है प्रित मेरी अब अशुअन से

लौट आओ साजन सावन के पहले

 

जोगन न बन जाये कही ये बिरहन

लौट आओ साजन सावन के पहले

 

 

मुख मलिन , जैसे काली बदरिया

पनघट पे ना रिझाये कोइ सवरिया

सुनी सुनी पडी है पुरी डगरिया

आंगन सुना, सुना भयॊ मेरे मन का भेद

 

जोगन न बन जाये कही ये बिरहन

लौट आओ साजन सावन के पहले

वो लम्हे विरह गीत न बन जाये

लौट आओ साजन सावन के पहले

- अरुणेन्द्र मिश्र

अप्रकशित और मौलिक

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2016 at 5:04pm

आदरणीय अरुणेन्द्र जी इस सुंदर गीत के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर बधाई के साथ 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 15, 2016 at 4:25pm
भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।कई स्थानों पर वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ भी हैं।और नीचे आपका नाम भी है! सादर
Comment by रामबली गुप्ता on May 14, 2016 at 11:29pm
भाई भाव तो बहुत सुंदर हैं किन्तु मात्राबंद और तुकांतता का निर्वाहन नही हो रहा। पुनः देखने का आग्रह है।

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