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तब मन मे बैराग्य हुआ

जब मेरे ही पूजित पाषाण ने

मेरा उपहास किया,

तब मन मे बैराग्य हुआ

 

जब पुल्लवित बसंत मे,

फ़ूलो ने भवरो का हास किया

तब मन मे बैराग्य हुआ

 

जब पुरवइआ के मंद झौको ने

मेरे कानो मे तेरे शब्दो का उच्चार किया

तब मन मे बैराग्य हुआ

 

जब दोनो हाँथ उठा मैने 

सपनो  उडान भरने का प्रस्ताव दिया

तब मन मे बैराग्य हुआ

 

जब संसार की सारी बेडिया तोड

 तेरी शरण मे भी बंन्धन ही पाया

तब मन मे बैराग्य हुआ

 

जब तुलसी की माला ले ,

तेरे नाम का सहस्र्त जाप किया

और

फिर भी अपने आप को अनुत्तरित ही पाया

तब मन मे बैराग्य हुआ

 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by arunendra mishra on May 14, 2016 at 6:27pm

आदरणीय, गुरुवरो , धन्यवाद , त्रुटियो हेतु छ्मा ..बहुत सामय से हिन्दी लेखनी एवंम पठ्ने  दोनो से दूर रहा , इसी का परिणाम त्रुटियो के रुप मे दिखाइ देता है..... आपके दिये सुझावो पर अमल का पुरा प्रयास करुन्गा

Comment by रामबली गुप्ता on May 7, 2016 at 7:43pm
आपके सुंदर भावों के सम्प्रेषण हेतु ही आपको बधाई बंधुवर किन्तु गेयता और प्रवाह के दृष्टिकोण से यह किसी भी प्रकार मुझे कविता या गीत प्रतीत नही होता। इससे बेहतर होता कि आप ने इसे अतुकांत लिखा होता। किन्तु आपका प्रयास और शब्द चयन सराहनीय है। कतिपय वार्तनिक दोषों को दरकिनार कर देखें तो भावों की सम्प्रेषणीयता का बेहतर प्रयास किया है आपने। इस दृष्टिकोण से आपको पुनः बधाई
Comment by Samar kabeer on May 6, 2016 at 11:00pm
जनाब अरुणेन्द्र मिश्रा जी आदाब,प्रस्तुति अच्छी लगी,बधाई स्वीकार करें,गुणिजनों की बातों पर अवश्य ध्यान दें ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 6, 2016 at 5:42pm
मेरी समझ में आपकी आयु के हिसाब से कविता बहुत अच्छी है . मेरा एक गीत है =
उसने यूँ ही कहा गीत रचता हूँ मैं , आप हैं कि मुझे आजमाने लगे
यह हुनर तो मिला है मुझे जन्म से मांजने में इसे पर जमाने लगे . स्नेह .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 6, 2016 at 12:47am

आदरणीय अरुणेन्द्र मिश्रा जी, संभवतः आपकी किसी पहली प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. यह भी अवश्य है कि प्रस्तुति तनिक समय चाहती है. वर्तनी और वाक्य विन्यास के साथ साथ कथ्य का स्पष्ट सम्प्रेषण भी अनिवार्य हुआ करता है. आप इस मंच पर पूर्व में प्रस्तुत हुई रचनाओं और पद्य की विभिन्न विधाओं पर उपलब्ध आलेखों का अवश्य लाभ लीजियेगा. सादर 

Comment by Sushil Sarna on May 5, 2016 at 1:25pm

आदरणीय  arunendra mishra    जी बहुत सुंदर और भावपूर्ण सृजन हुआ है। आदरणीय शाब्दिक दोष प्रवाह में बाधक हैं तथा प्रस्तुति के प्रभाव को क्षीण कर रहे हैं। इस  प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर। 

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