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कि जब तुम लौट कर आओगे::एक स्मृति

हौसला टूट चुका है, अब यकीन कहीं जख्मी बेजान मिलेगा,
कि जब तुम लौट कर आओगे तो सब वीरान मिलेगा ll

वो बरगद का पेड़ जहां दोनों छुपकर मिला करते थे,
वो बाग जहां सब फूल तेरी हंसी से खिला करते थे,
वो खिड़की जहां से छुपकर तुम मुझे अक्सर देखा करती थी,
वो गलियां जो हम दोनों की ऐसी शोख दिली पर मरती थीं,
वो बरगद,वो गलियां, वो बाग बियाबान मिलेगा,
कि जब तुम लौट कर आओगे……………l

खेत-खलिहान तक तुमको बंजर मिलेगा,
मेरी दुनिया का बर्बाद मंजर मिलेगा,
ख्वाबों के लहू और लाशें मिलेंगी,
और तुम्हारी जफाओं का खंजर मिलेगा,
तबाहियों का ऐसा पुख्ता निशान मिलेगा,
कि जब तुम लौट कर आओगे…………ll

यहां जो हंसता मुस्कुराता मेरा आशियाना था,
जिसके हर ज़र्रे में बस तुम्हारा ठिकाना था,
ये शहर जो मेरे साथ मुस्कुराया करता था,
मेरे साथ तुम्हारे बाजुओं में बिखर जाया करता था,
वहां उजड़ा हुआ शहर, खंडहर सा इक मकान मिलेगा,
कि जब तुम लौट कर आओगे…… I

तुम आओ तो शायद ना मिलें ये बाग बहारें,
ये शहर मिले ना मिलें मेरे घर की दीवारें,
तुम बहार थी मैं फूल था मैं अब नहीं खिलूं,
के जब तुम लौट कर आओ तो शायद मैं नहीं मिलूं,
मगर कंधे पर अपनी लाश ढोता एक इंसान मिलेगा,
कि जब तुम लौट कर आओगे…………ll

(मालिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 17, 2016 at 8:39pm

आनंद सागर जी ---आपके भावों की सराहना करता हूँ . वाक्य विन्यास भी अच्छा है पर कविता एक ही मीटर में हो तो प्रभावी बनती  है , वह मीटर कोई  छंद हो सकता है या आप स्वयं अपना मीटर बना सकते हैं . शुभ शुभ .

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 17, 2016 at 9:15am
भावनात्मक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय ।
Comment by Samar kabeer on August 16, 2016 at 11:08pm
जनाब आनंद सागर पांडे जी आदाब,पहली बार आपकी किसी प्रस्तुति से गुज़र रहा हूँ ,कविता में आपके भाव बहुत अच्छे हैं लेकिन कसावट की कमी साफ़ महसूस हो रही है, इस भावनात्मक प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें ।

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