आदरणीय साथिओ,
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वाह वाह !! बहुत बढ़िया लघु कथा , बधाई स्वीकारें , आ0 अपराजिता जी ।
मैं भी इन धर्मान्धता के सख्त ख़िलाफ़ हूँ इस लिए विषय मुझे बहुत अच्छा लगा भले ही विषय पुराना है फिर भी आपने इसमें इन ढकोसलों के बजाय अन्य विकल्प की तरफ जो इशारा किया है वही इस लघु कथा की विशेषता है रही बात गुनीजनों ने जो कुछ टिप्स बताएँ हैं उनसे आपकी ये कला और बेहतर होगी तथा जो कमेन्ट पढ़ रहे हैं उन पाठकों का भी मार्ग दर्शन होगा |
हार्दिक बधाई आपको आद० अपराजिता जी |
झलकती हँसी *(सुख)
" आम कैसे दिए ? "
लम्बी गाड़ी से नीचे उतरे साहबनुमा आदमी ने आँखों में पहने काले चश्में को हलका सा उठाकर ठेली पर सजे आमों पर एक नज़र डालते हुए पूछा।
" बाबूजी ! ये वाले सौ रुपये किलो हैं ।"
ठेले वाले ने करीने से सजे चमकते पीले रंग वाले बड़े आमों की ढेरी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा। एक नज़र ठेली पर डाल कर दूसरी तरफ़ लगी ढेरी की ओर देखकर चश्मे वाला बोला-
" ये दूसरी ढेरी वाले आम कैसे दे रहे हो ? सौ रूपये किलो ज्यादा महंगा नहीं कह रहे हो तुम ? "
कार वाले ने रुमाल निकाल कर चश्मा साफ़ करते हुए फल वाले को अच्छे से घूरा मानो ये परख़ रहा हो कि फल वाले के ऊपर उसका कितना रुआब पड़ा है।
" बाबूजी ! इनको छोड़िये ये वाले आपके मिज़ाज़ के नहीं हैं।आप तो ये लीजिये लखनऊ का ठेठ मलिहाबादी आम,इसकी गुठली इतनी पतली की खाने का मज़ा आ जाय।"
फल वाले ने पहली ढेरी की तारीफ़ के कशीदे काढ़ते हुए कहा। तभी खड़-खड़ करती एक पुरानी साईकिल चमकदार लम्बी गाड़ी के बगल में आकर रुकी। उसमें से पसीने से लथपथ उतरा आदमी चश्में वाले के बगल में खड़े होकर ठेली के आमों को नज़रों से परखने लगा।फिर फल वाले से बोला-
" आम कैसे दिए भईया ! "
" ये आम पचास रूपये किलो हैं ।" पहली ढेरी की ओर इशारा करके फल वाला फिर कार वाले की ओर मुख़ातिब हुआ।
" साहब ! कितना तौल दूँ ? सच कह रहा हूँ इनकी मिठास लेने के बाद आप हमेशा मुझसे ही आम लेंगे।"
तराजू पर आम रखते हुए फल वाले ने कहा।
कार वाला नाक में रुमाल रखता हुआ साईकिल वाले से जरा परे खिसका। और बोला-
" पहले थोड़ा दाम ठीक लगाओ।कोई एक किलो नहीं लेने हैं। "
" भईया ! मुझे देर हो रही है पहले मुझे आम तौल दो।ये दूसरी ढेरी वाला कैसे दिया ?" साईकिल वाले ने ज़ल्दी मचाई।
" ये महंगा वाला है। "
उसको नज़रअंदाज़ किया फलवाले ने।
" कित्ते रूपये किलो है ? " साईकिल वाला मन ही मन कुछ हिसाब सा लगाता हुआ बोला।
खीझता हुआ फलवाला बोला-
" सौ रूपये किलो है। हाँ तो साहब ! कितना तौल दूँ।"
आशा भरी नज़रों से वह कार वाले को देखने लगा।
" अस्सी के भाव लगाओ तो पांच किलो तौल दो । लगता है तुमने आम के साथ गुठलियों के भी दाम जोड़ दिए । कुछ ज्यादा ही तारीफ़ कर रहे हो गुठलियों की भी। "
कुछ व्यंग और कुछ ग़ुरूर से साईकिल वाले की तरफ देखकर कार वाला बोला।
" भईया ! आप लोग मोल भाव बाद में करते रहना।पहले मुझे ये बढ़िया वाला तौल दो पांच किलो। "
कहकर साईकिल वाले ने पांच सौ का करारा नोट ज़ेब से निकालकर फलवाले के सामने रख दिया।
इधर फलवाले ने नीची नज़रो के साथ आम तौलने शुरू किये। और तुलते मीठे आमों की खुशबू साईकिल वाले की नज़रों में अपने बच्चों की मीठी हँसी के रूप में झलकने लगी।
इधर कार वाले का हाथ रूमाल सहित अपनी नाक से खुदबख़ुद हट गया।
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मौलिक ,अप्रकाशित एवम् अप्रसारित
तुलनात्मक रूप से बहुत ही बढ़िया रचना हुई है. कथा में थोड़ी कसावट की आवश्यकता महसूस हो रही है. सादर .
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