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जिंदगी ये तो बता, तू इतनी क्यूँ उदास है

मुझसे है नाराज़ या फिर,औऱ  कोई बात है

मैंने तो तुझसे कभी कुछ खास मांगा भी नहीं

ले रही फिर बारहा तू लंबी क्यूं उच्छवास है

जो तेरी ख़्वाहिश थी शायद वो मिला तुझको नहीं

फ़िक्र ना कर तेरे हिस्से में यक़ीनन ख़ास है

जो मिला संतोष रख विचलित नहीं होना कभी

हास भी मिलता कभी होता कभी परिहास है

सुख के बादल भी बरसते और दुख के भी कभी

तू बता इससे अलग कया तेरा कुछ कयास है

सांस चलना ही निशानी जिंदगी की है तो फिर

नींद भी तो 'दीप' प्रतिदिन मौत क़ा अभ्यास है

-प्रदीप देवीशरण भट्ट- मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 23, 2019 at 6:37pm

आभार समर जी, कृपया रोटियाँ गोटियाँ पर कुछ सुझाव दें

Comment by Samar kabeer on September 10, 2019 at 11:53am

जनाब प्रदीप जी,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

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