आदरणीय साथियो,
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रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बुनावट वांछित है। भाषा ध्यान आकृष्ट करती है,उस्मानी जी;जैसे खेल खिलवाना या खेल खेलाना, टोपियाँ झेलने का मतलब ? तालियों पर तालियाँ बजाते रहे के बदले तालियाँ बजती रहीं,कैसा रहेगा? वैसे बेहतर भाव हेतु बधाइयाँ,आदरणीय उस्मानी जी।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना। क्षेत्रीय बोली का मामला है। आपकी राय और सुझावों हेतु शुक्रिया।
माँ ......
"पापा"।
"हाँ बेटे, राहुल "।
"पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है । मम्मी को बेहोशी का फिट आ गया । अब नाश्ता वहीं कर लूँगा ।"
"राहुल तुम जाओ बेटा, मैं तेरी माँ को देख लूँगा ।" पिता ने कहा ।
"राहुल, राहुल , नाश्ता किए बिना घर से मत जाना ।अचानक माँ थोड़ा कराहते हुए अर्द्ध बेहोशी की हालत में बोली ।
माँ चारपाई से अर्द्ध बेहोशी की हालत में उठी ।जैसे- तैसे चाय नाश्ता बनाया और फिर बेहोश हो गई ।
राहुल ने माँ को देखा और दुखी मन से नाश्ता किया । फिर न चाहते हुए भी मजबूर मन से कोर्ट के लिए चल दिया ।
"राहुल राहुल, अरे भाई कहाँ खोए हो ? कोर्ट का टाईम हो गया है । जल्दी करो । देर हो जाएगी ।" वकील ने राहुल को झिंझोड़ते हुए कहा ।
राहुल एकदम चौंक कर अपने बीते वक्त से वर्तमान में लौट आया ।
आज, वर्षों बाद फिर वही हालात थे । पत्नी नौकरी पर जा चुकी थी । राहुल, माँ की तस्वीर के आगे बैठा
शायद फिर माँ के आने का इंतजार कर रहा था ।
सच है जिन्दगी में हालातों की उछल पटक में अगर कोई इन्सान का साथ देता है तो वो उसकी माँ होती है चाहे वो यहाँ हो या हो वहाँ ।
31-1-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम वाक्य लेखकीय अभिव्यक्ति है। इस वाक्य की आवश्यकता नहीं लगती। इसका भाव कथनोपकथन में ही पिरोया जा सकता है मेरे विचार से। मॉं का कोई विकल्प नहीं। मॉं को खोने का दर्द असीम होता है। यादों में मॉं की हर बात किसी न किसी पल अचानक यूं आ जाती है।
आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया । हार्दिक आभार आदरणीय जी ।
आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। ऐसे कथनोपकथन अक्सर होते और हो रहे हैं। बूढ़ी मॉं या पिता की देखभाल करने वाले के मुद्दे पर भी!
अंत में किसी तीसरे पात्र से कोई पंचनुमा संवाद कहलवा दिया जाये, तो कैसा रहेगा? इस बार विराम चिह्नों/स्पेसिंग की टंकण त्रुटियाॅं रह गई हैं। //तू सब की देखभाल//....//तुम सब की देखभाल...// शीर्षक ठीक है लेकिन बेहतर की गुंजाइश लगती है।
मेरी सहभागिता रचना पर आप सभी की कोई प्रतिक्रिया या सुझाव?
आपका आभार उस्मानी जी। तू सब के बदले तुम सब होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति अतिरेक होगी।धन्यवाद।
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