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' आजादी के झंडे बिक रहे हैं।'
' पिछले साल वाले भी?'
' क्या?'
' महकमों के पुराने झंडे नये दाम में बिकते हैं। बिल बन जाती ।'
' जाने दो।आजादी का जश्न है,धूम से मने।'
' मिलेगी कब?'
' अबे बुरबक! कब की मिल चुकी, सन सैंतालीस में।'
'सरकारी राशन का पर्याय बनी जिंदगी,मिलावट का जहर और आदमी का खून पीता आदमी!यही आजादी है?'
"मौलिक व अप्रकाशित"
Posted on January 10, 2021 at 9:09am — 2 Comments
फसल की बालियां,डालियां और पत्तियां आपस में बातें कर रही थीं।
' हम फल हैं।जीवन का पर्याय हैं।' बालियां इतरा कर कह रही थीं।
' हम भोजन न बनाएं,तो सारी हेकड़ी धरी की धरी रह जायेगी।' पत्तियों ने आंखें तरे ड़ कर कहा।
' वाह वाह! क्या कहने! गर हम तुम्हें न संभालें तो फिर क्या हो?' डालियां जरा मौज में झूमकर बोलीं।
' ठहरो,ठहरो।हमें असमय सूखने पर मजबूर न करो।हम अभी नाजुक दौर में हैं।' बालियों और पत्तियों की सम्मिलित आर्त ध्वनियां गूंजने लगीं।
जड़ और तने एक दूसरे को…
Posted on December 4, 2020 at 11:00pm — 2 Comments
माधवी पटना की लेडी डॉक्टर से मिलकर बाहर आते ही पति से बोली,' यह ओवरी वाला क्या चक्कर था मधुप?'
' बकवास ही समझो '
' वाकई दोनों ओवरी बराबर आकार की होती है?छपरा वाली डॉक्टरनी बोली थी।'
' नहीं होती।मैंने अपने दोस्त डॉक्टरों से सलाह की थी।' पति बोला।
' फिर वह मुई ऑपरेशन किस चीज का करती?'
' पता नहीं। डोनेशन वाले डॉक्टर - डॉक्टरनी भी तो होते हैं भई।'
' ऐसा?'
'और क्या? यहां सब चलता है।' पति हिकारत भरे लहजे में बोला।
' मौलिक व अप्रकाशित'
Posted on September 26, 2020 at 1:20pm — 1 Comment
122 122 122 12
हवाओं के' झोंके मचलने लगे,
अदाओं के' आंचल सरकने लगे।1
दबे दिल के' कोने में ' जो थे कभी
परत दर परत राज खुलने लगे।2
बसाए फिरे जो जिगर में कभी
हकीकत बताने से बचने लगे।3
कहा था कभी, हम न होंगे जुदा,
मिले ही कहां,अब वो ' कहने लगे।4
नज़ाकत भरे थे जो लमहे कभी,
शरारत जदा आज डंसने लगे।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
@
Posted on August 29, 2020 at 4:36pm — 4 Comments
जन्म दिन की हार्दिक बधाई एवम शुभ कामनायें आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।
आ0 मनन जी
आपकी मित्रता मेरा गौरव है . सादर .
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