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पापा, रि-पापा (लघुकथा):
लकवा पीड़ित पत्नी के साथ पति पार्क में पत्नी की मनपसंद बैंच पर बैठा हुआ था। तभी, बात कर पाने में असमर्थ पत्नी अपने गिने-चुने शब्द कहते हुए ज़ोर से बोली, "पापा, रि-पापा!" पति इस शब्द-कोड का आशय समझने की कोशिश करते हुए इधर-उधर देखने लगा। पत्नी के हाथ का इशारा उसी औरत की तरफ़ था, जो हर रोज़ पार्क के दूसरे कोने की बैंच पर बैठकर भिन्न क्रिया-कलाप किया करती थी। आज वह फ़िर एक सेवफल खा रही थी। फ़िर वह औरत बेझिझक अपनी साड़ी ऊपर सरका कर पैरों में तेल की मालिश करने लगी। पत्नी अबकी बार गुस्से में बोली, "पापा, रि-पापा!" इस बार पति ने उसके आशय को समझते हुए अपनी निगाहें उस औरत की घुटनों के ऊपर तक नंगी टांगों से दूर कर लीं।
फ़िर वह औरत पैरों के व्यायाम करने लगी। पत्नी देर तक उसे देखती रही। फ़िर वह स्वीकृति की मुद्रा में पति से बोली, "पापा, रि-पापा...।" पति उसका आशय समझने के लिए अपना सिर खुजाने लगा। फ़िर पत्नी ने अपना स्वस्थ बायां पैर उस औरत की तरह हिलाया। अब पति समझ गया कि पत्नी अपने लकवा ग्रस्त दायें पैर की कसरत करने के लिए 'हां' कह रही है।
अब वह औरत अपने झोले में से कुछ निकाल कर पी रही थी। पत्नी ने अपने मुंह की तरफ़ अंजलि करते हुए पति से आग्रह शैली में कहा, "पापा, रि-पापा..।" पति ने सब समझते हुए चुटकी लेते हुए कहा, "वह छाछ पी रही है छाछ! तुम तो मिल्क प्रोडक्ट्स पीती ही नहीं हो! कितनी बार समझाया कि प्रोटीन और कैल्शियम वाली डाइट लेनी ही पड़ेगी तुम्हें!"
पत्नी ने बायें हाथ से अपना कान पकड़ते हुए सिर हिलाकर हामी का इशारा करते हुए कहा, "पापा, रि-पापा!" पति समझ गया और बोला, अच्छा, तो अब छाछ भी पियोगी और फीजियोथेरेपी के लिए मना नहीं करोगी, है न!"
पत्नी ने सकारात्मक जवाब देने सिर हिलाकर कहा, "पापा, रि-पापा।"
(मौलिक व अप्रकाशित)
( *लकवा पीड़ित का दायां शरीर लकवा ग्रस्त और भाषा लकवा ग्रस्त)
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