आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आ नीता जी ,' यारी ही नहीं ज़मीर भी बेच दिया ' में इंसानियत के युग युग का विलाप समाया है। आज के युग का कितना बड़ा छल ! संक्षिप्त मगर बड़ी लघुकथा। शब्दों की किफायत और चुस्त सहज संवाद। और बहुत ज़्यादा क्या चाहिए इस विधा को ?
आदरणीया नीताजी, बहुत घृणित षडयंत्र की बानग़ी प्रस्तुत हुई है. दो मित्रों के बीच के सम्बन्धों का यह ढंग बड़ा ही कुत्सित है. प्रदत्त शीर्षक को संतुष्ट करती इस रचना केलिए हार्दिक बधाई.
वाह ! दोस्ती की आड़ में गद्दारी को संदर्भित कर बहुत बढ़िया लघुकथा रची है आपने आदरणीया नीता जी बधाइयां प्रेषित है
कथा की प्रस्तुति कुछ उलझ सी गयी है, कथा में एक साथ कई नाम आने से भी कथा एक बार में नहीं समझ में आ रही. बहरहाल इस प्रयास पर बधाई आदरणीया नीता कसार जी.
लघु कथा ( भरोसा ) षड़यंत्र
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शहर के एक होटल में आने वाले विधान सभा चुनाव में उम्मीदवार के इंतखाब के लिए पार्टी हाई कमान द्वारा भेजे नेताओं की बैठक चल रही है , कई मुक़ामी नेता अपने अपने समर्थकों के साथ उम्मीद लगाए बाहर खड़े हैं , उनमें ही शहर के मुस्लिम नेता आज़ाद साहिब हैं-----उन्हें इस पार्टी से जुड़े पच्चीस साल से ज़्यादा हो गए , उनमें आजकल के नेताओं जैसी चालाकी ,फरेब , धोका और वादा खिलाफी की फितरत बिलकुल ही नहीं है , वह ईमानदार और सच्चे इंसान हैं , उन्हें इस बात का अफ़सोस ज़रूर है कि उनकी पार्टी जब सत्ता में होती है तो उन्हें हर पद से महरूम रखा जाता है और जब सत्ता में नहीं होती तो संगठन में कोई पद दे दिया जाता है । शहर में मुस्लिम क्या हर वर्ग के लोगों में उनकी अच्छी पकड़ है ----------
अचानक पार्टी नेताओं द्वारा मीडिया और लोगों की मौजूदगी में हर बार की तरह किसी बाहरी आदमी के नाम का एलान कर दिया जाता है ,आज़ाद साहिब मायूस हो जाते है , यकबयक उनका एक समर्थक जो किसी तरह अंदर की बातें सुन ने में कामयाब हो जाता है आकर कहता है कि इस पार्टी की कथनी और करनी में फ़र्क़ है ------वह बोल रहे थे कि हाई कमान का मानना है , मुसलमान मुख़ालिफ़ पार्टी को वोट नहीं देगा ,वह हमारे सिवा कहाँ जाएगा , मुसलमान को अगर टिकट देंगे तो वह विधान सभा पहुँच कर अपनी क़ौम के लिए आवाज़ उठाएगा , इसे वोट बैंक ही रहने दो --------- इतना सुनते ही आज़ाद साहिब के चेहरे का रंग ही उड़ गया , वह सोचने लगे कि न जाने कब से यह साज़िश हमारे साथ रची जा रही है --------
इसी बीच उनके पास मुख़ालिफ़ पार्टी का एक बड़ा नेता आया , दोनों में कुछ बात चीत हुई और देखते ही देखते वहां का मंज़र ही बदल गया , आज़ाद साहिब के पास और कोई रास्ता नहीं था , उस नेता ने आज़ाद साहिब का हाथ पकड़ कर एलान कर दिया कि वह हमारी पार्टी की तरफ से उम्मीदवार होंगे -------------
(मौलिक व अप्रकाशित )
आदरणीय तस्दीक अहमद जी आप के विरोधाभाषी शीर्षक ने लघुकथा को उलझा कर रख दिया. या फिर आप स्वयम शीर्षक रखने में उलझ गए. कृपया शीर्षक एक ही रखे तो लघुकथा के सन्देश को समझा जा सके. सादर.
मोहतरम जनाब ओम प्रकाश साहिब , लघु कथा को बारीकी से देखने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,---विषय तो षड़यंत्र ही है मगर शीर्षक भरोसा इस लिए किया क्योकि कोई ज़िंदगी भर भरोसा किसी पर करता रहा और कोई षड़यंत्र रचता रहा ------मैं अभी इस फील्ड में स्टूडेंट ही हूँ ----सीखता जायूँगा आगे बढ़ता जाऊँगा ---
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