For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साहित्यिक परिचर्चा ओबीओ लखनऊ-चैप्टर, मार्च 2021               प्रस्तोता :: डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

                 

विषय – अब्दुर्रहीम खानखाना कृत  ‘मदनाष्टक’  के तीन छंद

दिनांक – 21 मार्च 2021 ई०                 मुख्य अतिथि – श्री कुँवर कुसुमेश

दिवस - रविवार                            संचालक – आलोक रावत ‘आहत लखनवी’

समय – 3 बजे अपराह्न                     अध्यक्ष – डॉ. अशोक शर्मा 

 

       रहीम की रचना

शरद-निशि निशीथे चाँद की रोशनाई ।

सघन वन निकुंजे कान्ह वंशी बजाई ।।

रति, पति, सुत, निद्रा, साइयाँ छोड़ भागी ।

मदन-शिरसि भूय: या बला आन लागी ।।1।।

कलित ललित माला या जवाहिर जड़ा था ।

चपल चखन वाला चाँदनी में खड़ा था ।।

कटि-तट बिच मेला पीत सेला नवेला ।

अलि बन अलबेला यार मेरा अकेला ।।2।।

ज़रद बसन-वाला गुल चमन देखता था ।

झुक झुक मतवाला गावता रेखता था ।।

श्रुति युग चपला से कुण्डलें झूमते थे ।

नयन कर तमाशे मस्तु ह्वै घूमते थे ।।3II

इस परिचर्चा में केवल दो लोगों ने भाग लिया I श्री अजय कुमार श्रीवास्तव  ‘विकल’ जी ने कहा कि उपर्युक्त कविता रहीम जी की रचना ‘मदनाष्टक’ से गृहीत है l यह पूर्णतया शृंगारिक है l श्रीकृष्ण जो रसिक, योगी, अनासक्त, युद्धरत, युद्ध विमुख अनेकानेक विशेषताओं से पूरित हैं,  वे इस कविता में अपने रसिक रूप में हैं I यह रूप मन को मुग्ध कर देने वाला है l इस छवि में कृष्ण के होंठों पर बाँसुरी है, उनकी मुद्रा त्रिभंगी है और इस रूप पर कामदेव और रति दोनों मुग्ध हैं I  विभु की धवल चाँदनी  में अप्रतिम, अद्भुत, अलौकिकता से पूर्ण उनकी  शोभा है l कृष्ण को देखकर कामदेव के मन में ईर्ष्या मिश्रित भाव जाग्रत होता है I अपनी छवि को वह गौण मानता हैl 'चपल चखन वाला', 'अलि बन अलबेला यार' में शब्दों का मार्दव है l 'श्रुति युग चपला से कुण्डलें झूमते थे' अद्भुत उपमा का सौंदर्य अप्रतिम है l कविता में शृंगार रस का अद्भुत परिपाक हुआ है I

  

दूसरे परिचर्चाकार थे डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव I उनका कहना था कि प्रस्तुत पद्यांश में कवि रहीम ने भगवान कृष्ण के उस स्वरुप का वर्णन किया है, जब वे ब्रज में अपनी बाल लीलाओं के उत्कर्ष पर थे I उनकी बाँसुरी की सम्मोहन शक्ति का बखान बहुत से लोगों ने किया है I इस परंपरा में रहीम ने ‘मदनाष्टक’  शीर्षक से जो छंद रचे, विवेच्य छंद वहीं से लिए गए हैं  I इनकी रचना सममात्रिक चतुष्पद कुंडल छंद में हुयी है, जिसमें (12,10) पर यति होती है और चरणांत में दो गुरु (ss) रखने की नियामक व्यवस्था है I रहीम के शीर्षक से ही स्पष्ट है कि इसमें भगवान कृष्ण की मोहिनी से गोपियों पर पड़ने वाले काम-प्रभावों का वर्णन हुआ है I कृष्ण ने शरद पूर्णिमा में अर्धरात्रि को ब्रज के निकुंजों में जाकर वंशी क्या बजाई सारी विवाहित गोप नारियाँ अपना रतिजनित सुख, पति, पुत्र और नींद तक छोड़कर उन निकुंजों की ओर दौड़ पड़ीं I कवि को स्वयं आश्चर्य है कि यह काम-प्रभाव था या कोई बला उनके पीछे पड़ गयी थी I इस संदेह अलंकार के जरिये रहीम ने कृष्ण की उस विराट सम्मोहन शक्ति का उद्घाटन किया है जिसके सामने काम का आकर्षण भी फीका पड़ जाता है I क्योकि कवि के अनुसार ब्रज नारियाँ रति-सुरति तक छोड़कर दौड़ पड़ी थीं I शृंगार रस का ‘स्थाई भाव’ भी तो ‘रति’ ही है I स्पष्टतः रति काम-प्रभाव की सीमा रेखा है I कृष्ण का यह सम्मोहन भी लोक दृष्टि से प्रत्यक्षतः काम-प्रभाव ही जान पड़ता था पर वह संभवतः इससे भिन्न कोई अतीन्द्रिय आकर्षण था I यह आकर्षण कृष्ण की बाँसुरी  के स्वर, उनके परिधान और दैहिक आकर्षण में आश्रय पाता था I ध्यान देने की बात है कि रहीम के अनुसार कोई भी गोप-कुमारी इस आकर्षण से बँधकर नहीं आयी I यह कवि की अतिरिक्त सावधानी है I वे कृष्ण के चरित्र को एक नई धज प्रदान करते दिखते हैं I अतः यह आकर्षण अद्भुत है I छंद की अन्य पंक्तियों में कृष्ण की वेशभूषा और सौन्दर्य का जो अनिर्वचनीय वर्णन रहीम ने किया है, वही वह आलम्बन है जिसके सम्मोहन में फँस कर गोपियाँ सामाजिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर अपने घरों से आधी रात में भाग खड़ी होती थीं I मुरली  का स्वर तो केवल एक संकेत या आह्वान मात्र था जैसे नमाजियों के लिए अज़ान I  

       कृष्ण के बाहिज सौन्दर्य वर्णन में रहीम ने कमाल ही कर दिया है I शब्दों का इतना सुन्दर चयन और भाषा का ऐसा अनोखा सौष्ठव दुर्लभ है I रहीम ने शब्दों के विन्यास में अपनी जादुई कला से ऐसी अनोखी ऊर्जा भर दी है कि उसमें गति का संचार तो मानो अपने आप ही हो गया है  –

कलित ललित माला या जवाहिर जड़ा था ।

चपल चखन वाला चाँदनी में खड़ा था ।।

        रहीम की भाषा में यह निखार फारसी के प्रभाव से भी आया है I रोशनाई, जर्द, यार, गुल, चमन, रेखता, तमाशे जैसे शब्द तो इन तीन छंदों में ही है जबकि अन्य छंदों में फारसी के शब्द कहीं अधिक हैं I भाषा, भाव और शिल्प की दृष्टि से यह रहीम की बेजोड़ रचना है I बहुत से लोग रहीम को केवल दोहाकार समझते हैं I कुछ अधिक समझ रखने वाले उन्हें बरवै-कार के रूप में भी जानते हैं, पर कवि का यह रूप अधिकतर लोगों के लिए अनजाना है I मदनाष्टक ऐसे लोगों के लिए एक नेत्र विस्फारक (eye opener) की तरह है I रहीम की इस अनन्य कृष्ण भक्ति के सामने कौन श्रद्धा विनत नहीं हो जाएगा I वे निश्चित रूप से हिन्दी साहित्य के अंतर्गत भक्तिकाल के प्रतिनिधि कवियों में से एक हैं I 

   (मौलिक /अप्रकाशित )                         

 

 

Views: 340

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service