आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय योगराज प्रभाकरजी, रजत जयंती समारोह का शुभारंभ करने के लिए आप का हार्दिक अभिनंदन व बधाई. इस की शुरूआत आप ने एक बहुत उम्दा लघुकथा से की है.
रचना पससंदीदगी के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय भाई जी.
भाई वीर मेहता जी, आपने समापन संवाद का ज़िक्र करके मन प्रसन्न कर दियाI इसी संवाद में कहानी का तीसरा पात्र है जो नेपथ्य में रहते हुए भी नुमाया हुआ हैI इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार स्वीकारेंI
आहा ------ क्या सरप्राइज एलीमेंट है , शायद आप भी मेरी बीबी जैसी ही हैं . थम्ब्स अप प्रिय अनुज .
सादर प्रणाम आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी.
दिल से शुक्रिया भाई सतविन्द्र कुमार जी.
आ. योगराज भाई जी रजत जयंती आयोजन का शुभारंभ करती सारगर्भित रचना के लिए हार्दिक बधाई. बस एक बात समझ नही आयी कनिका ने इस हिम्मत वाले कदम के लिए एक साल तक इंतजार क्यों किया. सार्वजनिक रुप से ऐसे अनेको तरिके भी तो हो सकते थे सत्यार्थी जी को महाभूल का अहसास कराने के. आप अन्यथा ना लेंगे जो रचना पढने पर मन मे आया लिख दिया. लेखक का अपना अलग हेतू भी हो सकता है यह सब लिखने का. मार्गदर्शन करे. सादर
वैसे आपने सिर्फ कुनिका द्वारा एक साल के इंतज़ार ही की बात क्यों की नयना ताई? सत्यार्थी के पास कुनिका का नम्बर कैसे आया, ये क्यों नहीं पूछा? कुनिका ने सत्यार्थी को अपना नम्बर क्यों दिया, ये क्यों नही पूछा? अश्लील मेसेज की शिकायत साइबर सेल में क्यों नहीं की, यह क्यों नहीं पूछा? सत्यार्थी की हरकत अपनी गुरु माँ को क्यों नहीं बताई, ये क्यों नहीं पूछा? कुनिका, मिसेज़ सत्यार्थी से कौन सी विधा सीख रही थी, यह क्यों नहीं पूछा? मिसेज़ सत्यार्थी की कुनिका की गुरु माँ हैं, इसके बारे में श्रीमान सत्यार्थी जी को क्यों नही पता थी, यह क्यों नहीं पूछा? कुनिका पार्टी में क्यों गई यह क्यों नहीं पूछा? पार्टी किसने दी थी और क्यों दी थी, यह क्यों नहीं पूछा? (आश्वस्त रहें मैंने आपकी किसी बात को अन्यथा नहीं लिया है)
लघुकथा में केवल उतना ही कहा जाता है जितनी ज़रूरत होI क्योंकि लेखक के पास खर्च करने के लिए शब्द सीमित मात्रा ही में होते हैंI लघुकथा को गरीब आदमी का बजट कहा जाता है जहाँ "नहाने और निचोड़ने" की बहुत ज्यादा गुंजाइश नहीं होती हैI बहरहाल, आपकी बधाई सर आँखों पर आदरणीय नयना ताईI
भाई जी आपने तो मेरे प्रश्न पर अनेक प्रश्न दाग दिये. सच कहूँ गुरु माँ के बारे मे प्रश्न मेरे मन आया था , वो मुझसे यहाँ छूट गया. असल में बिगडे स्वास्थय के चलते कल मुझे घर वालो ने बस आधा घंटा दिया था. उसमे मै सब समेटना चाहती थी ,लिखना भी और पढना भी. खैर ये छोडे. मै बस सबको पढ रही हूँ
वर्तमान परिवेश को परिलिक्षित करती एक शानदार प्रस्तुति।
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