आदरणीय साथिओ,
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//ऐसे नए नए कथानक कहाँ से निकाल कर लाते हैं?// बस आपका स्नेह और आशीर्वाद है सर. विषयवस्तु को स्पष्ट करने के चक्कर में कथा कुछ विस्तार पा गयी है. संकलन के बाद इसे संशोधित रूप में प्रस्तुत करूँगा. गृहयुद्ध लघुकथा एक अहम् हिस्सा है इसलिए मुझे लगता है कि इसे वहाँ पर रहना चाहिए. हाँ, संशोधन की गुंजाइश इसमें भी है इसलिए इसमें भी सुधार अवश्य करूँगा. //"नग्न" शब्द को यदि "निर्वस्त्र" कर दिया जाए तो कैसा रहेगा?// एकदम उचित रहेगा सर. यहाँ यही शब्द आना चाहिए था. लघुकथा को पसन्द करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. मार्गदर्शन एवं सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ. सादर.
जनाब महेंद्र कुमार साहिब ,प्रदत्त विषय पर सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । यह बात सही है ,लघुकथा को और
कसा जा सकता था ।
बहुत-बहुत शुक्रिया आ. तस्दीक़ अहमद खान जी. लघुकथा को बेहतर करने की पूरी कोशिश करूँगा. सादर आभार.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी, इतिहास के अनूठे विषय पर गम्भीर कथानक, और बेहतरीन कल्पना. बहुत सुन्दर लिखा। आदरणीय योगराज सर जी की बात 'कथा में लेखकीय प्रवेश' से मैं भी पूर्णतय सहमत. इससे बचा जा सकता, विशेषकर //आख़िर इससे फ़ायदा जो हो रहा था! // जैसे वाक्यों से. बरहाल कुल मिलाकर इस बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।
हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी।बेहतरीन लघुकथा।इतिहास विषय के लिये जो पृष्ठ भुमि आपने चुनी, वह क़ाबिले तारीफ़ है।और उतना ही सटीक विवरणात्मक चित्रण।आपकी गहन सोच की दाद देनी पड़ेगी।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तेज वीर सिंह जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.
आ. वीरेंदर वीर मेहता जी, जिस वाक्य का आपना ज़िक्र किया है उसे संशोधन के वक़्त मैं हटा दूँगा. भविष्य में लेखकीय प्रवेश से बचने की पूरी कोशिश रहेगी. लघुकथा आपको पसन्द आयी इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. हार्दिक आभार. सादर.
गज़ब का कथानक| इतिहास के पन्नो से इस तरह से प्रयास अद्भूत सृजन| साधुवाद| शहजाद जी से सहमत हूँ,थोडा देख लीजियेगा|
आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी की बात से मैं भी सहमत हूँ आ. कल्पना मैम. लघुकथा का अध्ययन वो बहुत बारीकी से करते हैं. रचना को पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी नए उम्दा कथानक के लिए बधाई स्वीकार करे.
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी. हार्दिक आभार. सादर.
विषय बेहतरीन चुना गया है। प्रस्तुति भी ग़जब हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय महेंद्र जी। इस गद्य रचना को मैं लघुकथा के निकट भी नहीं पा रहा। इसमें व्यंग्य का जबरदस्त पुट होने के कारण मैं इसे ससक्त व्यंग्य आलेख के रूप में देख पा रहा हूँ । उसी नाते अनेकानेक बधाइयाँ। मैं भी वस्तुतः लघुकथा विधा को समझने की कोशिश ही कर रहा हूँ। इस लिए मेरे विचार सर्वथा उचित ही हों ऐसा भी नहीं है। फिर भी इस प्रस्तुति पर आदरणीय गुणीजन की समग्र प्रतिक्रयाओं की प्रतीक्षा रहेगी।सादर
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