दिनांक 15 नवम्बर 2011 की संध्या इस मायने में यादगार हो गयी कि वाराणसी के काशी विद्यापीठ के निकट स्थित होटल जाह्नवी इण्टनेशनल में ओबीओ के सदस्यों --सर्वश्री अफ़सोस ग़ाज़ीपुरी, बेखुद ग़ाज़ीपुरी, मंजरी पाण्डेय ’मंजरी’, अरुण कुमार पाण्डेय ’अभिनव’, शमीम ग़ाज़ीपुरी और सौरभ पाण्डेय-- का आत्मीय सम्मिलन हुआ जो कि परस्पर भावनाओं के प्रगाढ़ होने का काव्यमय कारण बन गया. निस्सृत काव्य-रसधार में सभी सदस्य देर तक बहते रहे, गोते लगाते रहे. कहना न होगा, इस गोष्ठी के अधिकतर सदस्यों का इण्टरनेट की आभासी दुनिया से निकल कर भौतिक या यथार्थ की दुनिया में हुआ यह आपस में प्रथम परिचय ही था.
मैंने एक दिन पूर्व ओबीओ की कार्यकारिणी समिति के ऊर्जस्वी सदस्य अरुण कुमार जी पाण्डेय ’अभिनव’ को अपने वाराणसी में होनी की सूचना दी तथा वार्तालाप के क्रम में ही यह तय हुआ कि जहाँ तक बन पड़े भौगोलिक परिधि में सहज उपलब्ध सदस्यों की एक परिचयात्मक गोष्ठी हो जिसमें परस्पर परिचय के उपरांत ओबीओ के बहुमुखी विकास, प्रचार और प्रसार से सम्बन्धित चर्चा के साथ-साथ काव्य-संध्या का भी आयोजन हो. अभिनवजी के सद्-प्रयास का ही परिणाम था कि सभी सदस्य होटल जाह्नवी इण्टरनेशनल के कमरा नं. 102 में जमा हुए जहाँ मैं वाराणसी प्रवास के दौरान ठहरा हुआ था.
अफ़सोस ग़ाज़ीपुरी जो कि वयस तथा अनुभव में हम सभी सदस्यों के लिये आदरयोग्य अग्रज हैं ने ओबीओ के मंच के प्रचार और प्रसार से सम्बन्धित कई विन्दुओं पर अपनी बातें कहीं. यह बात शिद्दत से महसूस की गयी साहित्य की समझ रखने और लिखने वालों का बहुसंख्यक वर्ग अभी भी नेट की आभासी दुनिया से नितांत विलग है. उनका एक महत्त्वपूर्ण सुझाव यह भी था कि सभी सदस्य आपस में एक विशेष अंतराल पर किसी आयोजन के तहत अवश्य मिलें तथा उसमें केवल और केवल ओबीओ के ही लेखक-रचनाकार प्रस्तुतकर्ता के रूप में शिरकत करें. उनका यह भी मानना था कि उक्त आयोजन चाहे जहाँ कहीं स्थूल रूप में आकार ले, पूरी तरह से स्पॉन्सर्ड हो. इसकी आगे की रूपरेखा पर तफ़्सील से फिर आगे बात होगी कह कर साहित्य और आजका पाठक पर भी चर्चा हुई. ज्ञातव्य है कि अफ़सोस ग़ाज़ीपुरी जी विगत आठ वर्षों से वाराणसी में ’परिवर्तन’ नामक साहित्यिक संस्था का सफलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं जिसके सद्र मोहतरम बेखुद ग़ाज़ीपुरी जी हैं. मुझे यह भी जानकारी हुई कि ’परिवर्तन’ के तत्त्वावधान में अफ़सोस जी के निवास पर प्रत्येक शनिवार को साहित्यिक-गोष्ठी सम्पन्न होती है. आज वाराणसी में स्थापित और नव-हस्ताक्षर दोनों तरह के रचनाकारों के लिये ’परिवर्तन’ एक अभिनव मंच है.
परिचय सत्र और विचार-गोष्ठी के उपरांत मन्जरी पाण्डेय जी ’मन्जरी’ जी की सधी हुई आवाज़ में सरस्वती वन्दना तथा अफ़सोस ग़ाज़ीपुरी के नात से काव्य-गोष्ठी की शुरुआत हुई. बेखुद ग़ाज़ीपुरीजी की सदारत में गोष्ठी का सफलतापूर्वक संचालन किया अभिनवजी ने. शमीम साहब ने मुलामियत भरे तरन्नुम में कमाल के मिसरे पढ़े. बताता चलूँ कि शमीम साहब हाल ही में सम्पन्न अखिल भारतीय मुशायरा में साग्रह न्यौते गये थे जहाँ भारत और पाकिस्तान के आला दर्ज़े के शाइरों और कवियों ने शिरकत की थी. ’मन्जरी’जी, जो कि केन्द्रीय विद्यालय, वाराणसी से सम्बन्धित हैं, ने अपनी पुरकशिश और लयबद्ध आवाज़ में गीत और ग़ज़ल कह कर समां बांध दिया. अफ़सोस ग़ाज़ीपुरी जी ने माज़ी के कई लम्हात से सभी को दो-चार कराया. अफ़सोसजी की रचनाओं और ग़ज़ल दोनों में इन्सानी जज़्बात और दर्द का ज़िन्दा दरिया बहता है. अभिनव जी की ग़ज़ल की तासीर और आकाश से ओबीओ के पाठक बखूबी परिचित हैं. उनके पढ़ने के अंदाज़ से हम सभी सदस्य हृदय से अभिभूत हुए. सद्र बेखुदजी की ग़ज़ल के अश’आर सीधे दिल पर असर करते हैं. आपकी ज़ुबान गंगा-जमुनी तहज़ीब की मोहक मिसाल है. मुझ ख़ाक़सार को भी सभी ने सुना जो मुझ जैसे के लिये किसी महती उपलब्धि से कम नहीं है.
गोष्ठी की सदारत कर रहे बेखुद जी तथा वरिष्ठ सदस्य अफ़सोसजी की इस सद्-इच्छा के साथ, कि हम अगली बार कुछ और संयत हो कर कुछ बेहतर ढंग से मिलेंगे, कुल पाँच घण्टे चली इस गोष्ठी का संतुष्टिकारक समापन हुआ जिसकी अनुगूँज अभी भी मेरे दिलोदिमाग़ में बनी है.
--सौरभ
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Saurabh ji vistaar se baad me, abhi to itna hi ki main ab bhi is ayojan ki khushbu me sarabor hoon. Apki rapat aur chitron ne ise aur bhi Yaadgaar bana diya hai. Apne isi ko Shyamal ji ko mail kar diya hota to badhiya hota.
आपने सही कहा वन्दनाजी, उस संध्या को वाकई बात ही अलग थे. यह प्रतीत ही नहीं हुआ कि हम आपस में पहली दफ़ा मिल रहे हैं. विचारों और सोच की दशा में साम्य हो तो भौतिक परिचय केवल सापेक्ष होने और माकूल समय मिलने भर की बात हुआ करते हैं. कविता, गीत और ग़ज़ल की वो रसधार बही कि हम सभी साथ-साथ बहते गये.
सर्वप्रथम तो ओ बी ओ प्रथम काव्य गोष्ठी में सम्मलित सभी सदस्यों यथा -सर्वश्री अफ़सोस ग़ाज़ीपुरी, बेखुद ग़ाज़ीपुरी, मंजरी पाण्डेय ’मंजरी’, अरुण कुमार पाण्डेय ’अभिनव’, शमीम ग़ाज़ीपुरी और सौरभ पाण्डेय जी को मैं बहुत बहुत बधाई देना चाहता हूँ |
आदरणीय सौरभ भाई साहब जी, दो दिन पहले ही प्रधान संपादक जी से चैट पर बातों के दौरान मैंने कहा था कि जमीनी रूप से भी ओ बी ओ सदस्यों कि छोटी छोटी स्थानीय मासिक गोष्ठियां होनी चाहिए, इस पर यह तय हुआ कि शुभारम्भ विद्वानों कि धरती काशी से हो और इसके लिए अरुण अभिनव जी से बात हो, मैंने कहा कि समय देखकर मैं अरुण जी से बात करूँगा |
किन्तु आज ख़ुशी का ठिकाना न रहा कि मेरे बात करने से पहले ही यह कार्य संपादित भी हो गया | यह छोटी सी शुरुआत बड़ी हो सकती है | दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, पटना आदि जगहों पर भी ऐसी मासिक गोष्ठिया आयोजित की जा सकती है, इससे ओ बी ओ सदस्यों को एक दुसरे से मिलने, समझने का मौका, साहित्यिक माहौल को बनाये रखने में मदद के साथ साथ ओ बी ओ का जमीनी स्तर पर जुड़ाव व व्यापक प्रचार प्रसार भी होगा |
अन्य साथियों के विचारों का स्वागत है |
बहुत बहुत बधाई !
बागी जी , अब आपके शहर की बारी है.
विभूति भाई सहयोग की दरकार है, सब कुछ संभव है :-))))))
‘बागी’ जी, सहयोग की अपेक्षा मुझ जैसे तुच्छ साहित्य सेवी से क्यो करना चाह रहे है, मै ज़मीन पर हूॅ आप आसमान पर है, लेकिन ओ.बी.ओ. के सारथी आप हैं और यदि इसी प्रकार आप ललकारते, उत्साहित करते रहेंगे तो वह दिन दूर नहीं, जब जमीन और आसमान भी गले मिलेंगे। आशावादी हूॅ, अपनी दो लाइनों से बात पूरी कर दूॅ--
‘‘...उम्मीद की लौ जलाए रख कर क्यों डर रहे हो अंधेरों तुम,
है आनेवाला नया-सवेरा, अभी-अभी तो शमा बुझाी है...’’
आप हौसला देते रहिये, आगे बढ़ते रहिये और साहित्य-सेवियों को जोड़ते रहिए, सहयोग भरपूर आपको मिलेगा, मिलता रहेगा और हम जैसे लोगो की मजबूरी सहयोग देने की बनी रहेगी, इसी विश्वास के साथ,
--अफसोस गाजीपुरी
(आदरणीय अफ़सोस जी, भाई गणेशबाग़ीजी की प्रतिक्रिया विभूति कुमार जी के संप्रेषण पर है. विभूति कुमार जी पटना शहर से हैं, जहाँ से गणेशभाई जी भी हैं और उनसे अपने शहर में भी साहित्यिक-गोष्ठी के लिये इनिशियेटिव लेने को कह रहे हैं. सर्वोपरि, आदरणीय, आप तो हम सभी के अपने अफ़सोस ग़ाज़ीपुरी जी हैं ! .... सादर .)
धन्यवाद विभूतिजी.
आपकी शुभकामनाओं के साथ आपका स्वागत है बाग़ीजी. मैं तो यही मानता हूँ, भाई, कि चाहे आदरणीय योगराजभाईजी हों या आप हों या अभिनवजी हों या अपनी परिधि के अन्य सदस्य क्यों न हों, हम सभी की वैचारिक तीव्रता कमोबेश समान ही है. हम सभी एक ही दिशा में और समान भाव से सोचने वाले लोग हैं और इस वैचारिक परिवार तथा साहित्य-साधना की बेहतरी के लिये सदा सोचते हैं और प्रयासरत हैं. तो फिर, आपकी बातों और विचारों की सूक्ष्म तरंग भला हम तक क्यों नहीं पहुँचती?
याद दिलाऊँ कि मेरे दिल्ली प्रवास के दौरान धरमजी और आराधनाजी के साथ हुई मुलाकात इसी तरह की गोष्ठी के शुरुआती कदम थे. जिसमें आराधना जी का साहित्यिक आग्रह सुगढ़ संचालक की महती भूमिका अदा कर रहा था.
हम अगली बार कुछ और संयत हो कर कुछ बेहतर ढंग से मिलेंगे,
BEHTAR KAL K LIYE SHUBHKAMNAYE AUR BITE KAL KI UPLABDHI HETU BADHAIYA...Saurabh ji.
यह सब श्री सौरभ जी के करिश्माई व्यक्तिव और ओ बी ओ में परिवार भाव का असर है कि छोटी सी बातचीत ने एक आयोजन का रूप ले लिया | और इसमें कोई शक ही नहीं कि वहाँ उपस्थित हर रचनाकार के लिए ये शाम यादगार बन गयी | मेरी श्री सौरभ जी से पिछली मुलाकात भी कुछ इसी तरह शुरू हुई थी | आदरणीया वंदना जी, श्री बागी जी और श्री अविनाश जी, श्री सौरभ जी की इस रपट की प्रभावशाली और खूबसूरत प्रस्तुति और संयोजन ने इस विचार को बल दिया है कि हमें देश के अन्यत्र हिस्सों में सदस्यों का जहाँ तक संभव हो आपस में मिलने बैठने और विचारने का सिलसिला शुरू करना चाहिए | यह एक नए दौर का उदय काल है, आइये मिलकर इसका आनंद लें | ओ बीओ का यह प्रयास ऐसा है, आनेवाला समय जिसकी स्तुति और आंकलन करेगा | जय ओ बी ओ !!
आपकी पंक्तियों यह एक नए दौर का उदय काल है, आइये मिलकर इसका आनंद लें के साथ आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ, भाई अरुण अभिनवजी.
आदरणीय अफ़सोस ग़ाज़ीपुरी जी के कई सुझाव-विन्दुओं से मैं सहमत हूँ. आप वाराणसी में हैं, कृपया उनके सापेक्ष संपर्क में रहें, आदरणीय अफ़सोसजी का अनुभव और उनका साहित्य-अनुराग हम सभी के लिये दैदिप्यमान शलाका से कत्तई कम नहीं.
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