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आदरणीय ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के साथियों, आज इस फोरम के माध्यम से मैं आप सब से एक सामान्य किन्तु महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करना चाहता हूँ |

कुछ समय पहले तक साहित्य को पढ़ने हेतु केवल प्रिंट माध्यम ही था, जहा पर सामान्य लोगो की रचना प्रकाशित होना एक जटिल और दुरूह कार्य था या यह कहे कि कुछ असंभव सा कार्य था वहां केवल स्थापित और नामचीन साहित्यकारों को ही जगह मिल पाता था, यह उन साहित्य प्रकाशन करने वाली संस्था के लिये भी व्यावसायिक जरूरत भी थी | किन्तु आज हम सभी सौभाग्यशाली है कि वेब की दुनिया मे बहुत सारी साईट उपलब्ध है और जहाँ पर हम साहित्य पाठन और लेखन कर पाते है और वह भी बिलकुल मुफ्त |

ओपन बुक्स ऑनलाइन भी आज साहित्य के क्षेत्र मे एक स्थान बना चूका है और यह कहने मे मुझे तनिक भी हिचकिचाहट नहीं है कि जितनी सुविधायें इस साईट पर उपलब्ध है वो और किसी साहित्यिक साईट पर नहीं है |

आज हमलोग लाइव कार्यक्रम संचालित करते है जहा आप रियल टाइम बेस्ड कार्यक्रम मे शिरकत करते है, आप कि रचनायें हुब हु और आप के द्वारा प्रकाशित होती है साथ ही टिप्पणियाँ भी तुरंत प्रकाशित होती है | यह प्रिंट माध्यम मे असंभव था | उदाहरण स्वरुप "OBO लाइव महा इवेंट" तथा "OBO लाइव तरही मुशायरा" आप के सामने है |

मुझे जो एक बात खलती है कि लेखक/साहित्यकार घंटों/दिनों मेहनत करने के बाद अपनी रचना पोस्ट करते है और हम पढ़ने के पश्चात् एक टिप्पणी देना भी अपना फ़र्ज़ नहीं समझते, कुछ साहित्यकार भी केवल अपनी रचना पोस्ट करने के पश्चात् उसपर आयी टिप्पणी का प्रत्युत्तर भी नहीं देते और न ही अन्य लेखको की रचनाओं पर टिप्पणी देते है, लेखक को लेखन के बदले मे एक टिप्पणी ही तो मिलती है जो उनको और बढ़िया लिखने हेतु प्रेरित करती है |

क्या हम सभी रचनाओं पर अपनी टिप्पणी न देकर लेखको का हकमारी नहीं कर रहे है ?

इस मुद्दे पर आप क्या सोचते है कृपया अवगत करायें .............

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बाग़ी जी ये विमर्श आपने अच्छा शुरू किया | मुझे तो साहित्य -पत्रकारिता , रेडिओ और काव्य मंचों का काफी अच्छा बुरा अनुभव है | और मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ की रचनाकार के मन में लोगों की प्रतिक्रिया जानने की उत्सुकता हमेशा रहती है| जैसे एक गृहिणी को अपने बनाये भोजन पर खाने वालों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहता है| और यह सकारात्मक या नकारात्मक टिप्पणी ही एक हौसला देती है और बढ़िया करने की | अतः इस मंच पर हम सब का यह दायित्व बनता है की हम एक दुसरे को पढ़ें और उसकी अच्छाई को अच्छा कहें उसकी और कमियों की और इशारा भी अवश्य करें इस तरह रचनाकार ही नहीं हम सब परिमार्जित होंगे | और एक स्वस्थ परंपरा की शुरुआत होगी |मैं इधर कुछ दिनों शादी विवाह में व्यस्त था अब लौट आया हूँ मुशायरे में नहीं रहा इसका अफ़सोस है |सबने अच्छी गजलें कहीं|

गणेश जी,  नमस्कार ।

बहुत दिनों से चाह कर भी OBO पर अपनी उपस्थिती दर्ज नहीं करा पा रही थी । अब उपस्थित हूँ एवं OBO से सभी संबद्ध लोगों का हार्दिक अभिवादन करती हूँ ।

मैं आप की इस बात से पूर्ण रूप से सहमत हूँ कि रचनाकार की रचना को पढ़ने के बाद उस पर टिप्पणी तो अवश्य ही करनी चाहिए । इससे रचनाकार को इस बात का एहसास तो होता ही है कि उसकी रचना को पढ़ा गया है साथ ही उसे फिर से एक रचना करने के लिए encouragment  भी मिलता है । 

आदरणीय नीलम दीदी, यह सत्य है कि आप कि कमी OBO पर खलती रही, इस मध्य मुशायरे और महा इवेंट का काफी सफल आयोजन भी संपन्न हुए है |

आपने कहा "रचनाकार की रचना को पढ़ने के बाद उस पर टिप्पणी तो अवश्य ही करनी चाहिए । इससे रचनाकार को इस बात का एहसास तो होता ही है कि उसकी रचना को पढ़ा गया है साथ ही उसे फिर से एक रचना करने के लिए encouragment  भी मिलता है ।"

 

आपकी बातों से पूर्णतया सहमत हूँ |

नविन भाई , बहुत ही बढ़िया उदाहरण से आपने मेरी बातों का समर्थन किया है | धन्यवाद ...
मैं आप लोगों की बात से सहमत हूँ हर कोई अपनी रचना पर प्रतिक्रिया चाहता है अतः हमें फ़र्ज़ समझकर एक दूसरे सदस्य को प्रोत्साहित करना चाहिए यदि कोई कमी हो तो उस ओर भी ध्यान दिलाया जाना चाहिए कोई अपने में पूर्ण नहीं होता !!! यहाँ हर कोई खुले दिल से परिवार की भाँती है !!
मगर बागी जी पिछले इवेंट में और इधर कुछ दिनों से आप स्वयं , श्री योगराज जी और श्री राणा जी यहाँ कम ही दिखाई पड रहे हैं शायद व्यस्तता है |कभी कोई विशेष कार्य आन पड़े तो सदस्यों को अपने डिस्कशन में सूचित कर देने से या मेसेज दे देने से लोग आश्वस्त रहेंगे | मैं जब भी छ सात दिन गायब रहता हूँ तो पहले से खबर कर देता हूँ वैसे मेरा होना या नहीं होना शेक्सपीयर सा महत्त्व नहीं रखता |पर ओ.बी.ओ. की पूर्व सी जीवन्तता बनी रहे यह हम सबका प्रयास हो न चाहिए | एक सुझाव है की फीचर्ड पोस्ट का स्वरुप पहले सा रहे याने आरम्भ कि कुछ पंक्तियाँ दिखाई दे तो अच्छा रहेगा अन्यथा मात्र शीर्षक रह गये हैं |
शारदा बहन , आपने बिलकुल सही कहा है इसके लिये हम सभी को एक दुसरे की रचनाओं को पढ़ना चाहिये तथा उन रचनाओं पर टिप्पणिया देनी चाहिये | इससे अवश्य लेखकों का हौसला बढ़ता है और अच्छा लिखने मे सहयोग प्राप्त होता है |
Ji Muje aaisa lagta hai ki jis tarah salam ka jawab farz hai waise hi tippni ka uttar bhi farz hai. Kisi sathi ne samay nikal kar aapki rachnako padha aur phir us par tippani bhi ki aaise mai agar aap jawab nahi date to nihayat hi galat hai.

गौतम अरोरा जी, आपने मेरे मुह की बात जैसे छीन ली, आज कल कुछ लेखकों मे भी सामान्यतः देखने को मिल रहा है कि वो अपनी रचना पोस्ट करने के बाद उसपर आई टिप्पणियों को नजरअंदाज कर देते है और यह जरूरी भी नहीं समझते कि कम से कम टिप्पणीकार को धन्यवाद तो कर दे, यह तो सामान्य सा परंपरा रहा है कि कोई यदि आपको बधाई दे रहा हो तो आप उसे धन्यवाद बोले , या कोई आपकी कमियों को भी बता रहा हो तो हमारा फर्ज बनता है कि धन्यवाद कहे | 

वंदना जी आप का कथन दुरुस्त है, मेरा स्वयम का यह अनुभव है कि मैं जब भी कोई रचना पोस्ट करता हूँ तो मेरी रचना पर सर्वाधिक टिप्पणिया प्राप्त होती है, मैं अच्छी तरह से समझता हूँ कि इसका कारण यह नहीं कि मैं बहुत अच्छा लिखता हूँ , बल्कि इसका यह कारण है कि मैं सभी के रचनाओं पर टिप्पणी करता हूँ इसलिये मेरी रचनाओं पर भी टिप्पणी प्राप्त होती है |

मैं स्पस्ट रूप से यह भी कहना चाहता हूँ कि मेरा यह कतई मतलब नहीं है कि टिप्पणी इस सोच के साथ लिखा जाय कि मैं दूसरों कि रचनाओं पर टिप्पणी दूंगा तो मेरी भी रचनाओं पर टिप्पणी प्राप्त होगी, बल्कि टिप्पणी इस सोच के साथ दिया जाय कि यह तो रचनाकारों  का हक है और ये उन्हे मिलना ही चाहिये | 

क्या हम सभी रचनाओं पर अपनी टिप्पणी न देकर लेखको का हकमारी नहीं कर रहे है ?

 

अगर प्रश्न यही है तो मेरा उत्तर है नहीं कोई हकमारी नहीं हो रही है परन्तु अगर प्रश्न  होता कि,

 

क्या हम "अच्छी" रचनाओं पर अपनी टिप्पणी न देकर लेखको का हकमारी नहीं कर रहे है ?  

 

तो मेरा जवाब होता जी  हाँ यह लेखक के हक को मारना ही है कि रचना पसंद आने पर भी प्रशंशित  और प्रोत्साहित नहीं किया गया या कमेन्ट नहीं किया गया 

 

( यहाँ अच्छी रचना से मेरा तात्पर्य पाठक को पसंद आने से है न कि उस रचना को साहित्य के शिखर पर स्थापित रचनाओं से तुलना करने से )

 

रचना के पसंद आने के कई कारक हो सकते हैं कोई जरूरी नहीं कि मेरी एक रचना दो व्यक्ति को एक जैसी पसंद आये 

किसी को बेकार भी लग सकती है 

 

मंटो कि कहानी "ब्लाउज" या "हतक" बहुतों को अश्लील लगती है तो बहुतों को उसमें आदर्श कहानी के तत्व दिखते है तो क्या दोनों कि प्रतिक्रिया का स्वरूप प्रशंसा और प्रोत्साहन हो सकता है ?

कदापि नहीं

 

पसंद न आने पर भी कोई पाठक लेखक कि रचना कि तारीफ़ करे उससे बेहतर यह है कि वह चुप रह जाए 

 

ये बात तो आपको भी स्वीकार्य होगी कि नकारात्मक कमेन्ट लिखने से बचना चाहिए 

 

ब्लॉग जगत और असल जिंदगी में एक बड़ा फर्क ये भी होता है कि असल जिंदगी में एक समय में पाठक केवल पाठक होता है और लेखक केवल लेखक परन्तु ब्लॉगजगत में एक पाठक एक ही समय में लेखक भी होता है और एक लेखक एक ही समय में पाठक भी 

यह भी एक बड़ा अंतर है

 

जिस तरह हम किसी पुस्तक के गुण-दोष पर चर्चा कर सकते हैं ब्लॉग पर इस तरह कि चर्चा करने से बचते है

 

मैंने यह भी देखा है कि अंधा प्रोत्साहन भी नए लेखक को ले डूबता है

मुझे लगता है कि कमेन्ट वहीं करना चाहिए जहाँ  कमेन्ट करने के बाद आप कम से कम यह न सोचने लगे कि कमेन्ट कमेन्ट खेल कर बड़ा मज़ा आया 

या फिर कि चलो यार दो घंटे हैं तो ३०-४० कमेन्ट ही कर लिया जाये 

मुझे लगता है की हम सबको एक उदारवादी सम्यक लोच्परक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए |हम रचनाओं को पढ़ें और उनपर वही टिप्पणी करे जो मन में भाव आता है | तारीफ़ में कोई दिक्कत नहीं होती मगर जहा तक शिकायत की बात है इसमें भी हमारा रुख सुधारवादी और समालोचना का होना चाहिए |यदि हममे गुरुता है तो हमें दूसरों को राह दिखाने का भी कार्य करना चाहिए |साहित्य जगत कृतग्य रहेगा |

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