For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवोदित रचनाकारों की उपेक्षा क्यों ?

            साथियों यह सच है कि लेखन का आरम्भ स्वान्तः सुखाय होता है | रचनाकार की साहित्यिक अभिव्यक्ति वास्तव में उसका भोगा हुआ यथार्थ होता है जो एक सुनिश्चित स्वरुप और शिल्प में सामने आता है | यह गढना और गढ़ने की क्षमता ही उस व्यक्ति को आम से अलग बनाती है | दस - बीस वर्षों के लेखन के बाद अपने अपने कारणों और प्रोत्साहनों के ज़रिये जब हम समाज के समक्ष आते हैं तो हमें अपेक्षा रहती है कि कुछ सार्थक समालोचना प्राप्त होगी मार्गदर्शन मिलेगा खास कर अपने से वरिष्ठ रचनाकारों का | परन्तु अक्सर हर स्तर पर हमें और हमारे भीतर के रचनाकार के अस्तित्व को ही नकारा जाता है | वह चाहे समाचार पत्र -पत्रिका हो , साहित्यिक मंच हो , या शासन-प्रशासन का तंत्र | हर जगह कुछ पुराने रचनाकारों का पैनल नुमा प्रभावी अस्तित्व नमूदार है जो अपने साथ (आगे ,पीछे या बराबरी में ) हमें देखना नहीं चाहता | यही नहीं वह हमारी क्षमता को जान पहचान कर भी कई बार उसे नकारता है | कहीं इसके पीछे उसमे असुरक्षा की भावना तो नहीं ? एक बार ऐसी ही पीड़ा से गुजर कर मैंने लिखा था -

      " बरगदों के लिये है भारत रत्न , और बिरवों को पद्मश्री भी नहीं |"

एक समय था जब बड़े बड़े स्थापित साहित्यकार नवोदितों को प्रोत्साहित करना अपना युगधर्म समझते थे | काशी में ही जयशंकर प्रसाद और भारतेंदु बाबू के यहाँ की गोष्ठियां नवोदितों को प्रोत्साहित करने और उन्हें परिमार्जित करने का महती कार्य करती थीं जिनसे निकल कर कई रचनाकार हिंदी साहित्य की धरोहर बने |

         इसके उलट आज के प्रायः अधिकाँश साहित्यकार या तो किसी व्यामोह में फंसे हैं और उन्हें अपने सिवाय कुछ दिखाई नही दे रहा या वे भविष्य से मुंह चुरा रहे हैं |अब वे अपनी ख्याति को और-और आगे बढ़ाने के गुणा-गणित में लगे रहते है| प्रकाशन से मंच तक मठ ,गुट और गढ़ बने हैं |आप किसी भी शहर में जाईये वहाँ वही दस बीस साहित्यकार आपको हर जगह दिख जायेंगे | उनकी एक ही कविता इतनी प्रसिद्ध है कि उसे वे दस वर्षों से हर मंच पर सुना रहे होंगे और आपकी दस रचनाओं को जगह नहीं मिलेगी | मेरा किसी बड़े साहित्यकार से कोई दुराव नहीं उन्हें पढ़ - सुनकर ही हमने कुछ कहना - लिखना सीखा है , पर बात सिर्फ इतनी है कि वे समाज के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन करें और उसके समक्ष नए लोगों को भी सामने लाएं | आज हर जगह जो शून्यता है उसके लिये ये प्रवृति भी कम जिम्मेदार नहीं | यह विमर्श इस लिये कि हम नए लोग अपने सुख दुःख जो हम एक रचनाकार के रूप में सहते ,भोगते हैं , उसे एक स्वर मिल सके | मेरा मंतव्य है कि ओ.बी.ओ. रूपी यह स्थान भविष्य में एक धरोहर के रूप में देखा जाये जहां प्रोत्साहन पाकर कई रचनाकार उभरेंगे और अपना मुकाम बनायेंगे |आप भी अपने साथ जो घटा - बढ़ा वह यहाँ शेयर करें | ताकि नए पुराने सभी वस्तुस्थिति से वाकिफ हो सकें | यह स्थिति कमोबेश हर सृजन क्षेत्र में है | साहित्य ,रंगकर्म ,सिनेमा , चित्रकला ,संगीत , पत्रकारिता ... किसी भी विधा से संबद्ध हर कोई अपनी आप बीती शेयर करे ...शायद हमारी अभिव्यक्ति की यह पहल कुछ रंग लाये | जो साथी अभी ओ.बी.ओ. के सदस्य नहीं हैं वे सदस्य बन (लाग-इन कर ) इस विमर्श रथ को आगे बढ़ाने में बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं |

               अंत में अपने एक वरिष्ठ सहयोगी रहे अकाशवाणी के पूर्व अधिकारी और शायर मरहूम मो. सलीम राही की पंक्तियों से आपका स्वागत करता हूँ -

                 "देखना कश्ती समंदर देखना

                   और लहरों में उतरकर देखना

                   आज़माइश के लिये तो भंवर है

                    मत किनारों पर मुकद्दर देखना "

Views: 4674

Reply to This

Replies to This Discussion

गोर्की ,गैलीलियो,पिकासो

या अपने कबीर और निराला

किसने नहीं झेला उपेक्षा का दंश ,

पर निखरे वे ,

सामने आये और निखरकर

चाहे थोडा आगे या थोडा पीछे !!!!

आपकी बात से पूर्ण सहमत होते हुए मैं केवल इतना कहना चाहूँगा कि ओ.बी.ओ.के गठन ने न केवल नवीन साहित्यकारों को एक सशक्त मंच प्रदान किया है,बल्कि social networking sites की परिभाषा ही बदल दी है,हम सभी आभारी हैं OBO Admin के जिन्होंने एक सार्थक पहल की है.यह हमारा कर्त्तव्य है कि हम इसके विकास में अपना पूर्ण योगदान दें एवं यह प्रयास करें कि हमारे आसपास अन्य जितने भी हम जैसे रचनाकार मिलें उन्हें इस मंच तक ले आयें.ताकि यहाँ के वरिष्ठ साहित्यकारों की सराहना और मार्गदर्शन पाकर उनकी प्रतिभा और भी निखर व सँवर सके.

Ji Ashutosh ji sangharsh hi rachna ke liye indhan ka kam karta hai.OBO nishchitt roop se ek shreshth manch hai.yahan koi bhed nahin.sabhi ka samadar hai.

jai ho

आपकी बातों के मर्म को यदि मैं सही समझ रहा हूँ, आशुतोषजी, तो यह एक शुभ संकेत है.  इस विषय पर वैचारिक स्पष्टता और स्पष्ट मार्गदर्शन चाहिये नकि भावुक शाब्दिकता.  पानी में कंकर फेंक कर हड़बोंग मचा देना, भाई साहब, सदा-सदा से सरल रहा है, आसमान में पत्थर उछालने के तथाकथित इंगित और बिम्ब के नाम पर. लेकिन प्रतिक्रियात्मक लहरों को शांत करने की सकारात्मक कोशिश वैचारिक और सकारात्मक दृढ़ता की मांग करती है.

खैर, इस पर फिर कभी.

सर,यदि मैं सच कहूँ,तो जीवन में इतने दर्द बटोरे हैं कि अब भावुकता के लिए कोई स्थान रह ही नहीं गया है.सत्य के संघर्ष में मैं अपना योगदान देने से पीछे हटने वालों में से कभी नहीं रहा हूँ.मेरी कलम हो या मेरी ज़ुबान बेख़ौफ़ मन की बात बयाँ कर देती है.परिणाम की परवाह मैं कभी नहीं करता,क्यूंकि मुझे ऊपरवाले पर पूरा विश्वास है कि वह कभी किसी का बुरा नहीं करता.अपने अनजानेपन में लोग जिसे बुरा मान लेते हैं.उसमें भी,एक अच्छाई छुपी होती है.ऐसा मेरा नज़रिया है.सत्य और अधिकारों के इसी संघर्ष के चलते मैं किसी के अधीन कार्य नहीं कर पाता.यह बात श्री अरुण पाण्डेय जी जैसे मेरे परम आदरणीय भ्राता समान मित्र बखूबी जानते हैं,जिनके साथ आकाशवाणी-वाराणसी में मुझे कुछ दिन कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है.परन्तु वहाँ की गन्दी राजनीति और नव आगंतुकों के संग होने वाले दुर्व्यवहारों ने मुझे इतना आन्दोलित कर डाला कि मुझे वह कार्य स्थली त्यागनी पड़ी.जहाँ तक OBO के विकास की बात है तो मैं बताना चाहूँगा कि इसी उद्देश्य के निमित्त मैंने अपने Facebook account पर ATS Impressions नाम से एक authors association की परिकल्पना रच रखी है,बाकी ऊपरवाले का आसरा है कि वह कितनी सफलता दिला पाता है.जबतक यह OBO मंडल निष्पक्ष और राजनीति से दूर रहेगा,मैं हार्दिक रूप से आप सभी की सेवा में उपस्थित मिलूँगा.मेरा लक्ष्य सफल हो,यह आशीर्वाद दीजिये.

आदरणीय श्री आशुतोष जी | मैं सदा उनके साथ हूँ जो एक मुहीम के साथ मीडिया के किसी भी अंग से जुड़े हैं अथवा आह की उपज को मात्र विलासिता की चीज़ न मान एक लेखकीय दायित्व समझते हैं | दूसरे मैं उनके भी साथ हूँ जिनकी कथनी और करनी एक है | हां  तुच्छ राजनीति हर जगह है हम उससे हौसले और पूरे माद्दा से लड़ें | इस उम्मीद के साथ की देर का अर्थ अंधेर नहीं होता | साधुवाद आपको आपका एक नया रूप ओ बी ओ पर देख रहा हूँ वह बौद्धिक और परिपक्व है आप सफल हों आगे बढे यही कामना है !!

अभिनवजी, आप ओबीओ के साथ हैं, यह हमारे लिये कम बड़ी सनद नहीं है. :-)))))))

 

//तुच्छ राजनीति हर जगह है हम उससे हौसले और पूरे माद्दा से लड़ें | इस उम्मीद के साथ की देर का अर्थ अंधेर नहीं होता //

यदि तुच्छ राजनीति यदि हर जगह दीखती है तो कृपया स्पष्ट बतायें कि ओबीओ के संदर्भ में आपको अभीतक ऐसा क्या अनगढ़ दीखा है?  फिर, किसी अनगढ़ पर आपकी कौन सी आवाज़ दबी है या दबाई गयी है ?  आगे बढ़ कर सकारात्मक और उचित कहने और करने देने में कौन बाधा बन रोक रहा है?

भाई अभिनवजी, आप ओबीओ कार्यकारिणी समिति के सबल सदस्य हैं. हुचहुचाती हुई आवाज़, भाईजी, उनको शोभा देती है जिनके पास औचित्य तो होता है किन्तु आवश्यक अधिकार नहीं. या जिनको अक्सर किसी न किसी बहाने हाशिये पर रख दिया जाता है.  किसी सकारात्मक सोच को परिपालित करवाने के क्रम में आपके पास, अभिनवजी, इस मंच पर तो दोनों अवयव सुलभ हैं. आपके पास औचित्य तो है ही, सबल अधिकार भी है.  फिर आपका बात-बात पर असहाय दीखना समझ में नहीं आया. 

संघर्ष एक सत्य है.  लेकिन ओबीओ के संदर्भ में यह संघर्ष किनके विरुद्ध ? और संघर्ष हो भी तो क्यों ? सार्वभौमिक क्रियाप्रणाली क्यों नहीं ? आप स्वयं आगे क्यों नहीं बढ़ते. हम अनुपालन करेंगे.

:-)) bade logon ke aage hathiyaar daal dena hi munasib hai |

तो क्या छोटों के साथ अत्याचार करेंगे ?

:))))))))))))))))

:-)) मैं अपने अलावा हर किसी को बड़ा मानता हूँ साधिकार और सस्नेह !!

अभिनवजी, ये बड़े लोग कौन हैं ? वो किन संदर्भों में बड़े हो गये ? बड़ा होना ’पहुँचवाला’ होना है क्या ? यदि हाँ, तो यह ’पहुँच’ क्या है ? इस ’पहुँच’ की मूलभूत इकाई क्या है ? क्या वे तथाकथित बड़ेलोग मनमानापन चलाते दीखते हैं ? क्या उनके ’मनमानेपन’ से पाठक और रचनाकार त्रस्त हैं ? इन पंक्तियों में ’हथियार’ का क्या अर्थ है? ’हथियार’ को किन संदर्भों में लिया गया है ? उसे डालना क्यों ? हथियार डालना क्या अपनी कमियों के प्रति साग्रह स्वीकृति का द्योतक है या अपनी आवाज़ को दबे हुए देखना ? 

भाईजी, कुछ स्पष्ट नहीं हो पा रहा है. 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
22 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service