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आभार सर।
आदाब। बहुत सुंदर दिलचस्प ट्विस्टेड कथनोपकथन के साथ हमारे सामाजिक परिदृश्य पर तंज करते हुएबरमा जैसे सच्चे व भोले सामाजिक अंग की स्थिति व परिस्थितियों को शाब्दिक करते हुए दलित विमर्श पर करारे सार्थक व विचारोत्तेजक जवाबों सहित बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया दिव्या राकेश शर्मा जी। इस तरह की रचनाओं की आवश्यकता है सामाजिक समानता के बीज अंकुरित कराने हेतु।
आभार सर।
आदरणीया दिव्या जी! लघुकथा के ब्याज आपने बहुत कुछ कहने की कोशिश की है।सफलता भी मिली है आपको।पर,आज दलित या पिछड़ा होना पछतावे का सबब नहीं रह गया है;बल्कि यह तो अब साख और धाक का पर्याय बन चला है।खैर, विमर्श की मानिंद ये सब मुद्दे अब भी शीर्षक बने हुए हैं।लघुकथा हेतु आपको बधाई।
आभार सर।
बिल्कुल नए विषय पर प्रभावशाली लघुकथा कही है दिव्या शर्मा जी, बधाई प्रेषित है।
आभार सर।
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