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आदरणीय कांता रॉय जी आप को लघुकथा धीरेधीरे रफ्तार बढ़ाते हुए अंत की और बढती है. अंत में पञ्च लाइन का जबरदस्त प्रभाव छोड़ती है. यह लघुकथा का गुण है कि व्यक्ति में यह भाव बना रहे कि आगे क्या होगा. इस मायने में आप की लघुकथा सफल रही है. आप ने पाठकों में अंत तक जिज्ञासा जगाए रखी. यह इस लघुकथा की सब से बड़ी विशेषता है. अंत भी बड़ा ही मार्मिक बना है-/// " अरे , बृजमोहन....साहब... आप ...! " आवाज हलक में ही अटक गई ।// बधाई आप को.
आपकी इस लघुकथा के सम्बन्ध में में कुछ बातें कहना चाहूँगा आ० कांता रॉय जी. लघुकथा कहने का आपका प्रयास सराहनीय है किन्तु अंत तक पहुँचते पहुँचते नाटकीयता का शिकार हो गई, जिस कारण मारक बनते बनते रह गई. दूसरी बात जो मुझे बहुत खली वह है अंग्रेजी शब्दों का असंयत प्रयोग.
//पूर्वाग्रहों के कारण हाथ आये चाँस को मिस करना //
//उसने दरवाजे पर नॉक किया //
विवरण देते समय ऐसी शब्दावली के प्रयोग से रचना में गाम्भीर्य का पुट हल्का रह जाता है. बहरहाल, प्रतिभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारें.
वार्तालाप या संवाद में अंग्रेजी अथवा आंचलिक भाषा की शब्दावली प्रयोग की जा सकती है, किन्तु विवरण में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग उचित नहीं आ० नीता सैनी जी I
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