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आदरणीय कांता राॅय जी, लघुकथा जीवन के छोटे-छोटे अंशों को सूक्ष्मदर्शक यंत्र से देखने का प्रयास करती हुई सूक्ष्मतर संवेदनाओं को वहन कर उन्हें प्रभावी ढंग से पाठकों तक सम्प्रेषित करती है और उन्हे ‘कुछ’ सोचने पर बाध्य करती है। ये क्षण जब लघुकथा में आकार पाते हैं तो एक पूरे परिवेश का बिम्ब प्रस्तुत करते हैं और ‘नावक के तीर’ की तरह गम्भीर घाव कर सकने की क्षमता भी रखते है। प्रस्तुत लघुकथा की प्रभाव की सघनता, सम्प्रेषण की क्षमता, सूक्ष्मता व इकहरे कथ्य ने इसको को इस कद्र प्रभावोत्पादक बना दिया है मुख से स्वतः ही ‘वाह ! क्या बात है’ निकलता है । इस कथा में कांता राॅय की गंभीरता व प्रौढ़ता स्वयं ही झलकती है। कथा शुरू से अंत तक पाठक को बांध रखने में पूरी तरह सफल सिद्ध हुई है। प्रदत्त विषय से पूर्णरूपेण न्याय करती कथा हेतु हृदय से शुभकामनाएं निवेदित है। सादर
आपकी ये प्रतिक्रिया मेरे लिए संजीवनी के सामान हुई है आदरणीय रवि जी। जानते है , कल रात जब कथा पोस्ट कर दी थी तब मन में एक अपराधबोध ने आ घेरा था। सोची कि अगर ये लघुकथा सही नहीं होगी तो ! क्या मेरे द्वारा प्रस्तुत एक कमजोर लघुकथा से इस गोष्ठी का आगाज़ हुआ है इसबार ? ग्लानि से भर गयी थी मैं एकदम से। सुबह तक मनोबल गिरा हुआ ही था।
जब सर जी की प्रतिक्रिया आई तो मन को जरा संबल मिला, और आपकी प्रतिक्रिया से मन एकदम से मयूर हो गया। सच कहूँ तो, मैं सदा सार्थक लिखकर आपके द्वारा अच्छा सुनाने की चाह रखती हूँ , और इसी चाह ने इस सफर को नया आयाम दिया है।
अधिक कुछ नहीं कहूँगी ,नहीं तो आप भी मेरा.........! निःशब्द हूँ , ऐसा लगता है कि जिंदगी में पहली बार ही कुछ लिख पायी हूँ। आभार आपका ह्रदयतल से , नमन नहीं कहूँगी अबसे , हा हा हा हा ,सादर।
बहुत सुंदर, प्रतीकों का शानदार प्रयोग,शीर्षक को पूरी तरह परिभाषित करती कथा पर आपको बहुत बहुत बधाई.
हृदयतल से आभार आपको आदरणीया सीमा जी कथा पसंदगी हेतु।
सच्ची में नेहा जी !!!! :))))) हा हा हा हा...... आभार आपको ढेर सारा नेहा जी मेरा हौसला बढ़ने के लिए।
वाह, बहुत ही शानदार लघुकथा कही है आदरणीया कांता जी, कई बार लालच के कारण संकल्प का छूट ही जाता है, लक्ष्य का संधान कर जब लक्ष्य के अलावा कुछ और न दिखाई दे तो ही संकल्प सार्थक है| पाठको को शुरू से अंत तक बाँधने रखने में सफल चुस्त लघुकथा हेतु कृपया सादर बधाई स्वीकार करें|
आपका सदा मेरी लघुकथा पर हौसला बढ़ाना एक संबल देता है आदरणीय चंद्रेश जी। आभार आपको तहेदिल।
संकल्प लेना बहुत आसान है किन्तु उस पर टिके रहना बहुत ही कठिन। अनेक लालच व चकाचौंध पूर्ण राहें अपनी ओर खींचने का प्रयत्न करती हैं। सफल वही है, जो इन से पार पा गया। बहुत सुन्दर संदेश देती लघुकथा प्रिय कान्ता जी
तहेदिल आभार आपको आदरणीया नीरज जी कथा पर मेरा हौसलावर्धन के लिए।
प्रदत्त विषय पर बहुत शानदार शब्दों की चासनी में लपेटकर परोसी गयी रचना हेतु बधाई क़ुबूल कीजिये आ कान्ता जी । विषयानुरूप रचना हुई है और उद्घाटन भी आपने किया है इसलिए साधुवाद
उद्घाटन तो कर दिए थे मैंने आदरणीय विनय सर जी ,लेकिन कथा की आकार -प्रकार को लेकर बहुत चिंतित थी. पूर्वाग्रह से ग्रसित थी , लेकिन ऊपर वाले की मेहरबानी रही इस बार कि आपसे सराहना पाने की अधिकारी हुई। मेरे लिए आपके द्वारा कहे गए प्रत्येक शब्द बहुत मायने रखते है। सादर अभिनन्दन आपका।
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