सभी साहित्य प्रेमियों को सादर वन्दे !
जैसा कि आप सभी को ज्ञात है ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "ओबीओ लाईव महा उत्सव" का आयोजन होता है, उसी क्रम में प्रस्तुत है :
"OBO लाइव महा उत्सव" अंक १३
इस बार महा उत्सव का विषय है "मौसम "
आयोजन की अवधि :- मंगलवार ८ नवम्बर २०११ से गुरूवार १० नवम्बर २०११ तक
महा उत्सव के लिए दिए गए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है:
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन से जुड़े सभी सदस्यों ने यह निर्णय लिया है कि "OBO लाइव महा उत्सव" अंक १३ जो कि तीन दिनों तक चलेगा उसमे एक सदस्य आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही प्रस्तुत कर सकेंगे | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध और गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकेगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा और जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी |
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ८ नवम्बर लगते ही खोल दिया जायेगा )
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |
मंच संचालक
धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)
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सबपर स्नेह सुधा बरसावै
पीठ ठोंक उत्साह बढ़ावै
मस्त कलंदर जैसे जोगी
ऐ सखी साजन? न सखी योगी
जय हो, जय हो, जय हो
करोड़ों करोड़ बधाई स्वीकारें योगराज जी
दिल से धन्यवाद धर्मेन्द्र भाई कि आपको मेरी कोशिश पसंद आई !
सुन्दर टिपण्णी.
कभी बर्फ के गोले जैसा
नहीं किसी बहरूपी से कम
ऐ सखी साजन ? न सखी मौसम !.............बहुत ही सुन्दर कह मुकरियां .....|
धन्यवाद बृजभूषण चौबे जी !
इसके रूप अनोखे देखे
वफ़ा भी देखी, धोखे देखे,
दुआ करूँ, ना हो ये बरहम
ऐ सखी साजन ? न सखी मौसम !वाह बहुत ही खूबसूरत कहा
आपने मेरे प्रयास को सराहा, दिल से शुक्रिया सिया जी !
आदरणीय प्रभाकर जी, आपकी ये कहमुकरियां पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. मौसम के मिजाज़ को उतने ही बेहतरीन अंदाज़ में बयां किया है आपने. आपकी कहमुकरी कहने की कला सचिन तेंदुलकर की बल्लेबाजी के कौशल की ही तरह है, अनुभव और उम्र के साथ निखार ही आता है....इस टेस्ट मैच में भी उसने ७६ का स्कोर कर दिखाया...बहुत उम्दा कहमुकरियां हैं प्रभु जी...हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये... ये कहमुकरी सबसे ज्यादा गुदगुदाने वाली लगी
//मस्ती में चुनरी भी खींचे
कभी रजाई में आ भींचे
दिल में रहे शरारत हरदम
ऐ सखी साजन ? न सखी मौसम ! //
धरम भाई, आपने मुकरियाँ पसंद कीं - दिल से शुक्रिया आपका !
वाह वाह वाह! आनंद आ गया आदरणीय योगराज भईया...
कितनी अदा से मुकरे हैं आप हर बार... वाह!
आज लंच अवर में दोस्तों से मुकर कर आपकी तरह 'कह मुकरने' का प्रयास कर रहा था... लेकिन एक दो से आगे कोशिश परवान नहीं चढ़ पायी... यहाँ आकर तो आनंद ही आ गया... वाह! एक से बढ़कर हैं सभी...
सादर नमन....
दिल से शुक्रिया आपका संजय भाई ! अरे भाई मुकरिये न, मैं तो कब से इंतज़ार कर रहा हूँ आपके मुकरने का !
मुकर नहीं पाया गुरुवर... मौसम ही मुकर गया... :))
सादर नमन..
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