For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साथियो,

ओपनबुक्स ऑनलाइन के मंच से श्री राणा प्रताप सिंह द्वारा OBO लाइव तरही मुशायरा-५ का आयोजन दिनांक २० नवम्बर से २३ नवम्बर तक आयोजित किया गया था ! इस बार ग़ज़ल कहने के लिए निम्नलिखित मिसरा दिया गया था:

"हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है"

इस मिसरे की ज़मीन को लेकर मुशायरे में कुल २३ शायरों - सर्वश्री नवीन चतुर्वेदी जी (63 शेअर), धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी (१६ शेअर) डॉ ब्रिजेश त्रिपाठी जी (२६ शेअर), शेषधर तिवारी जी (२३ शेअर), आशीष यादव जी (४ शेअर), अरविन्द चौधरी (५ शेअर), रवि कुमार गुरु जी (४ शेअर), राणा प्रताप सिंह जी (१३ शेअर). हिलाल अहमद हिलाल जी (९ शेअर), मोईन शम्सी जी (७ शेअर) वीरेन्द्र जैन जी (१२ शेअर), तरलोक सिंह जज्ज जी (८ शेअर), आचार्य संजीव सलिल जी (५ शेअर), गणेश बागी जी (५ शेअर), बिनोद कुमार राय जी (९ शेअर), दिगंबर नाशवा जी (६ शेअर), हरजीत सिंह खालसा जी (४ शेअर), रेक्टर कथूरिया जी (६ शेअर) मोहतरमा अनीता मौर्य जी (४ शेअर), मोहतरमा मुमताज़ नाज़ा जी (८ शेअर), मोहतरमा अनुपमा जी (७ शेअर) डॉ नूतन जी (४ शेअर) और इस खाकसार योगराज प्रभाकर (७६ शेअर) ने अपना कलम पेश किया ! कुल मिला कर २३ शुअरा ने ३२४ शेअर इस निशस्त में पढ़े, यानी प्रति व्यक्ति औसत १४ से ज्यादा से ! इन आशार में आधुनिक और परम्परागत रंगों का एक मधुर सुमेल देखने को मिला ! रचनायों को मिला कर कुल ५७४ कमेंट्स इस मुशायरे में दिए गए यानी की एक दिन में औसतन १४४ कमेंट्स !

इस मुशायरे में पढी गईं आधुनिक हिन्दी ग़ज़ल जहाँ द्वापर-त्रेता युग के बिम्बों को प्रयोग करती पाई गई, वहीँ मौजूदा दौर के हर पहलू को भी उसने बखूबी छुआ है ! बात खेत खलिहान की भी हुई, आत्महत्या करते किसान की भी ! ज़िक्र २६/११ का भी हुआ तो कसाब भी एक बिम्ब बना ! जहाँ एक ओर "पीपली" और "नत्था" के दुःख का ब्यान है तो दूसरी तरफ ग़ज़ल का रुख क्रिकेट की पिच की जानिब हुआ है ! किस्सा मुख़्तसर, इस मुशायरे में वो रंग और वो लब-ओ-लुबाब सामने आया जो आम तौर पर देखने को नहीं मिलता है ! बहुत से शब्द गालिबन पहली बार हिंदी ग़ज़ल में प्रयोग किये गए है, जिनका पता केवल पूरे आशार पढने पर ही चलेगा !

इस मुशायरे में प्रस्तुत सभी रचनायों को पाठकों की सुविधा के लिए एक साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि वे साथी जो किन्ही कारणों से इस में शरीक नहीं हो पाए थे, सभी रचनायों का एक साथ आनंद उठा सकें ! !

//जनाब नवीन चतुर्वेदी जी //

अँधेरे की तन्हाई में तू जब भी याद आता है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है|१|
तेरा मासूम चहरा वो तेरी मस्ती भरी आँखें|
वो हँसना, खिलखिलाना, झूमना सपने सजाता है|२|
किताबों में पुराने खत, खतों में फूल मुरझाए|
गुलों में वायदों का अक्स अक्सर झिलमिलाता है|३|
गली के मोड़ पर तेरा ठिठकना, मेरा भी रुकना|
न कुछ कह के, सभी कुछ बोल देना याद आता है|४|
कभी फ़ुर्सत मिले तो पूछना खुद से अकेले में|
कभी क्या ज़िक्र मेरा धडकनें तेरी बढ़ाता है|५|
ग़ज़ल जो है लिखी, उस को पढ़ो, तब तक अपुन यारो|
नये अंदाज के कुछ और मिसरे ले के आता है|६|

गुलामी की कहानी जब कोई फिर से सुनाता है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है|७|
मगन है हर कोई अब तो फकत अपनी बनाने में|
शहीदों की शहादत का किसे अब ख्याल आता है|८|
किसानों की सुसाइड आम अब तो हो गयी य्हाँ पर|
वहाँ स्विस बेंक वालों का खजाना खनखनाता है|९|
हजम होता नहीं हमसे कि जब कोई सियासतदाँ|
ग़रीबों के घरों में जा कुछिक लमहे बिताता है|१०|
तमाशा आज भी जारी है दुनिया की नुमाइश में|
जहाँ पर आम इन्साँ आज भी ठुमके लगाता है|११|
फकत वाव्वा न करना, ना समझ आये तो कह देना|
तुम्हारा दोस्त यारो हर किसम के गीत गाता है|१२|

हमारे बोलने पे जब कोई बंदिश लगाता है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है|१३|
हमारी हसरतें क्यूँ आज भी मोहताज हैं उन की|
जिन्हें हर हाल में अलगाव का ही राग भाता है|१४|
हुकूमत क्यूँ उसी को रहनुमाई सौंप देती है|
लुटेरू लश्करों के भाग्य का जो खुद विधाता है|१५|
मुझे भी पूछना है कौश्चन ये आर टी आई से|
भला हर रोज चपरासी कहाँ से माल लाता है|१६|
अभी भी सैंकड़ों घर ऐसे हैं हर एक कस्बे में|
जहाँ पर चार खाते हैं, और इक बन्दा कमाता है|१७|
कहीं कोई रुकन गिन के बहर में शेर गढ़ता है|
कहीं कोई लतीफ़े दाग के वव्वाही पाता है|१८|
ज़रा सा ब्रेक ले लो दोस्तो अगली घड़ी तुमको|
भयानक रस का पर्यायी घना जंगल दिखाता है|१९|

अंधेरी रात में जंगल जभी सीटी बजाता है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है|२०|
कहीं पर साँप की फुंफ्कार धडकन को बढ़ाती है|
कहीं पर झींगुरों का झुण्ड जम के झनझनाता है|२१|
कहीं सूखे पड़े पत्ते अचानक कुरकुराते हैं|
कहीं पटबीजना लप-लप्प कर के भुकभुकाता है|२२|
कहीं मेंढक सभी इक ताल में ही टरटराते हैं|
कहीं पर स्यार भी अपना तराना गुनगुनाता है|२३|
किसी इन्सान के भीतर भी हो सकता है ये जंगल|
यही जंगल उसे इन्सान से वनचर बनाता है|२४|
इसी जंगल से खुद को अब तलक हमने बचाया है|
चलो अब आप को कुछ और शिअरों को सुनाता है|२५|

हमारी भावनाओं को कोई जब छेड़ जाता है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है|२६|
कोई अपना हमारे साथ जब खिलवाड़ करता है|
ज़रूरतमंद कइयों के मुक़द्दर ढाँप जाता है|२७|
फिसलती रेत हाथों से जभी महसूस हो तुमको|
समझ लेना कोई अपना फरेबी कुलबुलाता है|२८|
उसे अपना समझ लें किस तरह तुम ही कहो यारो|
हमें जो देखते ही कट्ट कन्नी काट जाता है|२९|
किसी का आसरा कर ना, खुदी पे कर भरोसा तू|
हुनर तो वो, जहाँ जाये, वहीं महफ़िल सजाता है|३०|
उसे कह दो हमें परवाह भी उस की नहीं है अब|
सरेबाजार जो हमको सदा ठेंगा दिखाता है|३१|
हमें उस का पता अब ढूँढना होगा मेरे यारो|
बिना ही स्वार्थ जो इंसानियत के गुर सिखाता है|३२|
हमारा कल बिना जिनके नहीं मुमकिन नहीं मुमकिन|
चलो उन लाडलों के पास तुमको ले के जाता है|३३|

ठिठुरती ठंड में जब कोई बच्चा कुलबुलाता है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है|३४|
हमारे मुल्क का बचपन पड़ा है हाशिए पर क्यूँ|
उसे विद्यालयों से, कौन है, जो खींच लाता है|३५|
कि जिन हाथों में होने थे खिलोने या कलम, पुस्तक|
उन्हें ढाबे तलक ये कौन बोलो छोड़ जाता है|३६|
सड़क पे दौड़ता बचपन, ठिकाना ढूँढ्ता बचपन|
सिफ़र को ताकता बचपन फकत आँसू बहाता है|३७|
यही बचपन बड़ा हो कर जभी रीएक्ट करता है|
जमाना तब इसे संस्कार के जुमले पढ़ाता है|३८|

हमीं में से कोई जब भ्रूण की हत्या कराता है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है|३९|
हमीं में से किसी की जब कोई किडनी चुराता है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है|४०|
हमीं में से कोई जब बेटियों को बेच आता है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है|४१|
हमीं में से कोई जब नेकी का ईनाम!!!!! पाता है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है|४२|

बड़ी दिलकश है ये महफ़िल, बड़ा दिलकश नज़ारा है|
कहीं चर्चा तुम्हारी है कहीं किस्सा हमारा है|४३|

रज़ाई में दुबकना या अंगीठी के निकट होना|
हमारी याद में अब तक वो आलू का पराँठा है|४४|

मदरसे जाते थे जब हम करों में धार दस्ताने|
जमाना वो भी था क्या खूब, अक्सर याद आता है|४५|

वो जाड़ों की, गुरु जी की 'छड़ी' जब याद आती है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है|४६|

वो हलवा गाजरों वाला, अधोंटा दूध नुक्कड़ का|
जो पीते कुल्लडों में, जीभ पे पानी फिराता है|४७|

छतों पर धूप का सेवन, वो सरसों तेल की मालिश|
लबों पर की दरारों वाला मंज़र सुगबुगाता है|४८|

नदी के पार जा, गाजर औ मूली तोड़ के खाना|
कतारे और कमरक चूसना, लज़्जत जगाता है|४९|

गुलाबी सर्दियों की पूर्व संध्या पर मेरे यारो|
बदन की हरकतों ने ख्वाहिशों को न्यौत डाला है|५०|

गणेशी ने कहा है, शाइरों को टिप्पणी तो दो|
भई महफ़िल का ये दस्तूर तो सदियों पुराना है|५१|
----------------------------------------------------------
सनम तुझसे जुदा होने का जब भी ख्याल आता है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है|५२|

बिना तेरे मेरे दिलदार कैसे जी सकूँगा मैं|
बिना देखे तुझे इक पल न ये दिल चैन पाता है|५३|

सरेमह्फिल पचासों लोगों की मौजूदगी में भी|
वो हालेदिल निगाहों से सुनाना याद आता है|५४|

घनी जुल्फों के साये में, लरजते होठों की हरकत|
मैं जब भी याद करता हूँ, बदन ये झनझनाता है|५५|

मेरे कानों से सट कर शब्द बोले तीन जो तूने|
उन्हें इक बार फिर से सुनने को दिल छटपटाता है|५६|

कई घंटों तलक इक दूसरे के हाथों को थामे|
वो ना ना करते करते मान जाना गुदगुदाता है|५७|

मेरे यारो तयारी कर लो अब ईवेंट की खातिर|
जहाँ जादू हुनर का हर किसी का दिल लुभाता है|५८|

न आ पाए जो पिछली बार, इस दम वो ज़रूर आएँ|
तुम्हारा दोस्त अपने दिल की महफ़िल में बुलाता है|५९|

सलिल, एस डी, त्रिपाठी जी, प्रभाकर, आर पी, बागी|
तुम्हें इस कामयाबी का सहज ही श्रेय जाता है|६०|

बहुत खुश हूँ, इसे मैं देख कर, मेरी सदा-ए-दिल|
नुमाया है हरिक सू, हर कोई वो दोहराता है|६१|

ये महफ़िल है हबीबों की, ये महफ़िल है तलीमों की|
ये महफ़िल वो, जहाँ हर इक सुखनवर तुष्टि पाता है|६२|

कभी जो ख्वाब देखा था, मुकम्मल हो रहा है अब|
मेरा मासूम दिल ये देख कर बस मुस्कुराता है|६३|
----------------------------------------------------------
//श्री धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी //

हराया है तुफ़ानों को मगर ये क्या तमाशा है
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है।

गरजती है बहुत फिर प्यार की बरसात करती है
ये मेरा और बदली का न जाने कैसा नाता है।

है सूरज रौशनी देता सभी ये जानते तो हैं
अगन दिल में बसी कितनी न कोई भाँप पाता है।

वो ताकत प्रेम में पिघला दे पत्थर लोग कहते हैं
पिघल जाता है जब पत्थर जमाना तिलमिलाता है।

कहाँ से नफ़रतें आके घुली हैं उन फ़िजाओं में
जहाँ पत्थर भी ईश्वर है जहाँ गइया भी माता है।

चला जाएगा खुशबू लूटकर हैं जानते सब गुल
न जाने कैसे फिर भँवरा कली को लूट जाता है।

न ही मंदिर न ही मस्जिद न गुरुद्वारे न गिरिजा में
दिलों में झाँकता है जो ख़ुदा को देख पाता है।

पतंगे यूँ तो दुनियाँ में हजारों रोज मरते हैं
शमाँ पर जान जो देता वही सच जान पाता है।

हैं हमने घर बनाए दूर देशों में बता फिर क्यूँ
मेरे दिल के सभी बैंकों में अब भी तेरा खाता है।

बने इंसान अणुओं के जिन्हें यह तक नहीं मालुम
क्यूँ ऐसे मूरखों के सामने तू सर झुकाता है।

है जिसका काला धन सारा जमा स्विस बैंक लॉकर में
वही इस देश में मज़लूम लोगों का विधाता है।

नहीं था तुझमें गर गूदा तो इस पानी में क्यूँ कूदा
मोहोब्बत ऐसा दरिया है जो डूबे पार जाता है।

कहेंगे लोग सब तुझसे के मेरी कब्र के भीतर
मेरी आवाज में कोई तेरे ही गीत गाता है।

दिवारें गिर रही हैं और छत की है बुरी हालत
शहीदों का ये मंदिर है यहाँ अब कौन आता है।

नहीं हूँ प्यार के काबिल तुम्हारे जानता हूँ मैं
मगर मुझसे कोई बेहतर नजर भी तो न आता है।

मैं तेरे प्यार का कंबल हमेशा साथ रखता हूँ
भरोसा क्या है मौसम का बदल इक पल में जाता है।

-----------------------------------------------------------------
//डॉ ब्रिजेश त्रिपाठी जी //

ये क्रिकेट भी अजब जब दास्ताँ अपनी सुनाता है
शतक भज्जी लगाते हैं..उम्मीदों में जिताता है...
मगर जब बाल लेकर हाथ में बालर उतरते हैं...
तो जीता मैच भी उम्मीद में पानी फिराता है
ये कबतक हम रहेंगें ख्वाब में ही जीतते धोनी
हकीकत में तो ड्रा है मैच या फिर हार पाता है
बहुत शुरुआत में अब जोश दिखलाने से क्या होगा
हवा करती है सरगोशी, बदन यह काँप जाता है.
ओ धोनी ! देख लो कोई कसर तो रह ही जाती है
हमारी टीम का विश्वास यूँ क्यों डगमगाता है ?
--------------------------------------------------------------

ये रिश्ते भी अज़ब कुछ चीज़ होते हैं ज़माने में
कोई चुभ कर हंसाता है कोई मन को लुभाता है
ये गम जो बीत जाते हैं ये लोरी सी सुनाते हैं
जो जितना गम सताता था वह उतना गुदगुदाता है
करूँ मैं किसकी चिंता अब यहाँ तो सब ही अपने हैं
सभी को आँख से ढलका मेरा आंसू रुलाता है...
तो उनके गम न मैं क्यों लूं या उनके अश्क ही पोछूं
हवा करती है सरगोशी बदन यह काँप जाता है
--------------------------------------------------------------
वह अलगू और झबरे का ज़माना याद आता है
हवा करती है सरगोशी बदन यह काँप जाता है

वो रातें शीत की खेतों में जब जब गुज़रती हैं
हवा करती है सरगोशी बदन यह काँप जाता है

क्यों सर्दी औ अलाव का गहरा दिखता नाता है?
वही जाने जो कम्बल बेंच कर रोटी जुटाता है...

वही अलगू वही होरी, वही धनिया की बरजोरी
वही बनिया जो पैसे गाँठ के अबतक चुराता है

बदल कर भेष फिरते हैं दशानन जानकी हरने
लखन रेखा के अन्दर रावन अब बे खौफ आता है

चलोअब तो ज़रा चेतें सबक कल से ज़रा ले लें
ज़रा सी चेतना पा रुख हवा का बदल जाता है,
--------------------------------------------------------
ये इतनी प्यारी सी महफ़िल सजाए बैठे हो अबतक
नहीं मालूम क्या ये अंजुमन नींदे उडाता है...
कोई एक शेर भी छूटा तो घाटा होगा अपना ही
इसीसे बनिया यह हर शेअर पर आँखे गड़ाता है
कहीं अनमोल है मिसरा..कहीं आसार अच्छा है
कहीं बेहतर ख्यालों में अंजुमन दिल चुराता है
चलो अच्छा है इतने शायरों से दिल मिलाया है
तो अंदाज़-ए-बयां मेरा भी कुछ तो सुधरा जाता है
यह महफ़िल ख़त्म तो होगी कभी यह सोचता हूँ जब
हवा करती है सरगोशी बदन यह काँप जाता है
-----------------------------------------------------------
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर दीवानगी को कब कहाँ कोई समझता है?

वो पैटन टैंक के आगोश में जा कर समाया जो
कोई दीवाना ही तो था यह हर कोई समझता है..

वह २६/११ का मंज़र जब मुझको याद आता है
हवा करती है सरगोशी बदन यह काँप जाता है...

कि खाली हाथ लाठी से दबा कर आधुनिक रायफल
कोई दीवाना ही कासाब को काबू में लाता है..

न अब आंसू बहाने से धुलेंगें ताज के धब्बे
मसालें हाथ में थामे समूचा देश आता है..

ऐ रहबर! जागना तो अब तुम्हे होगा मुसलसल ही
कि अब बातें बनाने से न कोई काम होता है...
--------------------------------------------------------
//मोहतरमा अनीता मौर्य जी//

तुम्हारे दिल की धड़कन को मेरा दिल भांप जाता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है

बहुत रोका बहुत टोका मेरे दिल ने मगर सुन ले
तुम्हारे घर के रस्ते पर कदम ये आप जाता है

तेरे दिल का मेरे दिल से न जाने कैसा नाता है
कोई हो सामने मेरे नज़र बस तू ही आता है

तुम्हे कैसे बताऊ किस कदर खुश होने लगती हूँ
तुम्हारे नाम के संग में मेरा जब नाम आता है
-----------------------------------------------------------
//श्री अरविन्द चौधरी जी//

हवा करती है सरगोशी,बदन ये काँप जाता है
गुलों के दरमियाँ तेरा तराना याद आता है

मजा चख लूं अकेले में ,कभी मैं धूप का भी यूं
हमेशा साथ साये का अभी हमको डराता है

नहीं कोई यहाँ जो आँख आँखों से मिलाएगा
फ़क़त अब दूर से ही हाथ अपना वो हिलाता है

यही क़िस्मत हमारी है, यही रस्मे-ज़माना है
सहे है ज़ख्म सौ फिर भी,किसी का ग़म सताता है

सुखों को बाँटनेवाला , सही में है वहीं इन्सां
पराये दर्द को अपने कलेजे से लगाता है ...
------------------------------------------------------
//श्री रवि कुमार गुरु जी //

जब कभी वो सामने आते दिल घबराता हैं ,
दूरियां अक्सर दिल को बेचैन कर जाता हैं ,
सोचता हु इस बार उन्हें दर्दे दिल सुनाऊंगा ,
पास आकर क्या करना अब दूर से सुनाऊंगा ,
नंबर उनका मिल गया हैं समय का इंतजार हैं ,
एक साँस में बोल दूंगा आप से ही प्यार हैं ,
उन्हें पसंद आ गया तो बात आगे बढ़ेगी ,
सुन लूँगा कुछ गालिया दिल को राहत मिलेगी ,
---------------------------------------------------
//श्री शेषधर तिवारी जी//

तुम्हारे आने की खुशबू को दिल महसूस करता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है

निगाहें हैं लगी हर सू उसी इक राह की जानिब
कि जिस जानिब से उठके तेरा जाना याद आता है

बहुत दिन हो गए अब तो हमारे पास आ जाओ
सुना है तुमको भी गुजरा ज़माना याद आता है

मिरे इस घर में अब भी मैं तुम्हारी चाप सुनता हूँ
कि जैसे घर का हर कोना मुझे छुपके बुलाता है

मुझे देना पड़ेगा कब तलक ये इम्तेहाँ बतला
सताने से सुना है सख्त जाँ भी टूट जाता है
---------------------------------------------------
लिए जाँ को हथेली में जवाँ दिल मुस्कराता है
मुझे कारगिल शहीदों का फ़साना याद आता है

कभी जब देखता हूँ मैं ज़नाज़ा देश वीरों का
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है

खिलाया होगा इनको भी किसी माँ बाप ने गोंदी
उन्हें किस हाल में रोता बिलखता छोड़ जाता है

किसी माँ से वफ़ा करने निभाने फ़र्ज़ पाकीज़ा
सुरीली लोरियाँ वो अपनी माँ की भूल जाता है

उन्होंने भी करी होंगी किसी के प्यार की पूजा
बिना जिसके जिए कोई कभी सोचा न जाता है

शहीदों की चिताएँ देख बूढ़े भी उबलते है
जवानी लौट आती है बुढापा भाग जाता है
-----------------------------------------------------------
झुकी नज़रों से उनका मुस्कराना जुल्म ढाता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है

हँसीना जो मिली थी आज मुझको एक अनजानी
उसी की एक चितवन के लिए दिल डोल जाता है

बयाँ कैसे करूँ, जाती नहीं सूरत निगाहों से
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है

छिपाए जा रही थी चाँद सा मुखड़ा उरोजों में
नवेली व्याहता का ज्यूँ कोई घूंघट उठाता है

खुदा भी है बड़ा माहिर, बना दीं सूरतें ऐसी
जिन्हें गर देख लो इक बार तो ईमान जाता है

चलो अच्छा हुआ, देखा उसे मैंने फकीरी में
नहीं तो इश्क, पहचाने बिना फाँका कराता है
--------------------------------------------------
मच्छर काटता है जब कहाँ कोई भी सोता है
खुजाता है उसे फिर बाद में भी दर्द होता है

हम उसको मार भी सकते नहीं ये अपनी मजबूरी
रगों में दौड़ता उसके लहू अपना ही होता है

हमें तो चूसते ही जा रहें हैं देश के नेता
सितम उनका हमें क्यूँ बारहा मंजूर होता है

हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है
हमें जब अपना ही बेचारापन महसूस होता है

न जाने कब उठेंगे और अपने को बचायेंगे
सितम हमको न जाने कैसे ये मंजूर होता है

अगर अब भी न चेते देश को ये बेंच खायेगे
इन्हें अपने लिए स्विस बैंक ही मंजूर होता होता है
------------------------------------------------------
//श्री आशीष यादव जी//

अगहन में कोई किसान जब कोन्हरी* बनाता है|
बिछावन की जगह पुवाल वो नीचे बिछाता है||

उसी में खुद भी सोता है औ' झबरा को सुलाता है|
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है||

डी० ए० पी० खाद जो आती की...सानों में बटने को|
ठेकेदार इनको और ही कहीं बाँट जाता है||

अभी आलू खरीदें तो है बारह रुपये पर केजी|
जो बेंचे तो बेपारी** ढाई में ही लेके जाता है||

*--पुवाल की छोटी झोपड़ी जिसमे दो या तीन लोग सो सकें|
**--व्यापारी

-----------------------------------------------------------------
//श्री राणा प्रताप सिंह जी//

वो इज़हारे मुहब्बत को हमेशा ढांप जाता है
मगर बेचैन दिल मेरा हमेशा भांप जाता है
जहाँ सारा सिमटकर मेरे पहलू में है आ बसता
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है

फज़ाएँ खुन्क हैं और आसमां भी थरथराता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है
भले घर में दुबक जाओ मगर ना भूलना उसको
खड़ा सरहद पे जो दिन रात फिर भी मुस्कुराता है

भले कर्मों का कष्टों से जनम जनमों का नाता है
भला इन्सान पर इसको कहाँ जेहन में लाता है
सफ़र नेकी का हो तो आंधियां क्या कर सकें उसका
सभी कुछ भूल कर जो काम अपना करता जाता है
-------------------------------------------------------
दुपट्टा कोई जब उड़ कर के मेरी छत पे आता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है

मेरी गुस्ताखियाँ नादानियाँ हंस कर भुलाता है
सही माने में वो कद अपना ही ऊँचा उठाता है

मेरा मख्दूम वो है और मै हूँ उसका ही खादिम
हुनर रोते हुए को भी हँसाना जिसको आता है

बरिस्ता की हो कोफ़ी या हो मैकडोनाल्ड का बर्गर
ये शौके मगरिबी खूं को जला कर के ही आता है

अभी इंसानियत बाकी है कुछ उस शख्स के अन्दर
फिरौती की रकम आधी हो फिर भी मान जाता है

भला कैसे खड़ी हो जाएगी दीवार उस घर में
जहाँ चलता अभी तक भाइयों का जोइंट खाता है

उठा करके हवा में हाँथ फिर से बोल दो जय हिंद
भला क्यूँ ना करें जय हिंद जब धरती ही माता है
----------------------------------------------------
//मोहतरमा मुमताज़ नाज़ा जी//

वो तूफां जब कभी दिल में मेरे हलचल मचाता है
"हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है"

बनाता है मिटाता है मिटा कर फिर बनाता है
मुक़द्दर रोज़ ही मुझ को नई बातें सिखाता है

कभी रहबर कभी रहज़न कभी इक मेहरबां बन कर
बदल कर रूप अक्सर मेरे ख्वाबों में वो आता है

कोई आवाज़ हर पल मेरा पीछा करती रहती है
ना जाने कौन मुझ को शब की वहशत से बुलाता है

हक़ीक़त तो ये है वो जाने कब का जा चुका फिर भी
दिल अब भी खैर मक़दम के लिए नज़रें बिछाता है

गवारा कैसे हो जाए इसे राहत मेरे दिल की
जुनूँ खामोश जज्बो में नई हलचल मचाता है

हक़ीक़त से हमेशा आरज़ू नज़रें चुराती है
खला में भी तसव्वर नित नए नक़्शे बनाता है

चलो 'मुमताज़' अब खो कर भी उस को देख लेते हैं
सुना तो है बुज़ुर्गों से जो खोता है वो पाता है
--------------------------------------------------------
//मोहतरमा अनुपमा जी//

बर्फ की चादर बिछी है फैली हुई राहों में
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है!

मौसम का बदलना तय था तय थे ये मंजर
आने वाली हरियाली को ये मन भांप जाता है!

सूरज फिर से चमकेगा फिर से धूप खिलेगी
इन विम्बों का जीवन से बड़ा गहरा नाता है!

विश्वास के सहारे काट ली जाती है दुर्गम राहें
आस का खग अँधेरी बेला में भी गाता है!

चलते चलते ही तो सीखेंगे सलीका चलने का
राहों में गिरना और संभलना हमें खूब भाता है!

कितने ही भेद छुपे हैं मानव मन के भीतर
हृदय की गहराई कहाँ कभी कोई नाप पाता है!

अहर्निश चलते ही रहें यायावरी ही है जीवन
कैसी चिंता जब हमें राम नाम का जाप आता है!
----------------------------------------------------------
//जनाब हिलाल अहमद "हिलाल" जी//

कोई ज़ालिम किसी मजलूम पर जब ज़ुल्म ढाता है!
ये मन्ज़र देखकर मेरा कलेजा काँप जाता है !

जो इस दर्द-ऐ-ग़म-ऐ-फुरक़त1 का अंदाज़ा लगता है !
वो मेरे आंसुओं की कद्र करना सीख जाता है !

मुहब्बत में बिछड़ने वाला अपनी जाँ गवाता है ?
न जाने कौन सी सदियों की तू बातें सुनाता है !

गुनाहों की नदामत2 से मै अपना मुंह छुपाये हूँ
कफ़न ये मेरे चेहरे से ज़माना क्यूँ हटाता है !

मै आँखों के लिए हर पल उसी के ख्वाब चुनता हूँ !
वो है के मेरी आँखों से मेरी नींदें चुराता है !

भुलाना चाहता है वो भुलाये शौक़ से लेकिन !
हुनर ये भूल जाने का वो मुझसे क्यूँ छुपाता है !

हथेली उम्र भर को ज़र्द3 पड़ जाती है फुरक़त4 में !
किसी का हाथ जब हाथों में आकर छूट जाता है !

तुम्हारी याद का मौसम बहुत ही सर्द है, उस पर
हवा करती है सरगोशी , बदन ये काँप जाता है !

हिलाल इस दौर में कमज़ोर की सुनता नहीं कोई
जिसे देखो वो ही कमज़ोर को आँखें दिखाता है !

१-जुदाई के ग़म का दर्द २-शर्मिंदगी ३-पीली
------------------------------------------------------------
//जनाब मोईन "शम्सी" जी//

किसी का मख़मली अहसास मुझको गुदगुदाता है
ख़यालों में दुपट्टा रेशमी इक सरसराता है

ठिठुरती सर्द रातों में मेरे कानों को छूकर जब
हवा करती है सरगोशी बदन यह कांप जाता है

उसे देखा नहीं यों तो हक़ीक़त में कभी मैंने
मगर ख़्वाबों में आकर वो मुझे अकसर सताता है

नहीं उसकी कभी मैंने सुनी आवाज़ क्योंकि वो
लबों से कुछ नहीं कहता इशारे से बुलाता है

हज़ारों शम्स हो उठते हैं रौशन उस लम्हे जब वो
हसीं रुख़ पर गिरी ज़ुल्फ़ों को झटके से हटाता है

किसी गुज़रे ज़माने में धड़कना इसकी फ़ितरत थी
पर अब तो इश्क़ के नग़मे मेरा दिल गुनगुनाता है

कहा तू मान ऐ ’शम्सी’ दवा कुछ होश की कर ले
ख़याली दिलरुबा से इस क़दर क्यों दिल लगाता है !

-----------------------------------------------------------------
//श्री वीरेन्द्र जैन जी//

तुझसे बिछड़ने का वो पल याद जब जब आता है,
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है I

कह दे यादों से अपनी जाएँ ये हौले से,
सोया चाँद हर रात आहट से जाग जाता है I

ना जाने उस चेहरे में है कशिश कैसी,
चाहूं ना चाहूं मेरा ध्यान उधर जाता है I

हया से लाल होता है उनका चेहरा अब भी,
महफ़िल में जो मेरा नाम लिया जाता है I

निकलता है जब तू खोलके जुल्फे अपनी,
कहते हैं लोग बादलों में छिपा चाँद नज़र आता है I

प्यार की जादूगरी तो देखिए ज़रा,
पत्थरों से बना घर भी ताजमहल बन जाता है I
-------------------------------------------------------
कभी ख्वाबों में भी जो तुझसे बिछड़ने का डर सताता है
हवा करती ही सरगोशी बदन ये कांप जाता है I

हो आदत जिसे पीने की तेरी इन निगाहों से
उसे बोतल से पीने में कहाँ मज़ा आता है I

ना घबरा नाकामियों के इस बोझिल अंधेरे से
माँ कहती है हर सवेरा उजाला नया लाता है I

सोचता हूँ क्या हालत होती होगी उस बुलबुले की
जो खौलते पानी में कुछ देर कुलबुलाता है I

ना जाने वो कौन है जो आता नहीं सामने
लिख हवाओं पे गीत एहसासों के भेजे जाता है I

मिलती है शब सुबह से सिर्फ़ एक पल के लिए
सदियों से इसी बात पर झगड़ा हुआ जाता है I

----------------------------------------------------------------
//जनाब तरलोक सिंह जज जी//

मेरे पैरों में घुंघरू बांध के वह मुस्कुराता है
फखर से फिर वह मेरे नाच की बोली लगाता है

यह दिल नाज़ुक तेरे इक्क ख्याल भर से काँप जाता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है

मेरे खामोश रहने पर भी वह क्यों तिलमिलाते हैं
कि मेरे सब्र को यह ख्याल अक्सर ही सताता है

हजारों तीर्थों से हो के जब मैं घर पहुँचता हूँ
खुदा जैसा मेरा बच्चा बड़ा ही मुस्कुराता है

वो खुद तो बर्फ सा बन कर मेरे पहलू में आता है
मगर मेरी अग्न से बाद में मुझको जलाता है

छुपा नां ले उजालों को स्याही काली रातों की
कोई दीवाना अपने खून से दीपक जलाता है

कोई इकरार के काबिल कोई इन्कार के काबिल
हर इक्क बन्दा कहां पर एक सा व्यवहार पाता है

------------------------------------------------------------
//आचार्य संजीव 'सलिल' जी//

हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है
कहो नेता मगर मैं जानता हूँ साँप जाता है..

उघाड़ी हैं सदा कमियाँ सुधारूँगा उन्हें खुद ही.
वो अफसर जाने क्यों आ-आके उनको ढाँप जाता है?

तनिक दूरी रहे तो मिल-जुदा होना न अखरेगा.
मगर वो है कि बाँहों में उठाकर चाँप जाता है..

ज़माने से जो टकराया नहीं फिर भी झुका किंचित.
मिलाकर आँख आईने से अक्सर हाँप जाता है..

छिपाता है 'सलिल' सच खुद से, साये से, ज़माने से.
शरीके-ज़िंदगी कुछ कहे बिन, चुप भाँप जाता है..
-----------------------------------------------------------------
मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'
*
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है.
कहा धरती ने यूँ नभ से, न क्यों सूरज उगाता है??
*
न सूरज-चाँद की गलती, निशा-ऊषा न दोषी हैं.
प्रभाकर हो या रजनीचर, सभी को दिल नचाता है..
*
न दिल को बिल चुकाना है, न ठगना या ठगाना है.
लिया दिल देके दिल, सौदा नगद कर मुस्कुराना है.
*
करा सौदा खरा जिसने, जो जीता वो सिकंदर है.
करें हम मौज, क्यों बागी बनें?, क्या सिर कटाना है??
*
जिसे भी सिर कटाना है, कटाये- हम तो नेता हैं.
हमारा काम- अपने मुल्क को ही बेच-खाना है..
*
करें क्यों मुल्क की चिंता?, सकल दुनिया हमारी है..
हो बंटाढार हमको चाँद या मंगल पे जाना है..
*
न मंगल अब कभी जंगल में कर पाओगे ये सच है.
हमें मंगल पे जाके अब उसे भी बेच-खाना है..
*
न खाना और ना पानी, मगर बढ़ती है जनसँख्या.
जलेगा रोम तो नीरो को बंसी ही बजाना है..
*
बजी बंसी तो सारा जग, करेगा रासलीला भी.
तुम्हें दामन फँसाना है, हमें दामन बचाना है..
*
लगे दामन पे कोई दाग, तो चिंता न कुछ करना.
बताते रोज विज्ञापन, इन्हें कैसे छुड़ाना है??
*
छुड़ाना पिंड यारों से, नहीं आसां तनिक यारों.
सभी का एक मकसद, हमको नित चूना लगाना है..
*
लगाना है अगर चूना, तो कत्था भी लगाओ तुम.
लपेटो पान का पत्ता, हमें खाना-खिलाना है..
*
खिलाना और खाना ही हमारी सभ्यता- मानो.
मगर ईमानदारी का, हमें अभिनय दिखाना है..
*
किया अभिनय न गर तो सत्य जानेगा जमाना यह.
कोई कीमत अदा हो किन्तु हमको सच छिपाना है..
*
छिपाना है, दिखाना है, दिखाना है छिपाना है.
है घर बिग बॉस का यारों, हरेक झूठा फ़साना है..
*
फ़साना क्या?, हकीकत क्या?, गनीमत क्या?, फजीहत क्या??
खा लिये हमने सौ चूहे, हमें अब हज पे जाना है..
*
न जाना है, न जायेंगे, महज धमकाएंगे तुमको.
तुम्हें सत्ता बचाना है, कमीशन हमको खाना है..
*
कमीशन बिन न जीवन में, मजा आता है सच मानो.
तुम्हें रिश्ता निभाना है, हमें रिश्वत कमाना है..
*
कमाना है, कमाना है, कमाना है, कमाना है.
कमीना कहना है?, कह लो, 'सलिल' फिर भी कमाना है..
-----------------------------------------------------------------
//श्री गणेश जी "बागी"//

फटे कम्बल व जाड़े से पुराना मेरा रिश्ता है,
हवा करती है सरगोशी बदन ये काप जाता है,

बने अफसर सभी बेटे उच्चे तालीम पाकर के,
अकेले बाप को झबरा सहारा अब भी लगता है ,

चलो हम बैठकर सोचे लड़ाई क्यों हुई आखिर,
किसी को फायदा होगा जो आपस मे लड़ाता है ,

जिन्दगी चार दिन की है जिस्म पे नाज ये कैसा,
जवानी दोपहर जैसी बुढ़ापा सांझ होता है ,

जनाजा उठ गया जागीर की इस जंग मे "बागी"
किसी को बंगला हक मे किसी का कब्र अहाता है,

--------------------------------------------------------
//श्री बिनोद कुमर राय जी//

हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है"
मेरा दिल है शिकारी वो जो सबकुछ भाप जाता है.
शरारत तो नही आंखो मे उसके फिर भी मगर,
नजर जब डालता है वो, सबकुछ नाप जाता है.
अब सदियो हुए तुझको मुझसे खफा हुए,
तेरे घुंघरू की सी धुन फिर ये कौन सुनाता है.
चलो फिर से सजाये बहारे महफिल हम ,
जब आती है रौनक महफिल मे वो अपने आप आता है.
------------------------------------------------------------
"हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है
मेरा दिल है शिकारी वो जो सबकुछ भाप जाता है.
शरारत तो नही आंखो मे उसके फिर भी मगर,
नजर जब डालता है वो, सबकुछ नाप जाता है.
अब सदियो हुए तुझको मुझसे खफा हुए,
तेरे घुंघरू की सी धुन फिर ये कौन सुनाता है.
चलो फिर से सजाये बहारे महफिल हम ,
जब आती है रौनक महफिल मे वो अपने आप आता है.
अब कहा उमीद मुझे अह्दे वफा की दोस्त ,
प्यार के नाम को, शिक्को की खनक से कोइ छाप जाता है.

-----------------------------------------------------------------
//योगराज प्रभाकर//

हवा करती है सरगोशी, बदन ये कांप जाता है
मुझे गाँव का वो चूल्हा, बड़ा ही याद आता है ! १

हुई रस्मी यहाँ होली, दीवाली और छठपूजा,
महानगरों में हर कोई, जड़ों को भूल जाता है ! २

तेरे महलों के बाशिंदे, भला क्यों ग़मज़दा इतने,
मेरी बस्ती का हर भूखा, सदा ही मुस्कुराता है ! 3

बहू घर ले के यूँ आया, उसे पूछे बिना बेटा,
फटे कोने का ख़त जैसे, किसी के घर पे आता है ! ४

मेरे गाँव में जलते थे, दिये मेरे जन्मदिन पे,
तेरी नगरी में हर कोई, दिया खुद ही बुझाता है ! ५

बुढ़ापे के ज़बीं पर, मुस्कराहट इस तरह जैसे,
दिया बुझने से पहले ज्यों, तड़प के फडफड़ाता है ! 6

पड़ा टूटा हुआ कब से है, बूढ़े बाप का चश्मा,
मेरी बीवी ये कहती है,"नज़र सब इसको आता है!" 7
-------------------------------------------------
बड़ा अफ़सोस है ये, रोम तो जलता ही जाता है,
मगर सत्ता का नीरो, चैन की बंसी बजाता है ! 8

कभी जो याद आ जाए, मिलन की रैन वो पहली,
हवा करती है सरगोशी, बदन ये कांप जाता है ! 9

मेरे मरने की अफवाहें, शहर के हर मोहल्ले में,
कहीं पे जश्न दिखता है, कोई आँसू बहाता है ! १०

तुषारापात हो जाता है, तब कुनबे की इज्ज़त पे,
किसी बेटी का पाँव गर, कभी जो डगमगाता है ! 11

यहाँ हर गाँव "पीपली", जहाँ देखो वहां "नत्था",
दशा दोनों की ऐसी है, कलेजा मुंह को आता है ! १२

बड़ा दंभी था अमरीका, अभी की बात है ये तो,
मेरे भारत के आगे, आज वो झोली फैलाता है ! १३

किसी अबला की अस्मत पे, पड़ेगा आज भी डाका,
मेरी बस्ती के दौरे पे, इक थानेदार आता है ! 14

---------------------------------------------------------
चुनौती सह नहीं सकता, अँधेरा मुँह छुपाता है,
कोई नन्हा सा जुगनू जो, रात में टिमटिमाता है ! 15

फड़कते बाज़ुयों ठहरो, मेरे बच्चों का भी सोचो,
भले जाबर सही फिर भी, वो मेरा अन्नदाता है ! १६

भला मजहब हमारे दरमियाँ दीवार कैसे है,
वो ही तेरा विधाता है, वो ही मेरा विधाता है ! १७

मुबारक हो तुम्हें लेनिन, मुबारक वोल्गा दरिया,
मैं हूँ फरजंद भारत का, औ गंगा मेरी माता है ! १८

कोई गाजी कहाँ होगा, गुरु गोबिंद सिंह जैसा,
जो चारों सुत लुटाकर भी, रणभेरी बजाता है ! 19

कमी तेरी बड़ी महसूस करता है चमन तेरा ,
चला भी आ वतन में तू, तुझे भारत बुलाता है 20

तेरी उखड़ी हुई साँसों की खुशबू याद आते ही !
हवा करती है सरगोशी, बदन ये कांप जाता है ! 21
----------------------------------------------------------

हवा करती है सरगोशी, बदन ये कांप जाता है !
तेरी यादों का मफलर जो ,मेरे से दूर जाता है ! २२

तुम्ही मिसरा-ए-ऊला हो, तुम्ही मिसरा-ए-सानी हो ,
मुझे मतले से ता मक्ता, तुम्ही में नजर आता है ! २३


कमी कोई नहीं ऐ माँ, ये ठन्डे देश में फिर भी,
तेरे हाथों बुना स्वेटर, बहुत ही याद आता है ! 24

उसे दुनिया में कोई भी, कभी न याद करता है,
कोई इंसान जब अपनी, जड़ों को भूल जाता है ! 25

कभी पहचान था उसका, कभी जो मान था उसका
शहर में शर्म के मारे, जनेऊ वो छिपाता है ! 26

कभी ताखीर से बेटा, हमारा घर जो आता है ,
बहकती चाल से उसकी, मेरा दिल कांप जाता है ! 27

जो मरवाता है अपनी बेटिओं को गर्भ के दौरां
हमारे शास्त्र कहते हैं, वो सीधा नरक जाता है ! 28
-----------------------------------------------------
कभी सीता कोई रावण जो धोके से उठाता है,
कोई हनुमान सोने की लंका को जलाता है ! २९

भला इस दौर में श्री राम आए भी तो क्यूँ आए,
न ही सीता यहाँ कोई, न ही लक्ष्मण सा भ्राता है ! ३०

वहां पर मंथरा की चालबाज़ी, चल ही जाती है
जहाँ घर में किसी के भी, कैकेयी सी माता है ! ३१

महल में याद करती है, वनों में राम कौशल्या,
नयन आंसू बहाते हैं, कलेजा मुंह को आता है ! ३२

बड़ी सर्दी है इस वन में, सिया कहती है रघुवर से,
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है ! ३३

भला क्या उर्मिला का त्याग सीता जी से छोटा है?
तो फिर तुलसी कसीदे क्यों सदा सीता के गाता है ३४

हरेक युग में कई रावण, जहाँ में आ ही जाते है,
युगों के बाद ही दुनिया में कोई राम आता है ! ३५
------------------------------------------------------
युवा जब देश का हाथों में बंदूकें उठाता है,
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है ! (३६)

मेरे बीमे का कुछ पैसा अभी मिलना बकाया है,
तभी बेटा बहू के साथ मुझको मिलने आता है ! (३७)

कभी था मुल्क दीवाना "बिनाका गीतमाला" का,
अभी उस देश को टीवी पे नंगापन सुहाता है ! (३८)

बदल के रख दिये हैं नाम अपने देवतायों के
उमासुत को ज़माना ये "गणेशा" कह बुलाता है ! (३९ )

सुना गाते जो नन्ही बच्चियों को झूलते झूला,
लगे चिडिओं का पूरा झुण्ड जैसे चहचाहाता है ! (४०)

कभी जो देखता हूँ नीम अंगान की मैं लहराते,
मुझे माता का मुस्काता सा मुखड़ा याद आता है ! (४१)

मेरे बापू की आँखों में नज़र आए कोई बच्चा !
मेरी दादी की बातें जब कोई उनको सुनाता है ! (४२)

ज़लालत झेलनी पड़ती है, अबला द्रौपदी को ही,
पांडवों को कोई शकुनी, जो धोके से हराता है, (४३)

ज़मीं पुरखों ने सींची थी, पसीने से लहू से जो,
कोई बेटा उसे कोठों पे जा जा के लुटाता है (४४)
-------------------------------------------------------
ग़मों की धूप से मुझको, हमेशा ही बचाता है,
तेरी यादों के सरमाये का, मेरे सर पे छाता है ! (४५)

मैं तन्हाई की शब में, ढूँढता हूँ दर्द का शाना,
नया कोई नहीं इनसे, मेरा जन्मो का नाता है ! (४६)

कबड्डी खेलते मुझको, दिखाई दे कहीं बच्चे,
मेरा बीता हुआ बचपन, पलट के लौट आता है ! (४७)

सिमट जाता नसीब उसका, उसी कागज़ के पुर्जे में,
कोई अनपढ़ बिना समझे, जो अंगूठा लगाता है, (४८)

तेरी खुशबू, छुअन तेरी, कभी जो याद आ जाए,
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है ! (४९)

विदेशों में ना रह जाएँ, कहीं ये अस्थियाँ मेरी,
यहाँ बापू को हर लम्हा, ये ही गम सताता है ! (५०)

वहाँ खलिहान थे उसके,.यहाँ खाली कनस्तर है,
सज़ा वो गाँव तजने की, यहाँ दिन रात पाता है ! (५१)
--------------------------------------------------------
विदेशी जेल में बेटा, फंसा जब याद आता है !
हवा करती है सरगोशी, बदन ये काँप जाता है ! (५२)

हमारी ज़िंदगी के वो, कई लम्हे चुराता है,
तसव्वुर में भी जब कोई, हमारा दूर जाता है ! (५३)

बजुर्गों का कहा मुझको, हमेशा याद आता है,
वही पाता है मोती भी, जो गहराई में जाता है ! (५४)

गुरु गोबिंद कहती है, अकीदत से उसे दुनिया,
"सवा लख" से अकेले को, बहादुर जो लड़ाता है, (५५)

सहम उठती है मुम्बई, कसाबों के ठहाकों से,
कोई जैचंद जो दुश्मन की, हाँ में हाँ मिलाता है ! (५६)

हुआ जब से रिटायर मैं, हुए आज़ाद बच्चे भी ,
बिला नागा तभी बेटा, नशे में घर को आता है ! (५७)

कोई रिश्ता मिला न, बेटियाँ उसकी कुंवारी है,
नजूमी टोटके शादी के, जो सबको बताता है, (५८)

उसे कैसे यकीं हो, हाथ में कोई सूर्य रेखा है,
जनम से जिस अभागे का, अँधेरे से नाता है ! (५९)

मेरे हाथों में सिगरेट देख, बापू की दशा ये है,
जुबां चुप है मगर चेहरा, बड़ा ही तमतमाता है ! (६०)
------------------------------------------------------------
मेरे ख़्वाबों में आता है, तो पूरी शब् जगाता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है (६१)

कहीं गलती से तेंदुलकर, कभी जो "बीट" हो जाए,
हरेक हिन्दुस्तानी का, कलेजा मुंह को आता है ! (६२)

मेरे भारत की आन-ओ-बान है, इसकी सभी सेना,
जिसे देखे कोई दुश्मन, तो डर से कांप जाता है ! (६३)

यहाँ ना अब कोई मीरा, यहाँ ना अब कोई राधा,
भला किसे के लिए मोहन, मेरा बंसी बजाता है ! (६४)

जहाँ मंदिर में घुसने की, मनाही है अछूतों को,
वहां शबरी के जूठे बेर, कोई राम खाता है ! (६५)

ये ओबीओ है इसकी बात, सबसे ही निराली है,
यहाँ कहता है जो उम्दा, सभी की दाद पाता है ! (६६)

चतुर्वेदी, त्रिपाठी जी, हिलाल अहमद,धरम भाई,
सफलता का ये सेहरा आपके ही सर पे आता है ! (६७)

चला बाग़ी की अगुआई में राणा का जो आयोजन,
मेरे आशार से वो अब, यहीं विश्राम पाता है ! (६८)

/गिरह के कुछ फुटकर नमूने //

ये खाली सा मेरा बटुया कभी जो मुँह चिढाता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है ! (६९)

कभी गुस्ताख नज़रों से जो मुझको घूरता बेटा
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है ! (७०)

दिसंबर के महीने में जो कोहरा फैलता हर सू,
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है ! (७१)

किसी बेटे की अर्थी को पिता देता है जब कन्धा,
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है ! (७२)

घने कोहरे की चादर में, अलसुबह हल चलाते ही
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है ! (७३)

रगों में बर्फ सी जम जाए, उनके दूर जाने से ,
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है ! (७४)

किसी रांझे की सुन्दर हीर जो कुरलाए डोली में,
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है ! (७५)

सुनाये जब कोई बूढा मुझे किस्सा विभाजन का,
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है ! (७६)
----------------------------------------------------------
//जनाब दिगंबर नासवा जी//

ख़ुदा धरती को अपने नूर से जब जब सजाता है
दिशाएँ गीत गाती हैं गगन ये मुस्कुराता है

ख़बर ये आ रही है वादियों में सर्द है मौसम
रज़ाई में छुपा सूरज अभी तक कुनमुनाता है

मुनादी हो रही है चाँदनी से रुत बदलने की
गुलाबी शाल ओढ़े आसमाँ पे चाँद आता है

पहाड़ों पर नज़र आती है फिर से रूइ की चादर
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है

फजाओं में महकती है तिरे एहसास की खुशबू
हवा की पालकी में बैठ कर मन गुनगुनाता है

झुकी पलकें खुले गेसू दुपट्टा आसमानी सा
तुझे बाहों के घेरे में लिए मन गीत गाता है
---------------------------------------------------
//श्री हरजीत सिंह खालसा जी//

हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है,
ह्रदय में उठती पीर को मौसम ये भांप जाता है...

मिला है अवसर तो क्यूँ न बात मन की कहूँ,
तेरा मुस्कराना मेरे कितने दर्द ढांप जाता है....

मैं तेरे बिना झुंझलाता रहता हूँ इस तरह,
जैसे फुंफकारता कोई विषहीन सांप जाता है....

तेरे ह्रदय तक मेरा ह्रदय यूँ तो पहुँच न पाया है,
स्वप्न में कई कई बार ये दूरी नाप जाता है.
-----------------------------------------------------
//डॉ नूतन जी//

सदाकत मेरी और यकीन तेरा उठने लगता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है ||

खुशी की खातिर न वकार को चौखट पे रखा है
कुंद जेहनो से दिल फलक की बात क्यों करता है

बदल मलबूस तू अपने ये मैला ज्यादा लगता है
नए रंग भर ले तू उसमे इरादा नेक लगता है |

महफ़िल में आती मैं, पसे अंजुमन तू होता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है ||
------------------------------------------------------------
//श्री रेक्टर कथूरिया जी//

तू जब भी याद आता है तो मेरा दिल जलाता है;
हवा करती है सरगोशी बदन यह काँप जाता है.

तेरी यादों को डस के जब भी मुझको सांप जाता है,
हवा करती है सरगोशी बदन यह काँप जाता है.

बदलता हूं मैं जब भी बात तेरे सामने आ कर;
मुझे लगता है जैसे तू मिरा दिल भांप जाता है.

मोहब्बत की तो दुनिया बन गयी दुश्मन हुआ ऐसे;
ज़रा आवाज़ होते ही कलेजा कांप जाता है.

न जीता हूं, न मरता हूं, मैं बिन अग्नि के जलता हूं,
तेरी यादों का डस के जब भी मुझको सांप जाता है.

मोहब्बत एक जज़्बा है, यही समझे थे हम लेकिन,
यहां होती यिजारत देख के दिल काँप जाता है.
-----------------------------------------------------

इन सब शुरका के इलावा इस तरही मुशायरे में ओबीओ के संस्थापक श्री गणेश बागी जी ने एक अनुपम प्रयोग भी किया ! उन्होंने मेरी एक ग़ज़ल के ५ शेअरों को भोजपुरी में बेहद ख़ूबसूरती से अनुवादित कर पाठकों तक पहुँचाया ! मैं बागी जी को दिल से धन्यवाद देना चाहूँगा उनके इस अनूठे प्रयास के के लिए ! मेरे वे पांचों शेअर तथा श्री गणेश जी बागी का अनूदित कार्य आप सब सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है :

(मेरी हिंदी गजल)
हवा करती है सरगोशी, बदन ये कांप जाता है
मुझे गाँव का वो चूल्हा, बड़ा ही याद आता है ! १
हुई रस्मी यहाँ होली, दीवाली और छठपूजा,
महानगरों में हर कोई, जड़ों को भूल जाता है ! २
तेरे महलों के बाशिंदे, भला क्यों ग़मज़दा इतने,
मेरी बस्ती का हर भूखा, सदा ही मुस्कुराता है ! 3
बहू घर ले के यूँ आया, उसे पूछे बिना बेटा,
फटे कोने का ख़त जैसे, किसी के घर पे आता है ! ४
मेरे गाँव में जलते थे, दिये मेरे जन्मदिन पे,
तेरी नगरी में हर कोई, दिया खुद ही बुझाता है ! ५


(बागी जी द्वारा उसका भोजपुरी अनुवाद)
सरसर बहेला बयार, देहिया इ काँप जाला,
गौंआ के चुल्हवा हमार,बहुते इयाद आवेला,

खाली देखावा भईल होली देवाली छठी के पूजा,
बड़का शहरिया के लोग,सोर आपन बिसर जाला,

तोहरो महलिया मे लोग बा, थोबड़ा लटकवले,
हमरा कसबवा के इयार,भुखलों पेट हस देवेला,

घर मे मेहर लेके अईलन, बिना पुछले बबुआ,
आईल चिठ्ठी अईसन,जेमे गमी के बात रहेला,

गौंआ मे जरे हमरा जनम दिन पर दियना ,
तोहरो शहरियाँ के लाल,जरतो बुताय देवेला,

-----------------------------------------------------------------

मैं उन सब शुरका का तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने इस आयोजन में शिरकत कर इसे चार चाँद लगाये ! भाई राणा प्रताप सिंह जी द्वारा आयोजित तरही मुशायरे का यह पांचवां अंक भी बेहद कामयाब रहा जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं ! इस दफा जिस प्रकार डॉ ब्रिजेश त्रिपाठी जी, श्री शेषधर तिवारी जी तथा भी धर्मेन्द्र शर्मा जी ने पूरे उत्साह से इस सिलसिले को आगे बढ़ाया - वो काबिल-ए-दीद भी है और काबिल-ए-दाद भी, शायरों की हौसला अफजाई करने में भी अपने कोई कृपणता नहीं बरती !

मैं यहाँ श्री प्रीतम तिवारी जी को भी धन्यवाद देना अपना फ़र्ज़ समझता हूँ, उन्होंने तकरीबन प्रत्येक रहना पर अपनी सुन्दर टिप्पणियों से सभी रचनाधर्मियों का हौसला बढ़ाया !

इन तरही मुशायरों के सदाबहार और एकछत्र नायक भाई नवीन चतुर्वेदी का योगदान भी स्तुत्य है, आपने न केवल अपने मयारी आशार से इस आयोजन को चार चाँद लगाये अपितु प्रत्येक रचनाकार का दिल खोल कर उत्साहवर्धन भी किया ! जनाब दिगम्बर नासवा साहिब जैसी शख्सियत का इस आयोजन के माध्यम से ओबीओ से जुड़ना हम सबसे लिए बायस-ए-फखर है ! मैं ओबीओ के संस्थापक श्री गणेश जी बागी को भी मुबारकबाद देता हूँ जिनकी अगुआई में ये महायज्ञ सम्पूर्ण हुआ ! मैं आशा करता हूँ कि अगले महीने आयोजित होने वाले महाइवेंट में भी सब साथियों का सहयोग हमें यूं ही प्राप्त होगा, और वो इवेंट भी सफलता के नए आयाम स्थापित करेगा - जय ओबीओ !
सादर,

योगराज प्रभाकर
(प्रधान सम्पादक)

Views: 5240

Reply to This

Replies to This Discussion

गणेश बागी भाई, हम सब आपके सेनानी हैं ! ओबीओ के सर्वेसर्वा होने के नाते इस सफलता का सेहरा आप ही के सर जाता है ! आप जैसा मित्र पाकर मैं भी धन्य हूँ !
नवीन भाई, मैं आपका इशारा भली भांति समझ गया हूँ, विशवास रखें इस दिशा में भी अगली बार से पूरी मेहनत की जाएगी !
आदरणीय प्रधान संपादक जी,
सारी ग़ज़लें एक ही जगह रखकर वाकई आपने बड़ा अच्छा काम किया है, अब जब कभी पढ़ना होगा सीधे यहीं आकर पढ़ सकता हूँ। यह मुशायरा वाकई बहुत ज्यादा सफल रहा है। और इसकी सफलता का श्रेय ओबीओ टीम को जाता है। आपकी अगुआई में यह टीम सफलता के नये मायने स्थापित करे यही कामना है।
सादर
धर्म भ्रा जी, आपकी हौसला अफजाई का बहुत बहुत आभारी हूँ ! इस मुशायरे की सफलता से आपकी तरह मैं भी बेहद खुश हूँ ! जिस तरह से आपने पूरे जोश-ओ-खरोश से इस में शिरकत की और शायरों का अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से हौसला हौसला बढाया, वो भी काबिल-ए-तारीफ है !
It is wonderful effort for conducting Mushaira in such way. congrats to chief editor yograj prabhaker
Thank you so very much for your inspiring words Prabhat Roy sahib. It was a team effort and every participant of this recently concluded event deserves the kudos. I am really excited to have you here on OBO.
भाईयों , मैंने तो इस बार मिस कर दिया पर आप सभी ने जम कर मुशायरे को आगे बढाया बधाई हो !अगले मुशायरे में मुलाक़ात होगी | मुशायरा संचालक और योगराज जी को विशेष बधाई |
आप सब ने मुझे याद रखा और याद किया भी, यह जानना ही सुख देता है नवीन जी |
अरुण भाई, अबकी बात तो चलो छोड़ देते हैं ! लेकिन अगली बार से भारी जुर्माना लगेगा अगर महा-इवेंट से गैरहाज़िर रहे तो !
बिलकुल सही कहा नवीन भाई जी, मैंने अपना कमेन्ट एडिट कर दिया है !
जी राणा जी ज़रूर शुक्रिया !!

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, बेह्तरीन ग़ज़ल से आग़ाज़ किया है, सादर बधाई आपको आखिरी शे'र में…"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी बहुत धन्यवाद"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी, आपकी बहुमूल्य राय का स्वागत है। 5 में प्रकाश की नहीं बल्कि उष्मा की बात है। दोनों…"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी। आप की मूल्यवान राय का स्वागत है।  2 मय और निश्तर पीड़ित हृदय के पुराने उपचार…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय महेंद्र कुमार जी नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी ।सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। अच्छी ग़ज़ल हेतु आपको हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए।  ग़ज़ल हेतु बधाई। कंटकों को छूने का.... यह…"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा यादव जी ।सादर नमस्कार।ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।गुणीजनों के इस्लाह से और निखर गई है।"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय euphonic amit जी आपको सादर प्रणाम। बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय त्रुटियों को इंगित करने व…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से हर बात बताने समझाने कनलिये सुधार का प्रयास…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय, अमित जी, आदाब आपने ग़ज़ल तक आकर जो प्रोत्साहन दिया, इसके लिए आपका आभारी हूँ ।// आज़माता…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय DINESH KUMAR VISHWAKARMA आदाब ग़ज़ल के उम्द: प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। मुश्किलों की आँधी…"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service