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सम्माननीय साथियो,

सब से पहले तो मैं आप सब को इस "OBO लाईव तरही मुशायरा-६" के सफलतापूर्वक संपन्न होने पर बधाई देना चाहता हूँ ! इस बार के मुशायरे में जो तरही मिसरा दिया गया था वह नौजवान हमारे शायर राणा प्रताप सिंह जी की ग़ज़ल से लिए गया था, वह मिसरा था :

''खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत''
१२२ १२२ १२२ १२२
फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
बहर: बहरे मुतकारिब मुसम्मन सालिम

इस बार मुशायरे की समय सीमा तीन दिन (१५ दिसंबर २०१० से १७ दिसंबर २०१०) तय की गई थी ! स्थापित साहित्यकारों के साथ साथ नवोदित शायरों ने बहुत ही उत्साह के साथ इस में शिरकत की ! आदरणीय दिगंबर नासवा जी, आदरणीय डॉ संजय दानी जी एवं आदरणीय आचार्य संजीव सलिल जी ने अपनी टिप्पणियों में इल्म-ए-ग़ज़ल के विभिन्न पहलुयों पर भी बात की जिनसे ग़ज़ल के विद्यार्थियों का खूब मार्गदर्शन हुआ !

इस आयोजन में श्री भास्कर अग्रवाल जी, श्री सतीश मापतपुरी जी एवं सुश्री अनीता मौर्य जी को ग़ज़ल पर कलम आजमाई करते देखना बहुत ही सुखद लगा ! वहीँ आदरणीय दिगंबर नासवा जी, आदरणीय डॉ संजय दानी जी एवं जनाब दानिश भारती साहिब के उस्तादाना कलाम ने सच में समा ही बाँध दिया ! आदरणीय संजीव सलिल जी की १२१ शेअरों की (रिकॉर्ड तोड़) गजल इस आयोजन का मुख्याकर्षण रही है मेरी राय में !

इस बार जिस बात से मुझे सब से ज्यादा हर्ष हुआ वह था रचनायों पर आलोचनात्मक चर्चा ! लगभग हरेक चर्चा पर हमारे सुधि सदस्यों ने अपने खुले विचार पेश किये ! वजन-ओ-बहार की कमी, ख्यालों का हवाला तथा अन्य बहुत से तकनीकी पहलुयों की कमी बेशी से ग़ज़लकारों को आगाह करवाया गया ! इस प्रकार की सकारात्मक वार्ता के चलते यह मुशायरा वास्तव में एक "कार्यशाला" का रूप धारण कर गया ! आदरणीय आचार्य संजीव सलिल जी ने इस विषय में काफी पहले अपनी राय ज़ाहिर कर दी थी कि मात्र "वाह-वाही" छोड़ रचनाकारों को उनकी कमी-बेशियों से भी इन आयोजनों में वाकिफ करवाया जाना चाहिए ! मैं आचार्य जी की उस दूरदर्शिता को नमन करता हूँ ! और जिस प्रकार आयोजन में शामिल शायरों ने आलोचना को खिले माथे स्वीकार किया, वह अनुभव वाक़ई बहुत ही उत्साहवर्धक रहा !

जहाँ एक तरफ बहुत सी बातें इस मुशायरे में उत्साह बढाने वाली रहीं तो दूसरी तरफ कई बातों से निराशा भी हुई ! हमारे कई साथी शायर इस मुशायरे से नदारद रहे ! खासकर वे लोग जिनको "Active Member of the Month" या "Best Blog of the Month" से नवाज़ा जा चुका हो, उनका ऐसे मौके से यूँ नदारद रहना रह रह कर मुझे कचोटता रहा ! हर बार की तरह इस बार भी देखने में आया कि कुछ शायर अपनी रचना पोस्ट करने के बाद जैसे कहीं गुम ही हो गए हों, न तो उन्होंने मुड़ कर देखना ही मुनासिब समझा और न ही लोगों की दाद को एक्नोलेज करना ही गवारा किया ! और कुछेक साथी सिर्फ अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहे और दूसरों की रचना पर २ लफ्ज़ कहने तक से गुरेज़ करते दिखे, आशा की जानी चाहिए कि आईंदा आयोजनों में यह प्रवृत्ति देखने को नहीं मिलेगी !


अंत में मैं इस मुशायरे के संयोजक श्री राणा प्रताप सिंह एवं ओबीओ के संस्थापक श्री गणेश जी बाग़ी को इस सफल आयोजन के लिए दिल से मुबारकबाद देता हूँ !

वे लोग जो किसी कारणवश इस मुशायरे में शरीक नहीं हो सके, उनकी सुविधा के लिए सभी रचनायों को यहाँ एक साथ पेश करते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है ! सादर !

योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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//जनाब नवीन चतुर्वेदी जी //

दिलों के लिए दिलबरों की है दावत|
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत|१|

वहीं दो दिलों बीच पाई है उलफत|
जहाँ दो दिलों बीच देखी मुरव्वत|२|

हमारे लिए जिसके दिल में हो चाहत|
उसी के लिए हम भी करते हैं मिन्नत|३|

कभी दिल ये जब कर उठे है बग़ावत|
मुहब्बत इसे खूब देती है राहत|४|

नमन ये करे, हो जहाँ पे नफ़ासत|
औ नाचे वहाँ पे, जहाँ हो शरारत|५|

सदा आदमी की ये करती है इज़्ज़त|
मगर आदमी इसकी करता फजीहत|६|

गुलों से भी नाज़ुक है इसकी नज़ाकत|
है पत्थर से भी सख़्त इसकी अदावत|७|

न देखा हसीँ कोई इस के बनिस्बत|
न देखी निठुर इसके जैसी अदालत|८|

फकत बोल मीठे - 'दो', इस की है लागत|
समर्पण, सरोकार इस की है कीमत|९|

इसे जिस से भी होती है दिल से निस्बत|
उसी से ये अक्सर करे है शिकायत|१०|

पुराने खिलाड़ी हों या फिर नवागत|
यहाँ ओबिओ पे सभी का है स्वागत|११|
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तजुर्बों की है आलमारी मुहब्बत|
खयालों पे करती सवारी मुहब्बत|१|

विनिर्दिष्ट सामाजिक स्वतंत्रता का एक असर ये भी:-
शहर छोड़, कस्बों से भी अब नदारद|
वो बारी उमर की कुँवारी मुहब्बत|२|

गिरह:-
खुदा की तरह सिर्फ़ महसूस होती|
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत|३|

नसीब अपना अपना:-
कहीं मस्त हो के बहारों में झूमे|
कहीं पे करे पल्लेदारी* मुहब्बत|४|

शब्द बदलने से सरोकार नहीं बदलते:-
उन्हें प्रेम से हो जो परहेज, तो हो|
हमें तो है प्राणों से प्यारी मुहब्बत|५|

अदब में मुहब्बत का मुकाम :-
अदब ने इसे बाअदब है कुबूला|
ग़ज़ब यार सब से है न्यारी मुहब्बत|६|

रामायण और श्रीमदभागवत माहात्म्य कथा के हवाले से एक शे'र:-
कहीं ये श्रवण@ के हृदय में बिराजे|
लजाता कहीं धुन्धकारी# मुहब्बत|७|

श्री मद्भगवद्गीता के हवाले से:-
अजब वाक़या, प्रेम-मूरत किसन ने|
कुरुक्षेत्र जा कर, नकारी मुहब्बत|८|

सूर-सागर के हवाले से आख़िरी शे'र ब्रजभाषा में :-
कन्हैया कों ऊधौ संदेसौ यै दीजो|
हमें तौ परी भौत भारी मुहब्बत|९|
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खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत|
बला की है ये दस्तकारी मुहब्बत|१|

ज़ुबाँ पे जो आए, दिलों को मिला दे|
सदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत|२|
बला की है ये................

झुका के पलक, दिल का पैगाम दे दे|
हया की है ये दस्तकारी मुहब्बत|३|
बला की है ये................

उड़ा के दुपट्टा, बदन सुरसुरा दे|
हवा की है ये दस्तकारी मुहब्बत|४|
बला की है ये................

ग़ज़ल से मुहब्बत जिसे, वो ही जाने|
क़ता की है ये दस्तकारी मुहब्बत|५|
बला की है ये................
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//जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी//

ख़ुमारी है मय की गुलों की नज़ाकत
ख़ुदा की है ये दस्तकारी मोहोब्बत ।१।

लगे कोयले सा खदानों में हीरा
बना देती है नीच नीचों की सोहबत ।२।

तुझे याद करता है जब मन का सागर
सुनामी है उठती मचाती कयामत ।३।

लिखा दूसरों का जो पढ़ते हैं भाषण
वही लिख रहे हैं गरीबों की किस्मत ।४।

डकैती घोटाले क़तल तस्कारी सब
गई इनकी बन आज लॉकर सियासत ।५।

सँवारूँ मैं कैसे नहीं रूह दिखती
मुझे आइने से है इतनी शिकायत ।६।

न ही कौम पर दो न ही दो ख़ुदा पे
जो देनी ही है देश पर दो शहादत ।७।

करो चाहे जो भी करो पर लगन से
है ऐसे भी होती ख़ुदा की इबादत ।८।

नहीं हाथियों पर जो रक्खोगे अंकुश
चमन नष्ट होगा मरेगा महावत ।९।

न जाने वो बुत थे या थे अंधे बहरे
मरा न्याय जब भी भरी थी अदालत ।१०।

न समझे तु प्रेमी तो पागल समझ ले
है जलना शमाँ पे पतंगों की आदत ।११।

मैं जन्मों से बैठा तेरे दिल के बाहर
कभी तो तु देगी मुझे भी इज़ाजत ।१२।


नहीं झूठ का मोल कौड़ी भी लेकिन
लगाता हमेशा यही सच की कीमत ।१३।

मिलेगी लुटेगी न जाने कहाँ कब
सदा से रही बेवफा ही ये दौलत ।१४।

नहीं चाहता मैं के तोड़ूँ सितारे
लिखूँ सच मुझे दे तु इतनी ही हिम्मत ।१५।

ग़ज़ल में तेरा हुस्न भर भी अगर दूँ
मैं लाऊँ कहाँ से ख़ुदा की नफ़ासत ।१६।

बरफ़ के बने लोग मिलने लगे तो
नहीं रह गई और उठने की हसरत ।१७।

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//जनाब शेषधर तिवारी जी//

गुलों की घनी लाल क्यारी मुहब्बत
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत |1|

जहाँ में सभी लोग हारे इसीसे
सदा ही खुदी से है हारी मुहब्बत |2|

इसी दम पे गम को सहे जा रहे हैं
की होगी कभी तो हमारी मुहब्बत |3|

जहाँ में हुए हैं कई लोग जिनकी
रही है अभी तक उधारी मुहब्बत |4|

हुई बंद साँसे मगर प्यार जिन्दा
रटे जा रहे मेरी प्यारी मुहब्बत |5|

वो लैला वो मजनू वो फरहाद शीरी
रहेगी सदा इनपे वारी मुहब्बत |6|

चलो देख लें आज माज़ी इन्ही की
हमें हो अता राजदारी मुहब्बत |7|

रहें हैं खड़े बांह फैला कभी से
भरें बाजुओं में हमारी मुहब्बत |8|

मुहब्बत क़े पहलू अभी और भी हैं
कहाँ हमने देखी संवारी मुहब्बत |9|

जवाँ जो बता क़े गया कान में है
उसी को निभाती बिचारी मुहब्बत |10|

भरेगा खुशी वो जमाने की माथे
रही गुनगुना आसवारी मुहब्बत |11|

वो सीमा पे सैनिक खड़े तान सीना
लहू माँग में जिनका धारी मुहब्बत |12|

सुहागन बनी है ये धरती अभी तक
जो माँ बाप ने आप वारी मुहब्बत |13|

जवानो क़े अपने ही परिवार वाले
रहे पाल कितनी कुंवारी मुहब्बत |14|

इन्ही से सलामत हमारी मुहब्बत
चलो दें इन्हें ढेर सारी मुहब्बत |15|

मोहब्बत कहानी लगे दिलजलों को
हमें तो पियारी हमारी मुहब्बत |16|

दिखाया था मुझको कई बार सपना

उसी एक सपने पे वारी मोहब्बत |17|



महीनो किया था मुहब्बत का पीछा

तभी तो हुई थी हमारी मुहब्बत |18|



लिया था जो पहचान कोयल को खोथे

तो कौए को लागी दोधारी मुहब्बत |19|



नहीं पालता माफ़ करता न खुद को

हुई पाल क़े भी बेगारी मोहब्बत |20|



नयी पौध को देख कर लहलहाते

किया याद हमने हमारी मुहब्बत |21|



दिलों में जगा दे मुहब्बत सभी क़े

हमें चाहिए ऐसी प्यारी मुहब्बत |22|



नयी दुल्हनो क़े खयालों जगी जो

दुलारी है कितनी पियारी मुहब्बत |23|



छुपे घोंसलों में रहें डर क़े बच्चे

लिए चोंच चारा पधारी मुहब्बत |24|



भरी दोपहर में थका सा दिखूं तो

जबीं पोंछ आँचल निहारी मुहब्बत |25|

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मुझे तू न समझे न मैं जान पाऊँ
कभी तू रुलाये कभी मैं रुलाऊँ

दिखाएँ चलो एक ऐसा नजारा
कि तू रूठ जाए तुझे मैं मनाऊँ

सुकूं क़े लिए आज से ये करें हम
न तू याद आये न मैं याद आऊँ

बड़ी कोशिशें भूलने कि हुईं पर
न तू भूल पाए न मैं भूल पाऊँ

मैं साँपों क़े ही बीच जीता रहा हूँ
भला आज मैं इनसे क्यों खौफ खाऊँ

मुझे याद आती हैं बचपन कि बातें
तू पकडे जो तितली उसे मैं उडाऊं

तुझे हो मुबारक तुम्हारी वो मस्ती
मैं होली दिवाली अकेले मनाऊँ

बहाने बहाने तुम्हे था बताना
जो गुडिया कि तेरी मैं जोड़ी बनाऊँ

मुझे देख क़े तेरा आँचल गिराना
तुझे थी तवक्को कि मैं मुस्कराऊँ

खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत
कि मैं आज दुनियाँ में पागल कहाऊँ
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मुहब्बत हमारी तुम्हारी रजा है
मुहब्बत मुहब्बत है इसमें मजा है

खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत
मुहब्बत बिना तो ये जीवन क़ज़ा है

मुहब्बत का है आज दुश्मन बना जो
कभी तो मुहब्बत मुहब्बत भजा है

मुहब्बत जिसे मिल गयी जिंदगी में
इसे छोड़ उसने तो सब कुछ तजा है

हो लंगडा या लूला या अंधा कि काना
ये ताज़े मुहब्बत तो हर सर सजा है
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//जनाब मोईन शम्सी जी//

तुम्हारी मुहब्बत हमारी मुहब्बत
जहाँ में सभी की है प्यारी मुहब्बत ।

मुसीबत के कितने पहाड़ इस पे टूटे
न ज़ुल्म-ओ-सितम से है हारी मुहब्बत ।

इसे रोकने को कई आए लेकिन
है आब-ए-रवाँ जैसी जारी मुहब्बत ।

इक आशिक़ ने इक रोज़ हम से कहा था
"ख़ुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत" ।

है जिस दिन से देखा वो नूरानी पैकर
नशे जैसी दिल पे है तारी मुहब्बत ।

पुरुष भूल जाता है अक्सर, परन्तू
नहीं भूल पाती है नारी मुहब्बत ।

उसे बे-ज़बानों का खूँ है बहाना
करेगा भला क्या शिकारी मुहब्बत ।

हैं सब तुझ पे शैदा, है क्या ख़ास तुझ में
ज़रा मुझ को ये तो बता री मुहब्बत !

कभी दिल में ’शमसी’ के आ के तो देखो
है इस में भरी ढेर सारी मुहब्बत ।
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//जनाब पुरषोत्तम आज़र जी//

खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत
नसीबों ही वालों को मिलती मुहब्बत

है यह भी जरूरी अदब से हों वाकिफ़
अगर तुमको पानी है सच्ची मुहब्बत

कभी गम हैं मिलते कभी मिलती खुशियां
हमेशा से दोनो कि सानी मुहब्बत

है सबको पता आग-पानी में अंतर
मिलन से ही इनके है होती मुहब्बत

मेरी बात तुझको जो लगती है कड़वी
उसी में तू पायेगा मेरी मुहब्बत

चले आओ लिख दो इबारत हवा पर
महक बन के फ़ैलेगी अपनी मुहब्बत

भुला दूं मैं कैसे ये अहसान तेरा
खुदा तूने बख्शी जो सच्ची मुहब्बत
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अभी बोल उठ्ठेगी, पत्थर की मूरत
खुदा की है ये ,दस्तकारी मुहब्बत

नहीं मोल बिकाती ,कहीं पर शराफ़त
झलकती है चेहरों पे, इसकी नजाकत

छुपे राज इनमें , न झूठी वकालत
बुजर्गों कि बातों में ,सच्ची हकीकत

सुनाता हूं तुमको, पुरानी कहावत
शर्मसार होती ,हमेशा जलालत

बड़ी मेहरबानी , ये हम पर इनायत
निगाहों से छ्लके , तुम्हारी बगावत

ये मासूम चेहरा, क्यामत-सी आंखे
मेरी यह दुआ है ,रहे तू सलामत

लिखे शे,र तूने ,लिखे खूब "आज़र"
जरा यह बता दे हैं किसकी बदौलत
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//जनाब अरुण कुमार पाण्डेय "अभिनव" जी//

कहाँ सरहदों से है हारी मुहब्बत
है नफरत के जज्बे पे भारी मुहब्बत |

ये राहत ये अदनान फूल उस चमन के
मगर इनकी खुशबू हमारी मुहब्बत |

मुहब्बत भरे दिल चटख बेल-बूटे
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत |

ये गोले ये बारूद बम के ज़खीरे
सिसकती है केसर की क्यारी मुहब्बत |

बहुत दुश्मनी की अमाँ छोड़ भी दो
करें अपने बाघा-अटारी मुहब्बत |

कदम दो चलो तुम कदम दो चले हम
ये दुनिया भी देखे हमारी मुहब्बत |

लता और ग़ुलाम अली गाते हैं ग़ज़लें
है दोनों तरफ बेकरारी मुहब्बत |

चलो सानिया और शोएब से सीखें
है बेटी हमारी तुम्हारी मुहब्बत |

ये लैला ये मजनू ये शीरीं ये फरहाद
निभालो तो यारों की यारी मुहब्बत |

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नए दौर एक नयी सी दिखावट
कहाँ रह गयी अब मोहब्बत इबादत |

वो हुस्नो अदा नाज़ नखरे हया सब
मोहब्बत कभी थी पोशीदा निहायत |

हर एक बात पे शुक्रिया और तोफे
ये जज़्बात की हो रही है नुमायश |

कभी मुद्दतों बाद होता था मुमकिन
मगर आजकल इश्क होता फटाफट |


निकाह और तलाक हो गये हाई टेक हैं
ये घनघोर कलयुग कहाँ आ गये हम |

बड़े शौक़ से उसने इसको गढा है
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत |

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//मोहतरमा अनीता मौर्य जी//

हर शै से है, प्यारी मुहब्बत
खुदा की ये दस्तकारी मुहब्बत..

इक बार लो लग जाए, ताउम्र छूटती नहीं,
ऐसी है ये बीमारी मोहब्बत..

कभी गुजरता है पल सदियों में, कभी सदियाँ पलों में
कैसी है ये खुमारी मोहब्बत..

इश्क जब जूनून बन जाता है, महबूब ही खुदा हो जाता है
कायनात पर है ये भारी मुहब्बत...

दिखने में कमजोर वो शख्स, ज़माने से लड़ गया
वाह रे तेरी ये कलाकारी मोहब्बत ...
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//जनाब राकेश गुप्ता जी//

खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत,
जमाने में सबसे है प्यारी मुहब्बत........

मोहब्बत किये हैं शहीद ए वतन जो,
अपनी जाँ ओ लहू दे संवारी मुहब्बत ...........

आजादी की दुल्हन का करने वरण वो,
तमाम उम्र जेल में गुजारी मुहब्बत ..........

वन्दे मातरम कह चूमा फांसी का फंदा,
है फांसी के फंदे पे भारी मुहब्बत .........

शहीदों ने लहू दे कर सींचा है जिसको,
अमन की वो सुंदर फुलवारी मुहब्बत........

जाती, भाषा, प्रान्त की खातिर हम लड़ रहे,
अजब है ये कैसी हमारी मुहब्बत .........

बेहद शर्मिंदगी की बात है यारों,
शहीदों की शहादत पे जारी मुहब्बत.........

नेताओं समझ में ना आई किसी को,
वतन से ये कैसी तुम्हारी मुहब्बत .........

समझ के भी समझ ना पाया "दीवाना"
कैसी खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत..........
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खुदा ने नवाजा है, इंसान को जिससे,
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत !!1

खुदा ने चाहा दूं इंसान को तोहफा,
फलक से जमीन पर उतारी मुहब्बत!!2

अपने ही लहू को, अपने हाथों मिटाते,
ये आखिर है कैसी हमारी मुहब्बत !!3

जमाना बदलने की रखती है जिद जो,
बगावत की है चिंगारी मुहब्बत !!4

प्रेमी जोड़ों के रोज, होते कत्ल पर,
आनर किलिंग पर है, भारी मुहब्बत !!5

जाति, धर्म, रस्मो की, बलि बेदी पर,
रीती रिवाजों से क्यूँ हारी मुहब्बत !!6

लैला मजनू शीरी फरहाद की राह पर ही,
फिर चल पड़ी ये बेचारी मुहब्बत!!7

मुहब्बत आदम को इन्सां बनाती,
सिखाती हमे दुनियादारी मुहब्बत !!8

सभी तुझ पे, मिटने की खातिर हैं ज़िंदा,
है क्या खास तुझमे बता री मुहब्बत !!9

फिर कत्लगाह में, खींच ही लाई,
साम्प्रदायिक हुई हत्यारी मुहब्बत !!10

मुहब्बत कहाँ कब, उम्र को देखती है,
पर बदनाम बस क्यूँ कुंवारी मुहब्बत!!11

उनकी विरासत बम और खूंरेजी,
वो समझते कहाँ है हमारी मुहब्बत !! 12

मुहब्बत ही बसती है सरहद के आर पार,
पर कट्टरता ओ नफरत से हारी मुहब्बत!!13

मुहब्बत की भाषा कहाँ जानते वो
उन्हें डरपोक लगती हमारी मुहब्बत!!14

गजल, छंद, जो सीखना चाहे "दीवाना"
तो OBO से कर ढेर सारी मुहब्बत !!15

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//जनाब दिगम्बर नासवा जी//

खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत
जमीं पे है किसने उतारी मुहब्बत

उमड़ती घटाएं महकती फिजायें
किसी की तो है चित्रकारी मुहब्बत

तेरी सादगी गुनगुनाती है हर सू
मुहब्बत मुहब्बत हमारी मुहब्बत

तेरे गीत नगमें तेरी याद लेकर
तेरा नाम लेकर संवारी मुहबत

पनपने लगेंगे कई ख्वाब मिल के
जो पलकों में तूने उतारी मुहब्बत

मुहब्बत है सौदा दिलों का दिलों से
न मैं जीत पाया न हारी मुहब्बत

सुनाते हैं जो लैला मजनू के किस्से
वो कहते हैं कितनी हे प्यारी मुहब्बत

चली है जुबां पर मेरा नाम लेकर
वो नाज़ुक सि अल्हड कुंवारी मुहब्बत
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खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत
है किसने मेरे घर उतारी मुहब्बत

है बदली हुई वादियों की फिजायें
पहाड़ों पे हे बर्फ़बारी मुहब्बत

अमीरों को मिलती है ये बेतहाशा
गरीबों को है रेजगारी मुहब्बत

ज़माने के झूठे रिवाजों में फंस कर
लुटी बस मुहब्बत बिचारी मुहब्बत

है दस्तूर कैसा ज़माने क देखो
सदा ही है पैसे से हारी मुहब्बत

फटेहाल जेबों ने धीरे से बोला
चलो आज कर लो उधारी मुहब्बत
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//जनाब भास्कर अग्रवाल जी//

आज कर रही नयी तैयारी मुहब्बत
होगी फिर से कुंवारी मुहब्बत |1|

कैद न कर सकेगा अब इसे कोई
बनेगी खुद चारदीवारी मुहब्बत |2|

क्यों कहते हो इसे मामला दिल का
मुझको तो लगती होशियारी मोहब्बत |3|

अकेले न बन पाता ये किस्सा मुहब्बत का
कुछ थी तुम्हारी कुछ हमारी मुहब्बत |4|

जो सिर्फ झुकते खुदी के आगे
लगती उन्हें खुद्दारी मुहब्बत |5|

लगी जिसे आदत मांगने की
उसको है बेकारी मुहब्बत |6|

जीत जाती ये लगाकर दांव जिंदगी का
है सबसे बड़ी जुआरी मुहब्बत |7|

हर जर्रे तक है पहुँच इसकी
पर नज़र के आगे हारी मुहब्बत |8|

खुद के बस की बात नहीं ये
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत |9|

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अब कैसे करें इस बात पे शिकायत
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत

बात बन गयी बिन किये कुछ महनत
बरस पड़ी थी शायद उसी की रहमत

तू सामने हो और बयां हो हालत
इतनी कहाँ हमने पाई है हिम्मत

जो ग़ज़ल देती थी मेरे दिल को रहत
महफ़िल में बन गयी वो मसला ऐ इज्ज़त

करूंगा में सम्हाल कर चलने की जुर्रत
होगी मुझे जब लड़खड़ाने से फुर्सत

नींद में रहकर जब ख्वाब करते हैं खिदमत
फिर क्यों जागूं में मुझे क्या है ज़रुरत

उसी का खेल था सब,थी उसी की शरारत
हर हाल में था हार जाना जो करता में हरकत

गिरा सकती थी मुझे इस ज़माने की शोहरत
अगर न थामती मुझे तेरे हाथों की हरारत

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//जनाब अरविन्द चौधरी जी //

गुलों में भरी है जहां की नजाकत,
ख़ुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत

सभी एक जैसे ख़ुदा की नज़र में,
बड़ा हो कि छोटा,न कोई हिमायत

कई कारवाँ गुम हुए है यहाँ से
जगत ये नहीं है किसीकी अमानत

चमन रास आया न खुशबू गुलों की
ख़ुदा से कभी की न हमने शिकायत


लगी प्यास मुझको,बुझा दे ख़ुदाया
करो आज नाचीज़ पर तुम इनायत

मज़ा शेर का तो तभी खूब आए,
अगर काफ़िया साथ लाए अलामत

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//जनाब डॉ संजय दानी जी //

ख़ुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत,
वफ़ाओं से लबरेज़ है ये इमारत।

ख़ुदा वालों से भी ये डरती नहीं है
तिलक वालों को भी रुलाती है उलफ़त।

हुई तोड़ने की कई कोशिशें पर,
सदा चोट खाकर हुई और उन्नत।

ग़मों से निभाओ ख़ुशी से , मिलेगी
तसल्ली,सुकूनो-करारो-मसर्रत।

फ़िज़ाओं में दिल मेरा लगता नहीं है,
तेरी ज़ुल्फ़ों के साये में मेरी ज़न्नत।

ज़मानत चराग़ों की मैं ले चुका हूं,
कहां है तेरी आंधियों की अदालत।

समंदर को कल मैंने धमकाया है वो,
तेरी आंखों से रखता है क्यूं अदावत।

सफ़र से बहुत डरता था कल तलक , तू
मिली तो किया मंज़िलों से बग़ावत।

फ़कीरी मुहब्बत में तूने मुझे दी,
मेरे दिल के कासे पे भी कर इनायत।

रसोई मेरी सूनी सूनी है दानी,
उसे दस्ते-मासूम की है ज़रूरत।
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ख़ुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत,
वफ़ाओं की ही देनदारी मुहब्बत।

ज़माने में सबसे उपर नाम इसका,
इरादों से हर शय पे भारी मुहब्बत।

ग़ुनाहे -वफ़ा गर किसी ने किया तो,
पलटकर हमेशा दहाड़ी मुहब्बत।

उसे बदले में प्यार ही चाहिये, ना
करे पैसों की मग्ज़-मारी मुहब्बत।

ज़माने का इसको नहीं डर ज़रा भी,
करे दुनिया भर रंगदारी मुहब्बत।

किसी ने सरलता से पाई मुहब्बत,
किसी के लिये फ़ौज़दारी मुहब्बत।

कोई धन लुटाकर करे प्यार हासिल,
किसी के लिये रोज़गारी मुहब्बत।

कभी वस्ल की फ़स्लें दिल से उगाती ,
कभी हिज्र की कास्तकारी मुहब्बत।

कहीं मुल्के-भारत की सच्ची मुहब्बत
कहीं पल दो पल की ब्रितानी मुहब्बत।

कभी मैंने भी प्यार ज़हर पीया,
बड़ी ज़ुल्मी होती अव्वली मुहब्बत।

मुहब्बत में दरवेश मैं बन गया था,
करेगा कभी अब न दानी मुहब्बत
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//जनाब वीरेन्द्र जैन जी//

बारिश की पहली फुहारी मोहब्बत,
खुदा की है ये दस्तकारी मोहब्बत I

नहीं वास्ता इसका मज़हब से कोई,
ऩफीसा की मोहन से यारी मोहब्बत I

छुओ ना इसे रूह में तुम सहेजो,
है आँखों की महकती खुमारी मोहब्बत I

है बेफ़िक्र मदमस्त झोंका हवा का
वो सोलह बरस की कुँवारी मोहब्बत I

बजाकर कटोरी वो नाज़ो अदा से
रसोई से हुमको पुकारी मोहब्बत I

चंदन का लेप ना साबुन का पानी,
निखारे तेरा हुस्न हमारी मोहब्बत I

नहीं खेल बच्चों का चलना संभलके,
है तलवार तेज़ दोधारी मोहब्बत I

होके जुदा लगता सदियों सा हर पल,
अजब ये दिलों की बेक़रारी मोहब्बत इ
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है फूलों सी महकती नाज़ुक नज़ाकत,
खुदा की है दस्तकारी मोहब्बत I

रह जाते हैं कुछ निशाँ मुद्दतों बाद भी,
गीली मिट्टी में उपके क़दमों सी चाहत I

आ छिपा लूँ तुझे मैं निगाहों में अपनी,
कुछ लगती नहीं ठीक उस चाँद की नीयत I

चलूँगा मैं बनकर आसमाँ संग तेरा,
इक बार जो दे दे तू मुझको इजाज़त I

मंज़िल की झलक ना राहों की आहट,
ले आई किस मोड़ पे हमको ये उलफत I

चला जो गया ना आऊंगा वापस,
हूँ वक़्त मैं नहीं मेरी मौसम सी फ़ितरत I

मिट जाए ज़माने से मज़हबी दीवारें,
मोहब्बत ही हो खुदा मोहब्बत इबादत I

बक़्श दो इंटें उनके आदर्श घरों की,
जो करते हैं सीमा पे देश की हिफ़ाज़त I

हो फैला अंधेरा या रोशन डगर हो,
सुख दुख में संग संग चलती मोहब्बत I

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//आचार्य संजीव सलिल जी//

'सलिल' सद्गुणों की पुजारी मुहब्बत.
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत.१.

गंगा सी पावन दुलारी मुहब्बत.
रही रूह की रहगुजारी मुहब्बत.२.

अजर है, अमर है हमारी मुहब्बत.
सितारों ने हँसकर निहारी मुहब्बत.३.

महुआ है तू महमहा री मुहब्बत.
लगा जोर से कहकहा री मुहब्बत.४.

पिया बिन मलिन है दुखारी मुहब्बत.
पिया संग सलोनी सुखारी मुहब्बत.५.

सजा माँग सोहे भ'तारी मुहब्बत.
पिला दूध मोहे म'तारी मुहब्बत.६.

नगद है, नहीं है उधारी मुहब्बत.
है शबनम औ' शोला दुधारी मुहब्बत.७.

माने न मन मनचला री मुहब्बत.
नयन-ताल में झिलमिला री मुहब्बत.८.

नहीं ब्याहता या कुमारी मुहब्बत.
है पूजा सदा सिर नवा री, मुहब्बत.९.

जवां है हमारी-तुम्हारी मुहब्बत..
सबल है, नहीं है बिचारी मुहब्बत.१०.

उजड़ती है दुनिया, बसा री मुहब्बत.
अमन-चैन थोड़ा तो ब्या री मुहब्बत.११.

सम्हल चल, उमरिया है बारी मुहब्बत.
हो शालीन, मत तमतमा री मुहब्बत.१२.

दीवाली का दीपक जला री मुहब्बत.
न बम कोई लेकिन चला री मुहब्बत.१३.

न जिस-तिस को तू सिर झुका री मुहब्बत.
जो नादां है कर दे क्षमा री मुहब्बत.१४.

जहाँ सपना कोई पला री मुहब्बत.
वहीं मन ने मन को छला री मुहब्बत.१५.

न आये कहीं जलजला री मुहब्बत.
लजा मत तनिक खिलखिला री मुहब्बत.१६.

अगर राज कोई खुला री मुहब्बत.
तो करना न कोई गिला री मुहब्बत.१७.

बनी बात काहे बिगारी मुहब्बत?
जो बिगड़ी तो क्यों ना सुधारी मुहब्बत?१८.

कभी चाँदनी में नहा री मुहब्बत.
कभी सूर्य-किरणें तहा री मुहब्बत.१९.

पहले तो कर अनसुना री मुहब्बत.
मानी को फिर ले मना री मुहब्बत.२०.

चला तीर दिल पर शिकारी मुहब्बत.
दिल माँग ले न भिखारी मुहब्बत.२१.

सजा माँग में दिल पियारी मुहब्बत.
पिया प्रेम-अमृत पिया री मुहब्बत.२२.

रचा रास बृज में रचा री मुहब्बत.
हरि न कहें कुछ बचा री मुहब्बत.२३.

लिया दिल, लिया रे लिया री मुहब्बत.
दिया दिल, दिया रे दिया, री मुहब्बत.२४.

कुर्बान तुझ पर हुआ री मुहब्बत.
काहे सारिका से सुआ री मुहब्बत.२५.

दिया दिल लुटा तो क्या बाकी बचा है?
खाते में दिल कर जमा री मुहब्बत.२६.

दुनिया है मंडी खरीदे औ' बेचे.
कहीं तेरी भी हो न बारी मुहब्बत?२७.

सभी चाहते हैं कि दर से टरे पर
किसी से गयी है न टारी मुहब्बत.२८.

बँटे पंथ, दल, देश बोली में इंसां.
बँटने न पायी है यारी-मुहब्बत.२९.

तौलो अगर रिश्तों-नातों को लोगों
तो पाओगे सबसे है भारी मुहब्बत.३०.

नफरत के काँटे करें दिल को ज़ख़्मी.
मिलें रहतें कर दुआ री मुहब्बत.३१.

कभी माँगने से भी मिलती नहीं है.
बिना माँगे मिलती उदारी मुहब्बत.३२.

अफजल को फाँसी हो, टलने न पाये.
दिखा मत तनिक भी दया री मुहब्बत.३३.

शहादत है, बलिदान है, त्याग भी है.
जो सच्ची नहीं दुनियादारी मुहब्बत.३४.

धारण किया धर्म, पद, वस्त्र, पगड़ी.
कहो कब किसी ने है धारी मुहब्बत.३५.

जला दिलजले का भले दिल न लेकिन
कभी क्या किसी ने पजारी मुहब्बत?३६.

कबीरा-शकीरा सभी तुझ पे शैदा.
हर सूं गई तू पुकारी मुहब्बत.३७.

मुहब्बत की बातें करते सभी पर
कहता न कोई है नारी मुहब्बत?३८.

तमाशा मुहब्बत का दुनिया ने देखा
मगर ना कहा है 'अ-नारी मुहब्बत.३९.

चतुरों की कब थी कमी जग में बोलो?
मगर है सदा से अनारी मुहब्बत.४०.

बहुत हो गया, वस्ल बिन ज़िंदगी क्या?
लगा दे रे काँधा दे, उठा री मुहब्बत.४१.

निभाये वफ़ा तो सभी को हो प्यारी
दगा दे तो कहिये छिनारी मुहब्बत.४२.

भरे आँख-आँसू, करे हाथ सजदा.
सुकूं दे उसे ला बिठा री मुहब्बत.४३.

नहीं आयी करके वादा कभी तू.
सच्ची है या तू लबारी मुहब्बत?४४.

महज़ खुद को देखे औ' औरों को भूले.
कभी भी न करना विकारी मुहब्बत.४५.

हुआ सो हुआ अब कभी हो न पाये.
दुनिया में फिर से निठारी मुहब्बत.४६.
.
कभी मान का पान तो बन न पायी.
बनी जां की गाहक सुपारी मुहब्बत.४७.

उठाते हैं आशिक हमेशा ही घाटा.
कभी दे उन्हें भी नफा री मुहब्बत.४८.

न कौरव रहे कोई कुर्सी पे बाकी.
जो सारी किसी की हो फारी मुहब्बत.४९.

कलाई की राखी, कजलियों की मिलनी.
ईदी-सिवँइया, न खारी मुहब्बत.५०.

नथ, बिंदी, बिछिया, कंगन औ' चूड़ी.
पायल औ मेंहदी, है न्यारी मुहब्बत.५१.

करे पार दरिया, पहाड़ों को खोदा.
न तू कर रही क्यों कृपा री मुहब्बत?५२.

लगे अटपटी खटपटी चटपटी जो
कहें क्या उसे हम अचारी मुहब्बत?५३.

अमन-चैन लूटा, हुई जां की दुश्मन.
हुई या खुदा! अब बला री मुहब्बत.५४.

तू है बदगुमां, बेईमां जानते हम
कभी धोखे से कर वफा री मुहब्बत.५५.

कभी ख़त-किताबत, कभी मौन आँसू.
कभी लब लरजते, पुकारी मुहब्बत.५६.

न टमटम, न इक्का, नहीं बैलगाड़ी.
बसी है शहर, चढ़के लारी मुहब्बत.५७.

मिला हाथ, मिल ले गले मुझसे अब तो
करूँ दुश्मनों को सफा री मुहब्बत.५८.

तनिक अस्मिता पर अगर आँच आये.
बनती है पल में कटारी मुहब्बत.५९.

है जिद आज की रात सैयां के हाथों.
मुझे बीड़ा दे तू खिला री मुहब्बत.६०.

न चौका, न छक्का लगाती शतक तू.
गुले-दिल खिलाती खिला री मुहब्बत.६१.

न तारे, न चंदा, नहीं चाँदनी में
ये मनुआ प्रिया में रमा री मुहब्बत.६२.

समझ -सोच कर कब किसी ने करी है?
हुई है सदा बिन विचारी मुहब्बत.६३.

खा-खा के धोखे अफ़र हम गये हैं.
कहें सब तुझे अब अफारी मुहब्बत.६४.

तुझे दिल में अपने हमेशा है पाया.
कभी मुझको दिल में तू पा री मुहब्बत.65.

अमन-चैन हो, दंगा-संकट हो चाहे
न रोके से रुकती है जारी मुहब्बत.६६.

सफर ज़िंदगी का रहा सिर्फ सफरिंग
तेरा नाम धर दूँ सफारी मुहब्बत.६७.

जिसे जो न भाता उसे वह भगाता
नहीं कोई कहता है: 'जा री मुहब्बत'.६८.

तरसती हैं आँखें झलक मिल न पाती.
पिया को प्रिया से मिला री मुहब्बत.६९.

भुलाया है खुद को, भुलाया है जग को.
नहीं रबको पल भर बिसारी मुहब्बत.७०.

सजन की, सनम की, बलम की चहेती.
करे ढाई आखर-मुखारी मुहब्बत.७१.

न लाना विरह-पल जो युग से लगेंगे.
मिलन शायिका पर सुला री मुहब्बत.७२.

उषा के कपोलों की लाली कभी है.
कभी लट निशा की है कारी मुहब्बत.७३.

मुखर, मौन, हँस, रो, चपल, शांत है अब
गयी है विरह से उबारी मुहब्बत..

न तनकी, न मनकी, न सुध है बदनकी.
कहाँ हैं प्रिया?, अब बुला री मुहब्बत.७४.

नफरत को, हिंसा, घृणा, द्वेष को भी
प्रचारा, न क्योंकर प्रचारी मुहब्बत?७५.

सातों जनम तक है नाता निभाना.
हो कुछ भी न डर, कर तयारी मुहब्बत.७६.

बसे नैन में दिल, बसे दिल में नैना.
सिखा दे उन्हें भी कला री मुहब्बत.७७.

कभी देवता की, कभी देश-भू की
अमानत है जां से भी प्यारी मुहब्बत.७८.

पिए बिन नशा क्यों मुझे हो रहा है?
है साक़ी, पियाला, कलारी मुहब्बत.७९.

हो गोकुल की बाला मही बेचती है.
करे रास लीलाविहारी मुहब्बत.८०.

हवन का धुआँ, श्लोक, कीर्तन, भजन है.
है भक्तों की नग्मानिगारी मुहब्बत.८१.

ज़माने ने इसको कभी ना सराहा.
ज़माने पे पड़ती है भारी मुहब्बत.८२.

मुहब्बत के दुश्मन सम्हल अब भी जाओ.
नहीं फूल केवल, है आरी मुहब्बत.८३.

फटेगा कलेजा न हो बदगुमां तू.
सिमट दिल में छिप जा, समा री मुहब्बत.८४.

गली है, दरीचा है, बगिया है पनघट
कुटिया-महल है अटारी मुहब्बत.८५.

पिलाया है करवा से पानी पिया ने.
तनिक सूर्य सी दमदमा री मुहब्बत.८६.

मुहब्बत मुहब्बत है, इसको न बाँटो.
तमिल न मराठी-बिहारी मुहब्बत.८७.

न खापों का डर है न बापों की चिंता.
मिटकर निभा दे तू यारी मुहब्बत.८८.

कोई कर रहा है, कोई बच रहा है.
गयी है किसी से न टारी मुहब्बत.८९.

कली फूल कांटा है तितली- भ्रमर भी
कभी घास-पत्ती है डारी मुहब्बत.९०.

महल में मरे, झोपड़ी में हो जिंदा.
हथेली पे जां, जां पे वारी मुहब्बत.९१.

लगा दाँव पर दे ये खुद को, खुदा को.
नहीं बाज आये, जुआरी मुहब्बत.९२.

मुबारक है हमको, मुबारक है तुमको.
मुबारक है सबको, पिआरी मुहब्बत.९३.

रहे भाजपाई या हो कांगरेसी
न लेकिन कभी हो सपा री मुहब्बत.९४.

पिघल दिल गया जब कभी मृगनयन ने
बहा अश्क जीभर के ढारी मुहब्बत.९५.

जो आया गया वो न कोई रहा है.
अगर हो सके तो न जा री मुहब्बत.९६.

समय लीलता जा रहा है सभी को.
समय को ही क्यों न खा री मुहब्बत?९७.

काटे अनेकों लगाया न कोई.
कर फिर धरा को हरा री मुहब्बत.९८.

नंदन न अब देवकी के रहे हैं.
न पढ़ने को मिलती अयारी मुहब्बत.९९.

शतक पर अटक मत कटक पार कर ले.
शुरू कर नयी तू ये पारी मुहब्बत.१००.

न चौके, न छक्के 'सलिल' ने लगाये.
कभी हो सचिन सी भी पारी मुहब्बत.९६.

'सलिल' तर गया, खुद को खो बेखुदी में
हुई जब से उसपे है तारी मुहब्बत.९७.

'सलिल' शुबह-संदेह को झाड़ फेंके.
ज़माने की खातिर बुहारी मुहब्बत.९८.

नए मायने जिंदगी को 'सलिल' दे.
न बासी है, ताज़ा-करारी मुहब्बत.९९.

जलाती, गलाती, मिटाती है फिर भी
लुभाती 'सलिल' को वकारी मुहब्बत.१००.

नहीं जीतकर भी 'सलिल' जीत पायी.
नहीं हारकर भी है हारी मुहब्बत.१०१.

नहीं देह की चाह मंजिल है इसकी.
'सलिल' चाहता निर्विकारी मुहब्बत.१०२.

'सलिल'-प्रेरणा, कामना, चाहना हो.
होना न पर वंचना री मुहब्बत.१०४.

बने विश्व-वाणी ये हिन्दी हमारी.
'सलिल' की यही कामना री मुहब्बत.१०५.

ये घपले-घुटाले घटा दे, मिटा दे.
'सलिल' धूल इनको चटा री मुहब्बत.१०६.

'सलिल' घेरता चीन चारों तरफ से.
बहुत सोये अब तो जगा री मुहब्बत.१०७.

अगारी पिछारी से होती है भारी.
सच यह 'सलिल' को सिखा री मुहब्बत.१०८.

'सलिल' कौन किसका हुआ इस जगत में?
न रह मौन, सच-सच बता री मुहब्बत.१०९.

'सलिल' को न देना तू गारी मुहब्बत.
सुना गारी पंगत खिला री मुहब्बत.११०.

'सलिल' तू न हो अहंकारी मुहब्बत.
जो होना हो, हो निराकारी मुहब्बत.१११.

'सलिल' साधना वन्दना री मुहबत.
विनत प्रार्थना अर्चना री मुहब्बत.११२.

चला, चलने दे सिलसिला री मुहब्बत.
'सलिल' से गले मिल मिल-मिला री मुहब्बत.११३.

कभी मान का पान लारी मुहब्बत.
'सलिल'-हाथ छट पर खिला री मुहब्बत.११४.

छत पर कमल क्यों खिला री मुहब्बत?
'सलिल'-प्रेम का फल फला री मुहब्बत.११५.

उगा सूर्य जब तो ढला री मुहब्बत.
'सलिल' तम सघन भी टला री मुहब्बत.११६.

'सलिल' से न कह, हो दफा री मुहब्बत.
है सबका अलग फलसफा री मुहब्बत.११७.

लड़ाती ही रहती किला री मुहब्बत.
'सलिल' से न लेना सिला री मुहब्बत.११८.

तनिक नैन से दे पिला री मुहब्बत.
मरते 'सलिल' को जिला री मुहब्बत.११९.

रहे शेष धर, मत लुटा री मुहब्बत.
कल को 'सलिल' कुछ जुटा री मुहब्बत.१२०.

प्रभाकर की रौशन अटारी मुहब्बत.
कुटिया 'सलिल' की सटा री मुहब्बत.१२१.
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खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत.
मनोभूमि की काश्तकारी मुहब्बत..

मिले मन तो है मस्तकारी मुहब्बत.
इन्सां की है हस्तकारी मुहब्बत..

जीता न दिल को, महज दिल को हारा.
तो कहिये इसे पस्तकारी मुहब्बत..

मिले सज-सँवर के, सलीके से हरदम.
फुर्ती सहित चुस्तकारी मुहब्बत..

बना सीढ़ियाँ पीढ़ियों को पले जो
करिए नहीं पुश्तकारी मुहब्बत..

ज़बर-जोर से रिश्ता बनता नहीं है.
बदनाम है जिस्तकारी मुहब्बत..

रखे एक पर जब नजर दूसरा तो.
शक्की हुई गश्तकारी मुहब्बत..

रही बिस्तरों पे सिसकती सदा जो
चाहे न मन बिस्तकारी मुहब्बत..

किताबी मुहब्बत के किस्से अनेकों.
पढ़ो नाम है पुस्तकारी मुहब्बत..

घिस-घिस के एड़ी न दीदार पाये.
थक-चुक गयी घिस्तकारी मुहब्बत..

बने दोस्त फिर प्यार पलने लगे तो
नकारो नहीं दोस्तकारी मुहब्बत..

मिले आते-जाते रस्ते पे दिल तो.
नयन में पली रस्तकारी मुहब्बत..

चक्कर पे चक्कर लगाकर थके जब
तो बोले कि है लस्तकारी मुहब्बत..

शुरू देह से हो खतम देह पर हो.
है गर्हित 'सलिल' गोश्तकारी मुहब्बत..

बातों ही बातों में बातों से पैदा
बरबस 'सलिल' नशिस्तकारी मुहब्बत..

छिपे धूप रवि से, शशि चांदनी से
'सलिल' है यही अस्तकारी मुहब्बत..

'सलिल' दोनों रूठें मनाये न कोई.
तो कहिये हुई ध्वस्तकारी मुहब्बत..

मिलते-बिछुड़ते जो किस्तों में रुक-रुक
वो करते 'सलिल' किस्तकारी मुहब्बत..

उसे चाहती जो न मिलकर भी मिलता.
'सलिल' चाह यह जुस्तकारी मुहब्बत..

बने एक-दूजे की खातिर 'सलिल' जो
पलती वहीं जीस्तकारी मुहब्बत..

* दस्तकारी = हस्तकला, काश्तकारी = खेती, पस्तकारी = थकने-हरानेवाली, गश्तकारी = पहरेदारी, जिस्त = निकृष्ट/ खराब, नशिस्त = गोष्ठी, जीस्त = ज़िंदगी, जुस्त = तलाश.
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//जनाब शेखर चतुर्वेदी जी//

दिलों में सदा इसकी चलती हुक़ूमत |
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत||

मैं कूचा ए जानां से जब भी हूँ गुज़रा |
बदन में अज़ब सी हुई है हरारत ||

नही हुक्मरानों को क्यूँ शर्म आती|
सरेआम लुटती है बहनों की अस्मत||

दबे पांव लूटा जिन्होने वतन को|
सरेआम खुल के रही उन की कुलफत||

क्यूँ टकराते हो जात मज़हब पे भाई |
बिना बात की पाल ली है अदावत ||

सितारों को देखो हैं लाखों करोड़ों |
कभी ना झगड़ते लो इनसे नसीहत ||

हैं चेहरे तो उजले मगर दिल हैं काले|
अमीरों की यारो, यही है हक़ीकत||

ये आज़ादी जो है शहीदों ने बक्शी |
दिलोजाँ से इसकी करो तुम हिफ़ाज़त||

करो यार तौबा हरिक उस खुशी से|
कि ईमान इन्साँ का हो जिसकी कीमत||

करो शुक्र दिल से पिता मातु का तुम|
तुम्हारी है हस्ती उन्ही की बदौलत ||

बुजुर्गों की इज़्ज़त पे जो वार कर दे|
करो ना कभी कोई ऐसी हिमाकत||

अमन चैन खुशियाँ सदा हो यहाँ पर|
मेरे मुल्क को दाता रखना सलामत||

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//जनाब सतीश मापतपुरी जी //

मुहब्बत जहाँ में है सच्ची इबादत.
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत.

जानें वो किस बात पर यूँ अकड़ते .
किसकी रही है हमेशा हुकूमत.

क्यों हम कहें कि बदल वो गए हैं .
हसीनों की ऐसी ही होती है फितरत.

हिन्दू- मुसलमां में रंजिश कहाँ है.
ये तो सियासत की है एक शरारत.

किस बात का खौफ है मापतपुरी.
क्यों सहने की पड़ गयी हमको आदत.
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//जनाब अरविंद चतुर्वेदी जी//

खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत,
सभी के लिए है ज़रूरी मुहब्बत

जनता को लूट रहे हैं सारे नेता
फिर दिखा रहे हैं देश से मोहब्बत,

दिन मैं एक दूसरे पेर कीचड़ उछालते ,
रात को एक साथ लेते है दावत,

समझ मैं न आए अरविंद को भैया
ये कैसी मोहब्बत,ये कैसी मोहब्बत

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//जनाब गणेश बागी जी//

जहां जब तलक ये रहेगा सलामत,
रहेगी सलामत हमारी मुहब्बत,

नजर जो पड़ी तो लरज सी गयी वो,
पलक का झुकाना है उनकी ख़जालत(लज्जा),

तेरे दिल मे जो है मुझे भी पता है,
मगर तेरे मुँह से है सुनने की चाहत,

तेरे साथ लूँ अग्नि के सात फेरे,
मिले गर बुजुर्गों की हमको इजाजत,

बने हम सफ़र अजनबी दो जमीं पर,
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत,
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//जनाब आशीष यादव जी//

जय व पराजय में देती जो सोहबत|
खुदा की है वो दस्तकारी मोहब्बत||

यही पंथ है नेक शान्ती का केवल|
मानवता को है सवांरी मोहब्बत||

मिल जुल के जो हमको रहना सिखाती|
बनी आज शिक्षक हमारी मोहब्बत||

मंजिल तक पहुचाये हमराह के संग|
इक सूत में बांधें प्यारी मोहब्बत||

बनिहारी कैसे हो सकती है इसमें|
किसी की नहीं काश्तकारी मोहब्बत||

नहीं तुम बचोगे नहीं हम बचेंगे|
अगर रो पड़ी जो लाचारी मोहब्बत||

संकल्प लें, एक तिल ना घटे ये|
हमारी मोहब्बत, तुम्हारी मोहब्बत||
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//जनाब दानिश भारती जी//

दिलो जान से हमको प्यारी मुहोब्बत
हमें रास आई हमारी मुहोब्बत

मिलेगी हमेशा मिआरी मुहोब्बत
कभी आज़मा लो हमारी मुहोब्बत

ज़माने के इस पर सितम ही रहे हैं
मगर कब ज़माने से हारी मुहोब्बत

सभी के दिलों में , सभी के दिलों तक
'ख़ुदा की ये है दस्तकारी, मुहोब्बत'

नदी, जा मिली अपने सागर-पिया से
सुहागिन बनी है कुँवारी मुहोब्बत

किताबों का हिस्सा हैं अब वो , जिन्होंने ,
लहू दे के अपना , सँवारी मुहोब्बत

दग़ा , दुश्मनी , बेरुखी , बैर , धोखा ,
हर इक शै पे पड़ती है भारी, मुहोब्बत

ख़ुदा से, चलो ये दुआ मिल के मांगें
हमेशा रहे सब पे तारी मुहोब्बत

मैं 'दानिश', मुहोब्बत का ही दम भरूँगा
करेगी मेरी पासदारी मुहोब्बत
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//जनाब नेमीचंद पूनिया जी//

मिलती है सबको रंजो-गम से राहत।
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत।।

वक्त ठहर सा जाता है, उस घड़ी पल
सुनता है जब उसके आने की आहट।। 2

तिरी उलफत ने रंग में ऐसा रंग डाला,
किसी सूरत अब बदलती नहीं आदत।। 3

कोई चष्मेबद्दूर, जो हमारी जानिब।
अंगुली उठाये उसकी आ जाए षामत।। 4

जिनको खुदा की खुदाई पे एतबार है,
उनकी जिंदगी में कभी न आये आफत।। 5

आपकी खिद्मत में चंद अषआर पेष है,
षुक्रिया कुबूल, तरही मुषयरे की दावत।। 6

जिन्दगी की आखिरी तमन्ना यही है ”चंदन”
फिर जन्म मिले, तो मुल्क हो मेरा भारत। 7
---------------------------------------------------

//जनाब राणा प्रताप सिंह जी//

बड़ी बेमुरव्वत बड़ी बेमुरव्वत
ये महबूब की जो बसी दिल मे सूरत

नज़ाकत नफ़ासत मुलामत से पालो
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत

संभाले संभलती नहीं मुस्कराहट
जो लेकर है आया कोई उसकी निस्बत

ये खादी के कुर्ते ये मखमल के गद्दे
इन्हें कोई समझा दे क्या है शहादत

करे जग को रोशन तले है अन्धेरा
दिये ने भी पायी है कैसी ये किस्मत

दबा लो दबाना है जब तक वो चुप है
वगरना किसी दिन करेगा बगावत

जहां से मिटा दूं निशाँ रंजो गम का
इलाही अता कर मुझे इतनी ताकत
--------------------------------------------

//जनाब राणा प्रताप सिंह एवं जनाब नवीन चतुर्वेदी जी //

बड़ी मस्त बादेबहारी मुहब्बत/ मेरे दोस्तो|
सभी के लिए लाभकारी मुहब्बत/ मेरे दोस्तो|
इसे दिल के मंदिर में स्थान दो तुम/ करो बन्दगी|
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत/ मेरे दोस्तो

चलाती नहीं होशियारी मुहब्बत / जताता चला चल|
सभी से करे यार यारी मुहब्बत / बताता चला चल|
न लेती किसी से ये कुछ भी कभी भी / फकत बख्शती है|
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत / लुटाता चला चल

हमारा वतन है हमारी मुहब्बत / सभी जान लें ये
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत / सभी जान लें ये
लुटा दूं वतन पे मैं सारी जवानी / यही आरजू है
नहीं देश पर अपने भारी मुहब्बत/सभी जान ले ये
-------------------------------------------------------

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Replies to This Discussion

नवीन भाई जी, आपका बहुत बहुत आभार ! आपकी आज्ञा का पालन करते हुए मैंने इस मुशायरे में अपने पसंदीदा 25 आशार को एक पोस्ट बना कर ओबीओ में डाल दिया है ! मैं इस बार एक पाठक के रूप में इस आयोजन का आनंद उठाना चाहता था इसलिए न ग़ज़ल लिखी और न ही यहाँ पोस्ट की !

अब आपका आदेश था, तो उसका पालन तो करना ही था नवीन भाई जी ! ये सभी शेअर वाकई मुशायरे की जान रहे !

नवीन जी
आपकी हर बात से सहमत हूँ
योगराज जी की ग़ज़ल होनी ही चाहिए थी
तरही मिसरे पर ना सही,, अब किसी अलग पोस्ट पर उनकी कोई रचना पढ़वा देने की ज़िम्मेदारी अब आपकी है,,, 

मज़े की बात ये है नवीन भाई, मैं और दानिश साहिब एक ही स्कूल और एक ही कॉलेज में पढ़े हुए हैं (थोडा आगे पीछे) लेकिन मुलाकात अब हो रही है तकरीबन ३ दशक के बाद !

आदरणीय योगराज जी
एक ही स्कूल / एक ही कालिज
की याद दिला कर आपने बचपन और जवानी के वो सुहाने दिन याद दिला दिए ...
आपसे बात करके

एक जाने-पहचाने-से "अपनेपन" का एहसास हुआ है
एहसानमंद  हूँ आपका ........

आपके इस ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत का दिल से मशकूर हूँ !

नवीन भाई आपका हर अंदाज़ हासिले ओ.बी.ओ. है  !!!

"हासिले ओ.बी.ओ" - वाह वाह,  क्या नई "टर्म" इजाद की है ! इसने ओबीओ का रूतबा और बुलंद कर दिया है !

नवीन भाई इस मुशायरे के आयोजन के लिये धन्यवाद और इसकी सफ़लता के

लिये आपको और आपके सारे सहयोगियों को तहे दिल मुबारकबाद।

आदरणीय योगराज जी  के द्वारा ग़ज़लियात पर किया गया विषलेषण और अंत

में बनाया गया समग्र रपट इस मुशायरे  को एक ऊचाई तक ले गये, उन्हें मेरा सलाम

उनके योगदान को मैं आयजकों  के योगदान से कम नहीं मानता उन्हे भी मेरी तरफ़

से मुशायरे की सफ़लता के लिये धन्यवाद और मुबारक बाद।

 

 

नवीन भाई जी, यह मेरी दिली तमन्ना थी कि इस दफा मुशायरे को एक प्रकार की कार्यशाला का रूप भी दिया जाये, मुझे ख़ुशी हुई जब सब साथियों ने खिले माथे इसे स्वीकार किया जिसने इस मुशायरे को एक नई बुलंदी प्रदान की !

आदरनीय डॉ संजय दानी जी, मुशायरे को बुलंदी तो आपकी आमद के साथ ही हासिल हो गई थी ! बाकी यह एक सामूहिक प्रयास था जो सभी शुरका की म्हणत सदका सफल रहा !

मुशायरे के समापन के बाद हम सब को बड़े ही सिद्दत से आपके सम्पादकीय रपट का इन्तजार रहता है, इस बार के मुशायरे मे आपने जिस प्रकार प्रत्येक प्रस्तुति पर समीक्षात्मक टिप्पणी दी यह काबिलेतारीफ है | इस बार के आयोजन मे सबसे अधिक कुछ रुचिकर लगा तो वो है सदस्यों का सकारात्मक सोच के साथ प्रत्येक आलोचनाओं को सर माथे लगाना, बड़ा ही सुखकर लगता है जब एक साथ नवोदित और स्थापित साहित्यकार एक मंच का प्रयोग प्रस्तुति के साथ सिखने सिखाने मे स्वेक्षा से और पूरी स्वतंत्रता से कर रहे थे | यह OBO की उपलब्धि है |

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