चूँ-चूँ करती चुहिया आई
शादी का न्यौता लाई
झिन-झिन करते झिंगुर आये
बजने लगी शहनाई
और चमकते जुगनुओं ने
जगमग महफ़िल सजाई
मेंढक आया कौवा आया
आई गिलहरी सजकर
चूहो की सारी बारात
आई बन-ठन कर
चूहा बैठा मण्डप में
चुहिया मन शरमाई
पंडित बन कछुए ने
शादी की रस्म कराई
झूम उठे सभी बाराती
दावत खूब उड़ाई
मंडप में जब चूहे ने
कसम सभी उठाई
चुहिया ने भी थामी
तब चूहे की कलाई
तभी एक कौने से
म्याऊँ की आवाज आई
डर के भागा जब चूहा
चुहिया ने आवाज लगाई
भाग कहाँ रहे हो तुम
मुझे बचाओ भाई...
सुनीता शानू
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sundar evam masoom rachna....lekin shanu ji ant me aapne bhai bahen bana diya dono ko :) hahahha
धन्यवाद दुष्यंत जी, बच्चों के लिये आज यहाँ यह पहली रचना है। आपको पसंद आई आभारी हूँ।
khubsurat rachana
शुक्रिया रवि जी।
सादर
अमदाबाद की चुहियाबेन ने राजकोट के चूहेभाई को आवाज़ लगायी थी क्या .. :-)))
आपके सद्-प्रयास को शुभकामनाएँ
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