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हम झंडा लेकर हाथों में
उत्साह भरे हो जाते हैं .. .
 
यह झंडा मानो जान भरा
यह झंडा जानो शान भरा
यह झंडा एक निशान सही
फहराता  है पर मान भरा
 
इस झंडे के लहराने से  
हम गर्व भरे हो जाते हैं.. .   

हम झंडा लेकर  हाथों में उत्साह भरे हो जाते हैं .. .
 
जोशीला श्वेत-हरा चमके
रंगों में केसरिया दमके 
मनमोहक तीनों रंग भले  
गति-चक्र कहे बढ़ना तनके 
 
ज्यों दिखे तिरंगा लहराता    
हम जोश भरे हो जाते हैं.. .  

हम झंडा लेकर  हाथों में उत्साह भरे हो जाते हैं .. .
 
चर्चा इसकी हम खास सुनें 
गौरव गाथा विश्वास सुनें 
कुर्बानी है जन लाखों की
हम ओज भरा इतिहास सुनें 
 
गाथा  उन्नत सुन झंडे की  
हम भाव भरे हो जाते हैं .. .    

हम झंडा लेकर  हाथों में उत्साह भरे हो जाते हैं .. .

 

--सौरभ

*****************

नोट : इस बाल-गीत का प्रसारण आकाशवाणी इलाहाबाद से हुआ है.

 

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Replies to This Discussion

वाह सौरभ जी, छंदों से अब बाल रचना भी :)) इस सुंदर झंडा-गान के लिये बधाई व गणतंत्र दिवस की आपको शुभकामनायें. 

''ज्यों दिखे तिरंगा लहराता    
हम जोश भरे हो जाते हैं

 हम झंडा लेकर  हाथों में

उत्साह भरे हो जाते हैं...''

और हम आपकी रचनायें पढ़कर झूम-झूम से जाते हैं :))))
  , 

शन्नोजी, आपका उत्साहवर्द्धन कितना आग्रही है कि क्या कुछ नहीं करवा देता. हम आपकी सदाशयता के कृतज्ञ हैं.

बाल-साहित्य में मैं कभी कायदे से काम नहीं कर पाया था. किन्तु हाल ही में इलाहाबाद के श्री जयकृष्णजी ’तुषार’ का आग्रहभरा सुझाव   --इस विधा में भी साहित्यकारों द्वारा गंभीरता से काम होना चाहिये--  ने मुझे बाल-साहित्य की ओर आकृष्ट किया.  मेरी प्रारम्भिक चारों रचनाओं का इलाहाबाद के आकाशवाणी से प्रसारण हुआ है.  उन्हीं रचनाओं में से ये झंडा-गीत भी है. 

इसी बाल-साहित्य ग्रुप में ’भला-भला सा घर अपना’ नामक एक और कविता है.  उस रचना पर आपकी सुधि-दृष्टि की अपेक्षा है.  वह रचना मुझे बहुत ही प्रिय है.

सौरभ जी, तो फिर कहाँ है वो रचना ''भला-भला सा घर अपना''...उससे जल्दी परिचय कराइये. और मैंने भी कुछ बाल-रचनायें लिख रखी हैं..दिखाते हुये शरम लगती है. उनमें से कुछ तो ककड़ी, मूली-गाजर तक पर भी हैं..हा हा.  लेकिन मेरी पहुँच आकाशवाणी तक नहीं है :(  लेकिन चलो कोई बात नहीं :))))

पुनः वही अनुभूति, २६ जन और १५ अग को अलसुबह चक सफ़ेद युनिफोर्म में स्कूल पहुंचना फिर झंडा वंदन थोड़े से सांस्कृतिक कार्यक्रम और अंत में मिलने वाला मीठा वाला लड्डू, सबकी स्मृतियाँ ताज़ा हो आई.. हमारे गाँव में अब हमारा अपना एक स्कूल है.. खुद की आपाधापी में कभी अवसर लगने पर अगर मैं २६ जन को वहां होता हूँ तो उन्हें देखकर मन हर्ष से झूम उठता है... प्रस्तुत रचना न केवल काव्य की कसौटियों पर खरी है बल्कि बच्चो में राष्ट्रप्रेम की भावना का संचार करने में भी सशक्त मालूम होती है... हार्दिक बधाई स्वीकारें सर. 

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