मेरा सपना //कुशवाहा //
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माँ मेरी बहुत है प्यारी
मुझको नित दुलराती है
कई घर काम वह् करती
तन काट मुझे पढवाती है
पापा नहीं दुनिया में अब
माँ ही मेरी दुनिया है
छोटी बहन एक है मेरी
नाम उसका मुनिया है
इससे मांग उससे मांग
किताबें खरीद लाती है
थक कर भले ही हो चूर चूर
लोरी मुझको सुनाती है
मुनिया मेरी देखा देखी
चील बिलौआ बनाती है
छीनू कलम मै उससे जब
मा मा कर वह चिल्लाती है
सपने उसके करूँगा पूरे
मैं दिया और वो बाती है
मेरी ही बहना नही वो
भारत माता की थाती है
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
२४-४-२०१३
मौलिक /अप्रकाशित
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आदरणीय प्रदीप जी इस सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
इस रचना में कहन का क्रम टूट गया है। रचना की शुरूआत आपने मां से की बीच में बहन का जिक्र आया और अगली पंक्ति में फिर मां का जिक्र शुरू हो गया। यहां पाठक को समझने में दिक्कत होती है कि जिक्र आप मां का कर रहे हैं कि बहन का।
बेहतर होता कि आप मां का जिक्र करते फिर बहन का।
इस सुन्दर प्रयास के लिए एक बार फिर से बधाई स्वीकारें।
सादर!
आदरणीय ब्रजेश जी
सादर
देखता हूँ.
ऐसे ही स्नेह बनाये रखिये
आदरणीय ब्रजेश जी
सादर
जो करना हो कर दीजिए
सस्नेह.
कुछ संशोधन का प्रयास किया है शायद आपको पसंद आए।
मेरी माँ बहुत है प्यारी
मुझको नित दुलराती है
पापा नहीं दुनिया में अब
माँ ही मेरी दुनिया है
घर घर जा काम वह् करती
काट के तन पढवाती है
इससे उससे मांग मांग
किताबें खरीद लाती है
भले हो थक कर चूर चूर
लोरी मुझको सुनाती है
छोटी बहन एक है मेरी
नाम उसका मुनिया है
मुनिया मेरी देखा देखी
चील बिलौआ बनाती है
छीनू कलम मै उससे जब
मा मा कर वह चिल्लाती है
सपने उसके करूँगा पूरे
मैं दिया तो वो बाती है
मेरी ही नही वो बहना
भारत माता की थाती है
आदरणीय प्रदीपभाईजी, आपकी संवेदनशीलता सदा से प्रभावित करती रही है. प्रस्तुत रचना शिल्प के लिहाज चाहे जैसी हो, रचना के भाव अत्यंत समृद्ध हैं. पाठक का हृदय नम हो जाता है. बहुत-बहु बधाई स्वीकार करें, आदरणीय.
भाई बृजेशजी ने बहुत कुछ सुझाव के तौर पर कहा है. उनका अनुसरण रचनाकर्म को गति देगा.
सादर
आदरणीय गुरुदेव
सादर अभिवादन
प्रयास किया है तकनिकी में लाने का
आपका आशीर्वाद फलेगा जरूर.
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