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मत रो अम्मा, अब जाने दो, जो होना, होने दो,
चूती टूटी झुग्गी अपनी, हमें यूँ नहाने दो।

गर्मी, वर्षा हो या सर्दी, करते प्रभु से अर्ज़ी,
संकट से बस लड़ना सीखो, प्रभु की तो ये मर्ज़ी।

पानी, मिट्टी से नहला दो, वर्षा जल भर-भर कर,
झुग्गी फिर से बनवा लेंगे, हम सब फिर मिलजुल कर।

अम्मा बापू को समझा दो, वे भी कर लें स्वागत,
वर्षा तो मुश्किल से होती, है ये जल की दावत।

छूत-अछूतों जैसा चक्कर, वर्षा-जल मत रखता,
ऊंच-नीच जैसा तो अन्तर, बादल नहीं परखता।

भीग अभी तू भी तो अम्मा, आयी वर्षा रानी,
कल की तो हम कल देखेंगे, प्रभु से ले लो पानी।

(सार-छंद पर आधारित)
[मौलिक व अप्रकाशित]

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Replies to This Discussion

सुंदर प्रयास आदरणीय शहजाद भाई | बधाई स्वीकारें |

सुंदर

रचना पर समय देकर अपनी राय से अवगत कराने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब आशीष कुमार त्रिवेदी जी और आदरणीया कल्पना भट्ट जी।

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