तीसरी गीत कृति 'किन्तु मन हारा नहीं ' के गीतकार श्याम श्रीवास्तव जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं श्याम जी के गीत समसामयिक सन्दर्भों में मानव जीवन से जुड़े सामाजिक संत्रास, विसंगतियों,को शब्दिता प्रदान करते हैं
अकिंचन हम कहाँ है
पास यादों के /खजाने हैं
हमारे पास जीने के अभी लाखों बहाने हैं
जैसे गीत संकलन के शीषक को चरितार्थ करते हैं. संग्रह की कई कवितायें आत्मपरक किस्सागोई की शैली में लिखी गयी हैं | ये अतीत गन्धी रचनाएँ पलायन नहीं अपितु जीवन के स्वस्थ स्वीकार की भाव भूमि से उपजती है ....
बे मौसम भी पंचवटी में गाना चलता है
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सावन खूब नहाना नांव बना के तैराना
खुशबू के पीछे पागल बन रातों दिन मंडराना,
साँसों संग अतीत का ताना बना चलता है
देह का पञ्चतत्व की पंचवटी के रूप में चित्रण उनकी कल्पना शक्ति का सशक्त निरूपण है
आज के तमाम राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक सन्दर्भों की इन गीतोँ में जगह जगह बुनावट हुयी है चारों ओर फैले छल -प्रपंच के वातावरण की खबर देते हुए एक गीत कहता है ------
कागज़ पर कुछ और /हकीकत केवल छल ही छल
दीखता नहीं दूर तक/नंगी आँखों कोई हल
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बहु चर्चित अपराध / दूसरे दिन रद्दी के डिब्बे
पीड़ित आँखों के हिस्से/आये काले धब्बे
जिरह पेशियों के बीच /मौत जाती आदमी निगल
जीवन मूल्यों के अधःपतन पर ----------
घाट- घाट पर सजी दुकाने /बैठे पण्डे/सच्चों के सर बजाते डंडे
सजी दुकाने क्षत्रप बांटे/दुराग्रही ताबीजें गंडे
संकलन का शीर्षक-गीत जहाँ एक ओर एक उम्रदराज़ अनुभवी व्यक्ति के जाते हुए दिनों की व्यथा कहता है ----
उड़ गए चिड़िया सिरौते/दिन बचे बेचारगी के
अब कहाँ /वे कहकहे /रंग इन्द्रधनुषी ज़िंदगी के ...
वहीं परिवेश के निर्वासन को झेलता हुआ अपनी जिजीविषा एवं रागात्मकता का सन्देश दे हार न स्वीकार करने का एलान भी क्ररता है
वक्त नाज़ुक है /पता है /किन्तु मन हारा नहीं है
ढाल देखे उस तरफ बह जाए /बह जाए जलधारा नहीं है
तन शिथिल पर मन समर्पित /टेक पर अक्षत हृदय से
कुल मिला कर संग्रह की विशेषता विपरीत परिस्थितियों को जीवन्तता के साथ जीने का सन्देश देती हुयी रचनाएँ हैं |एक संग्रहणीय नवगीत संकलन |
चलते चलते एक गीत और ..............
दर्द जीते हैं /मगर उल्लास को थामे हुए हैं
पतझरों के बीच भी /मधुमास को थामे हुए हैं
महफ़िलों से दोस्ती/घरद्वार से रूठे नहीं हैं
बढ़ रहे पर ज़िंदगी की /डोर से टूटे नहीं
टोपियाँ तो नफरतों के/ बीज बोतीं रोज़ पर
हम अभी भी प्यार के /अहसास को थामे हुए हैं
बादलो जैसे घिरे हैं /प्यास ने जब भी पुकारा
चुक गए लेकिन तृषा /की मांग को जी भर संवारा
आँधियों ने तो बहुत चाहा /उखड जाएँ मगर हम
ज़िंदगी के आतंरिक /विन्यास को थामे हुए हैं
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समय ने काटे हमारे पंख तन घायल किया पर
हम अभी भी आँख में आकाश को थामे हुए हैं
संकलन का नाम - किन्तु मन हारा नहीं (नवगीत संग्रह)
रचनाकार - श्याम श्रीवास्तव
मूल्य--१५०/=
प्रकाशक - उत्तरायण प्रकाशन
पता - M-168, आशियाना, लखनऊ
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