For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डॉ आनंद के मन का ठहराव , आत्मबल को दृढ़ रख संयम से जीना सिखाती है यह पुस्तक -- कान्ता रॉय

पुस्तक समीक्षा --कांता रॉय ,भोपाल

आनंद कही - अनकही

लेखक -डॉ अरविन्द जैन

प्रकाशक -- अक्षर विन्यास

एफ-6/3 , ऋषि नगर ,उज्जैन

प्रथम संस्करण 2015

मूल्य :450

ISBN 978-81-928087-4-1

 

डाॅ अरविन्द जैन जी   मध्यप्रदेश  शासन के आयुष-विभाग  में  वर्ष 1974 से  2011 तक  शासकीय  सेवा  में  कार्यरत  होने  के  उपरांत   सेवानिवृत एक  व्यवहारिक  धर्म  और  न्याय  के  लिए  सचेत  एक  बुद्दिजीवी  के  रूप  में  जाने  जाते  है  ।  पहली  बार  उनसे  एक  पुस्तक  के  विमोचन  के  अवसर  पर  मिली  थी  और  उनके  सहज  व्यक्तित्व  से  प्रभावित  हुए बिना  ना  रह  सकी , लेकिन  यह  कहने में मुझे जरा भी संकोच नहीं है कि वास्तव  में  उनको मैंने  इस  पुस्तक  से अर्थात  उपन्यास " आनंद  कही - अनकही " के द्वारा ही जान पायी हूँ  । जितने  सरल  वे  बाहर  से  है  उससे  कहीं  अधिक  सरल और सहज व्यक्तित्व का  हिस्सा उनके  अंतर्मन  में पोषित  है  यह मैंने उनकी  लेखनी से जाना  है ।

पेशे से चिकित्सक होने के कारण उन्होंने समाज की विसंगतियों को करीब से देखा  है और उन्हीं अनुभवों के  ताने  - बाने से रचा  यह उपन्यास है “ आनंद कही -अनकही ”।

डॉ  आनंद के  जरिए  इस  किताब में  वे  स्वयं को  ही पन्ने -दर -पन्ने खोलते  हुए  प्रतीत  होते  है । ऐसा लगता  है  कि वे वर्षों  से  मन  में  उमड़ने -घुमड़ने  वाली  बात  को इस  उपन्यास  में  चित्रित -वर्णित कर  दिया  है  । प्रायः सभी  पात्र और  स्थितियां ऐसी  है जो  पहचानी  जा  सकती  है ।  इस  पुस्तक  में जीवन के बड़े सवालों से मुठभेड़  दार्शनिक मुद्रा , जैन-धर्म से विश्लेषणात्मक हुई है । निहायत स्वाभाविक वस्तुपरक   और  मूलतः गैर-रोमांटिक दृष्टि  से जीवन  की  बहु-विधिता को  आपने  धैर्य  से  बुना  है

मध्यवर्गीय सरोकार से जुड़ा डॉ आनंद की कहानी कई मोड़ से गुजरकर निकलती है ।जैन - धर्म के प्रति संवेदना और उसका प्रभाव पंक्ति -दर पंक्ति - संवाहित होता हुआ दिखाई देता है । 

डाॅक्टर आनंद के जीवन में नौकरी ना मिलने के  हताशा से शुरू हुई यह जीवन - गाथा-सी नौकरी मिलने , नौकरी के दौरान नयी- नयी विषम परिस्थितियों का ताना - बाना लिए  हुए  है जो सेवानिवृत्ति के  बाद  की  दिन -चर्या पर जाकर खत्म हुआ है , अर्थात यह पुस्तक डाॅ आनंद के कर्मभूमि बनाम रणभूमि पर एक जीवन - संग्राम का दस्तावेज साबित होता है ।

 

डॉ आनंद का जीवन को परित्याग करने की मनोदशा से शुरू हुई यह कहानी पिता - पुत्र के बीच के सम्बंधों को भी व्याख्यादित करता है । प्रश्नोत्तर सा कुछ प्रसंग कहीं - कहीं धर्म -ग्रंथ को पढ़ने को आभासित करता है । जैन -साहित्य  को  उच्चतम  ग्रन्थ  बताते  हुए , प्रथमानुयोग ग्रन्थ से  जीवन -प्रेरणा लेकर उपन्यास  का एक मध्यमवर्गीय परिवार अपने बेटे से बहुत उम्मीदें लगाए रहता है और उसके  भटकाव  को  लेकर मन  से  कहीं  बहुत  डरा  होता  है   ,इस  मनोदशा  को  उभारते  हुए उपभोक्तावादी  संस्कृति  व्  मतलबपरस्ती सरोकार  का  चित्रण  है । .ईश्वर पर, धर्म पर  आस्था जीवन  के  विपरीत परिस्थिती  में  भी  मन  को  ठहराव  देती  है यही  पुस्तक का सार है ।  

 

काॅलेज में एडमिशन लेने की जद्दोजहद और दोस्तों के संग - साथ में सही - गलत सभी काम किये जो काॅलेज जीवन का मूल हिस्सा होता है । काॅलेज की पढ़ाई खत्म होने के बाद नौकरी ना मिलना और  रूपयों के इंतजाम में मानसिक द्वंद्व भी खूब उजागर हुआ है । पढ़ते हुए नौकरी की चिंता , नौकरी मिली तो पोस्टिंग कहाँ देंगे उसकी चिंता !

आपकी यहाँ पंक्तियाँ साकार हो उठी है कि " मनुष्य चिंताओं का चलता फिरता पुंज है । चिंतायें अनंतानंत है । "

ग्रामीण -क्षेत्र में पोस्टिंग ,  वहाँ की सामाजिक  विषमताओं से भरी जिंदगी और णमोकार मंत्र का जाप , यहाँ भी आपने धर्म का डगर थामे रखा ।

इस उपन्यास की अंतर्वस्तु की पड़ताल की जाये तो शासकीय काम-काज पर आम  जनता के  नज़र  पर  पड़ा झीना आवरण तार - तार हो सकता है ।

डाॅक्टरी जीवन की विषमताओं में केस खराब होने पर पुलिस का झंझट बड़ा चौंकाने वाले  तथ्यों को आपने यहाँ उकेरा है ।

अधिकारियों  की  मनमानियों का  कच्चा - चिटठा खोलती  दवाओं  की  खरीद  -फरोख्त का  हिसाब -किताब ,अधिकारियों  से  जबाब - तलब , पेपर ,अभिलेख और   रिकार्ड में  उलझता -सुलझता कई  प्रकरण के  साथ  घरेलु  जीवन का  द्वन्द उपन्यास  में  कथा -तत्व का  माध्यम  बनती  है । बम्हनी ,नरसिंहपुर ,सागर , अनंतपुरा ,चांदपुर ,सागर रीवा  संभाग ,जबलपुर के  आस-पास  घुमती यहीं  की  मिटटी में  बसी संस्कार  की  खुशबू को ये  कथा  सहज  जीवन  में  व्यख्यादित करती  है

 

राजनीति और प्रशासन व्यवस्था पर भी आपने खूब तीक्ष्णता से कलम चलाई है । डाॅक्टरी पेशा में गला काट प्रतिद्वंद्विता और साजिशों का सिलसिला डाॅ पराशर , कंपाउंडर गुरु , डॉ  वि पि  तिवारी , महिला चिकित्सक  के प्रसंग के माध्यम से खूब संदर्भित किया है ।

सफलता अपने पीछे  दुश्मनी और साजिशों को भी लेकर आती है ।  महिला- सहकर्मी का आरोप - प्रत्यारोपण का दौर , भले अपनी सच्चाई के कारण डाॅ आनंद बरी  हो  जाते  है  सभी  प्रकरण  से  लेकिन ये सब  बातें  मन  के  कहीं  अन्दर  तक  उनको  झकझोड़  जाता  है ।

जहाँ डाॅक्टर का पेशा समाज के सेवा-भावना से जुड़ा है वहाँ प्रतिद्वंदियों  , कार्यक्षेत्र  में  साजिशों  पत्रकारिता पर  सवाल  उठाते  हुए  अखबारों को हथियार बनाकर  पत्रकारिता के माध्यम से घात - प्रतिघात की दास्तान है यह । जीवन में वीभत्सता व कौतुकता के  मिश्रण के बिना बात नहीं बनती है ।

एक के बाद एक घटनाओं का चित्रण , कैसे सरकारी नौकरी में रूढ़िवादी परिवेश में एक  चिकित्सक  ने  विषम परिस्थितियों से सामना किया , किस तरह स्वंय को बचाये रखा ।

नौकरी  और  परिवार  का  संयोजन  करते  हुए  पत्नी का  बीमार  पड़ना   और नवजात शिशु के मृत्यु -प्रसंग मन को विहला गई एक दम से ।  इतनी वेदना थी इन पंक्तियों में कि कई घंटों तक इसका असर दिलो- दिमाग पर  कायम रहा ।

सीमित तनख्वाह में  पत्नी का असंतोषजनक  रवैया  आनंद  के  प्रति  उनके मन का विचलन और ऐसे वक्त में  डॉ  आनंद  के  मन  का  ठहराव  , आत्मबल को  दृढ़ रख  संयम से जीना सिखाती है यह पुस्तक ।

टिकट- कलेक्टर का प्रसंग भी बहुत प्रेरक है यहाँ । छोटे भाई  प्रमोद  का बिना टिकट सफर करने पर पैनल्टी लगना और डाॅ आनंद के नाम सुनते ही  टिकट कलेक्टर का सकारात्मक संवाद हृदय में अच्छाई के प्रति सम्बल देता है ।

रूपया कमाना आसान है पर सम्मान कमाना मुश्किल है  ।

भारतीय शाकाहार परिषद , सागर की स्थापना एक  और  बड़ी  जिम्मेदारी  और  ऐसे  में  पारिवारिक  असंतुलन जैसी  अपने  आस-पास  की  दैनिक जीवन  की  कहानी  हो  को  उकेरा  है .। पति -पत्नी  की  नोक-झोक  का भी  सुन्दर  उल्लेख  देखने  को  मिला  है  . कहीं -कहीं  मुहावरों  का  प्रयोग पुस्तक  में  भाषाई  कौशल  को  निखारता  है .

इस औपन्यासिक वृतान्त में कोमल मानवीय संवेदना एवं गरिमा का उद्दाम चरित्र की उपस्थिति है ।

दार्शनिक- भाव में धर्म के प्रति संवेदनाओं का निर्वाह करके इस किताब को उनकी शासकीय सेवा में  चिकित्सकीय जीवनकाल  में आये विडंबनाओं को , छुपे हुए सफेद पोश अधिकारियों में  नैतिक मुल्यों का हास को भी खूब पोल-खोल हुई है । पद का दुरूपयोग विस्मयकारी छुद्र -मानसिकता को उधेड़ने का सफल प्रयास हुआ है । पदाधिकारियों के क्रिया -कलापों का  विस्तारपूर्वक चित्रण देखने को मिला ।

यानि द्वंद्व तो है यहाँ पूरे किताब में लेकिन इस शैली में पढ़ी हुई यह मेरी पहली पुस्तक अर्थात उपन्यास  होगी ।  मैने अब  तक यात्रा - वृतान्त में ऐसी शैली  देखी थी । " डॉ आनंद " नाम का दोहराव कथा में कई बार  देखने  को  मिला  है ।पिता द्वारा बेटे को बार - बार  डाॅ आनंद कहते हुए संवादों में रोपित करना कई  जगह  नाटकीयता  का  आभास भी  दिला  जाता  है । डाॅ आनंद का  जीवन  प्रेम-प्रसंग से अछूता रहना खला है । जवानी के दिनों में खिलंदरी -स्वभाव  से अछूता यह पात्र अत्यंत  अनुशासित , बेहद शातिराना तरीके  से  अपना कुछ बताने से बचता ,निकलता-सा आभासित हुआ है  ।आत्मकथात्मकता के  निर्वाह में लेखक कहीं भी डॉ  आनंद  का कमजोर पक्ष नहीं उकेरता है जो इस पुस्तक के यथार्थता को संदिग्ध करता है । शैली में कथ्य को  उपदेशात्मक बनाते हुए  लेखन  के साथ  कई जगह कमजोर  होते भी दिखाई दिये है । यह लेखन एक ही नजरिए का पोषक है जो साहित्य में निषेध  है ,  यहाँ डॉ आनंद को अधिक  खोलने की जरूरत थी ।

उपन्यास का  अंत तक  के  सफ़र  में  पिता ,माता  और  पत्नी  का  बिछोह  से  गुजरते हुए  डॉ  आनंद  को  अकेलेपन में लेखन ,पठन-पाठन , आयुर्वेद के  लिए  अपना  अनुदान और  अपने  घर  में  संगृहीत पुस्तकों  का  खजाना  अर्थात एक  समृद्ध  पुस्तकालय  को निर्मित  कर  जीवन  की  नई दिशा  देने  की  कोशिश सराहनीय  है जहां  बौद्धिकता  अपने  चरमोत्कर्ष पर  पहुँच  जाती  है ।जीवन को  परखता , सैद्धान्तिकता को पकड़कर भारतीय  सास्कृति और  परम्पराओं का  अनुसरण करने  वाले  इस  उपन्यास  में आपत्तिकाल से  जूझता  , मैंने  जीवन  का एक  लंबा  संघर्ष पाया  है  जो  प्रेरणात्मक है ।मेरा  मानना  है  कि ये जीवन  की  कसौटी  हिंदी -साहित्य में अपनी  तरह  की   अलायदा पुस्तक है जो पाठकों की  कसौटी पर  भी खरी   उतरेगी ।



श्रीमती कान्ता राॅय

एफ -२, वी-५

विनायक होम्स

मयूर विहार

अशोका गार्डन  

भोपाल 462023

मो .9575465147

roy.kanta69@gmail.com

 

Views: 633

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service