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अनिहार बहुत बढ़ गईल, चला हो, दिया पूरा हो!  (अनिहार: अंधेरा)

बर्थ-डे मनय, स्कूल खरतिन बजट नाही,
महगाई कुल छोरि लियेय, कौड़ी बचत नाही.

काव कही हम रोज़गार के कहानिया.
हमरे इहा खुलल बाए, जाति के दुकानिया.

खाए बिना मरै जमूरा हो, चला कि दिया पूरा हो!

घोड़ावा कि नाई भागत, सगरा जमनवा,
ज्ञान-विज्ञान पढ़य, सगरा जमनवा,

हम घुरचालि रही, कुववा म अपने, (घुरचालि: एक जगह खड़े रहकर रगड़ना)
दुरगुड निहार रही, गौवा म अपने.

हमार प्रांत बन गईल घूरा हो, चला! अब तो दिया पूरा हो!!

कवन कम बाय, हियाँ के ज़मीनिया,
कहें छोड़ी छोड़ी भागी, आपन पुरनिया, (पुरनिया: बुजुर्ग)

यहीं जमेक चाही सबके पौवा,
'रालेगाओं' बन सकै हमारौ गौवा,

यहीं संग्राम करो पूरा हो, चिन्गी जलाओ, दिया पूरा हो!

किनकर्तव्या रहे चली ना कमवा,
घर मा बैठी कय,  बदले ना गउवा.

आवा, तनी तनी करा हो जतनवा,
कौनो फल मिलत नाहि, बिना सीचे तनवा.

मसीहा के राह देखब छोड़ा हो!
आपन खाब,अपुनै, करक परे पूरा हो, खुशी से दिया पूरा हो.

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Replies to This Discussion

राकेश जी , बस्ती के भोजपुरी तनिक अलग बुझात बा, बाकिर राउर गीत बड निक लागल, सामाजिक कुरीति के भी समावेश बा एह गीत में साथ में बेजोड़ सनेश भी , बहुत बहुत बधाई बा एह प्रस्तुति पर |

हाँ बागी भैया, हमारे यहाँ भोजपुरी औ अवधि के खिचड़ी हो गइल बा. बकिर समझ में आवत  हाउ तो बढ़िया बा.

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