तन मन धन के ,
दे द तू वतन के ,
चला ना नेतवा से पुछाई ,
कल तक भूखे मरत रहलिस ,
तोरा बाप इहा का आइल ,
वापस कर इ दौलत वतन के ,
ना त मुह पे कालिख पोताई ,
जाग जाग हिंद के लोगवा ,
माया कहा से माया पवाली ,
सब कोई जानत बा भारत के ,
पाहिले इ का रहली ,
तन मन धन के ,
दे द तू वतन के ,
चला ना नेतवा से पुछाई ,
इहे काहे केतना बारन ,
सब के खीच के लावल जाई ,
लुट लुट धन सब घर भरल बा /
तनिको सरम ना आइल
तन मन धन के ,
दे द तू वतन के ,
चला ना नेतवा से पुछाई ,
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आदरणीय रवि कुमार जी, राउर इ रचना करारा चोट बा, रोज नया नया घोटाला उजागर हो रहल बा, अब त जनता आजू ना त काल पूछबे करी, नीमन रचना बा, बधाई स्वीकारी |
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