For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शुक्ला जी गाँव के चौउराहा प पहुँच के, एने-ओने ताके लगले ! जईसे कुछ खोजत होखस ! फेर जाके बरगद के पेड़ तर बईठल एगो आदमी से पूछने, “ई हुशियार पुर ह न ?”

“हूँ, का भईल?” ऊ आदमी कहलें !

“अरे, हरिहर तिवारी जी की इहाँ जाएके बा ! घरवा नईखी जानत !” शुक्ला जी कहलें !

“तिवारी भाई किहाँ, उनकर रिश्तेदार हईं का ?”

“नाही, बाकिर सब ठीक रहल त रिश्तेदार बन जाईब, ओही खातिर आईल बानी !”

“अच्छा, ऊ कईसे?”

“केहू से सुनि के उनकी बड़का लईका खातिर आईल बानी ! सुननी बड़ी होनहार लईका ह, आ परिवारो नीक बा !”

“अच्छा, शादी-बियाह के फेर में” ऊ आदमी तनि गंभीर होके कहलें, “नाही, बढिए बा ! तिवारी भाई, अपने देहीं ठीक आदमी हंवे ! आ लईकओ....ठीके ह, बस तनि...?” ई कहिके ऊ आदमी चुपा गईलें !

“बस तनि का? कौनो बाति बा ?” शुक्ला जी चौक के पूछलें !

“नाही, कुछ खास ना ! सब ठीक बा !”

“नाही, कौनो त बाति बा, बताईं ! हमरी लईकी के जिनगी के सवाल बा !”

“कहल त ना चाहत रहनी हं, बाकिर सुनी, तिवारी भाई त ठीक आदमी हंवे, बाकिर ऊ लईका एक नम्बर के पियक्कड़ ह ! झगड़ा-लड़ाई ओकरा खातिर आम बा !”

“का कहतानी, सही में ?” शुक्ला जी एकदम बऊवा गईने !

“हम काहे खातिर झूठ बोलब, रऊरा जाईं, खुदे देखब !”

“ना, अब ना जाएब, एकदम ना जाएब ! राऊर धन्यवाद भाई !” कहिके शुक्ला जी वापस चल दिहलें !

अब ऊ आदमी के बगल में बईठल नन्हका कहलस, “का काका, पियक्कड़ त छोटका ह न ?”

“बाकिर ई आईल त बड़का खातिर रहने ह न !” कहिके ऊ आदमी मुस्काए लगले !

-पियुष द्विवेदी ‘भारत’  

Views: 1152

Replies to This Discussion

पियुष भाई भोजपुरी लघु कथा पर राउर परयास निकहा पसन आईल , कहानी के प्लाट बहुते सुनर बनल बा, अंतिम में जाके कथा आपन सही निर्णय पर न्याय करत प्रतीत नईखे हो पावत , दुगो बात कहल चाहत बानी ...
1- बियाह शादी के मामला में सामान्यतया एक से अधिक आदमी जाला ---- एह बात के उल्लेख करती त नीमन रहित, वईसे ऐसे बहुत अंतर नईखे पड़त ।
2- कथा के अंत में बियाह काटे वाला के मनसा के पता नईखे लागत, ---- एह बात के ध्यान रखल बहुते जरुरी बा ।

आदरणीय गणेश जी, कथा भटकल बा, ई जानि के तनि खेद जरूर भईल ! खैर, परयास चलता !

1- बियाह शादी के मामला में सामान्यतया एक से अधिक आदमी जाला ---- एह बात के उल्लेख करती त नीमन रहित, वईसे ऐसे बहुत अंतर नईखे पड़त ।
2- कथा के अंत में बियाह काटे वाला के मनसा के पता नईखे लागत, ---- एह बात के ध्यान रखल बहुते जरुरी बा ।


हम दु आदमी के उल्लेख करेवाला रहनी, बाकिर फेर ई कथ्य के हिसाबे ठीक ना  बईठल त हटा दिहली ! आ ऐसे कौनो बहुत बड़हन अंतर नईखे पड़त ! आ राऊर दूसर बाति कि कथा के अंत में बियाह काटे वाला के मनसा के पता लागत - त एकर हम अपनी ओर से प्रयास कईले बानी, बाकिर हो सकेला कि मनसा स्पष्ट ना हो पावत होखो ! अंत के दुगो वाक्य देखीं -

अब ऊ आदमी के बगल में बईठल नन्हका कहलस, “का काका, पियक्कड़ त छोटका ह न ?”

“बाकिर ई आईल त बड़का खातिर रहने ह न !” कहिके ऊ आदमी मुस्काए लगले !

एह संवाद-वाक्यन से हमरा आशा रहे कि ऊ आदमी के मनसा स्पष्ट हो जाई ! पियक्कड़ छोटका बा, बाकिर बियाह काटे खातिर झुट्ठे बड़का के पियक्कड़ बतावल गईल, ई उद्देश्य एहिजा स्पष्ट करे के ही हमार उद्देश्य रहे ! एकबार फेर तनि गौर करीं ! सादर !

पियूष भाई हम कुछ कहल चाहत बानी आ रउआ कुछ समझत बानी .....हम कहनी हा कि...........

//कथा के अंत में बियाह काटे वाला के मनसा के पता नईखे लागत, ---- एह बात के ध्यान रखल बहुते जरुरी बा//

मतलब इ बा कि उ आदमी के कुछो खुनस रहल होई तब नु बियाह कटले होई, उ खुनस के पता नईखे चलत, हर करम के पाछु कारण होखे के चाही |

अब शायद हमार बात स्पष्ट हो गईल होई |

आदरणीय गणेश जी, आपके बात स्पष्ट हो गईल, दम बा ! जल्द-ही सुधार करतानी ! बाकिर, एगो बाति अऊर कहब कि कुछ अईसन भी 'बियाह कटवा' होखेल  सन, जौन बिना कौनो खुन्नस के, बस एहिंगा बियाह काटेल सन, शायद ओकनी के एहमे मज़ा आवेला ! हम ओही सोच प ई कथा लिखले बानी !  फेर भी, राऊर सुझाव प सुधार के कोशिश करब ! सादर !

बियाहकटवा के होखल भा लउकल अपना गाँव-जवारन में अब कवनो नया बात नइखे. एह लोगन के मनोदशा ओह ओदल जरत लकड़ी अस होला जवन निकहा जरि के उपकारी आगि त दे ना पावेले, हँ, धुआँत बगूला से घर-आँगन के लोगन के आँखी के लोर के कारन जरूरे हो जाले. एह राक्षसी आचरण में कवन आनन्द बा, आजु ले ई ना बुझाइल. खैर, ई त बाति भइल बियाहकटवन के. 

राउर कहानी प हम ईहे कहबि जे जवन टटका ढंग से ई सुरु भइल, अंत ले आवत ना आवत जइसे अपनहीं से बुला उबिया गइल का !  ना कवनो इसारा क सकलस, ना ओह मोड़ से आगा के राह बता पवलस. खलसा एगो बतकूचन के साक्षी बनि के रहि गइल. विश्वास बा, आगा से कहानी (भले लघुकथा काहें ना) के उद्येश्य अपना कवनो ना कवनो रूप में झलकत लउकी. खैर, राउर एह प्रयास प बधाई.. .

आदरणीय सौरभ जी, कथा आपन उद्देश्य स्पष्ट करे में असफल बा, ई जानि के खेद भईल, बाकिर परयास बा, सुधार होई !

अब ऊ आदमी के बगल में बईठल नन्हका कहलस, “का काका, पियक्कड़ त छोटका ह न ?”

“बाकिर ई आईल त बड़का खातिर रहने ह न !” कहिके ऊ आदमी मुस्काए लगले !

एह संवाद-वाक्यन से हमरा आशा रहे कि ऊ आदमी के मनसा स्पष्ट हो जाई ! पियक्कड़ छोटका बा, बाकिर बियाह काटे खातिर झुट्ठे बड़का के पियक्कड़ बतावल गईल, ई उद्देश्य एहिजा स्पष्ट करे के ही हमार उद्देश्य रहे ! एकबार फेर तनि गौर करीं ! सादर !

अपना प्रति-उत्तर में जौन तूं इसारा क रहल बाड़ऽ, भाई, ऊ हमरो लउकल रहे. एकरा बादो हम कुछ कहि गइनीं, त हमरा ईहे बुझाइल जे ओकर माने-मतलब प एगो रचनाकार के तौर प तहार ध्यान परी. भाईजी, रउआ अपनहीं खुस बानीं त हमनी अस के कुछऊ कहल अनेरिये बा. राउर खुसी में हमरो खुसी.. .

शुभ-शुभ

आदरणीय सौरभ जी, बात खुस नाखुस के नईखे, हमरा खेद बा, कि ई कथा भटकल बा ! बाकिर, हम आपन पक्ष रखनी, आ रऊरा आपन ! आ अंत में, कौनो रचना के निमन-बाऊर के निर्णय, रचनाकार से बढियां पाठक करेलन ! राऊर  सादर आभार कि आपन बहुमूल्य विचार रखनी !

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
2 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आ. आज़ी तमाम भाई,अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.जैसे  इल्म का अब हाल ये है…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आ. सुरेन्द्र भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है बोझ भारी में वाक्य रचना बेढ़ब है ..ऐसे प्रयोग से…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेंदर भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई आपको , गुनी जन की बातों का ख्याल कीजियेगा "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय आजी भाई , ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है , दिली बधाई स्वीकार करें "
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service