बबुआ बम्बई में बंगला बनवले बा,
बाबू माई के अपना बइलवले बा ।
टिप टाप बनके रहे दुनों रे परानी,
नया युग आइल मरल अखियां के पानी,
बबुआ दुधवो में दागी अब लगवले बा ।
बाबू माई के अपना बइलवले बा ।
सोरि आपन कटि गईल, भूलल मरियादा,
चार पोथी पढ़ क बूझे अकलमंद जियादा,
बबुआ गेट प नाव माई क लिखवले बा,
बाबू माई के अपना बइलवले बा |
भूल गईल गाँव, बिसर गईल बोली,
देवाली, दसहरा, छठ अउरी होली,
बबुआ दारु संगे बइठकी लगवले बा,
बाबू माई के अपना बइलवले बा ।
जोरु उनुकर पहिरे जाने कइसन कपड़ा,
ना जाने साड़ी कुरती चुनरी भा घघरा,
बबुआ माथे प मेहर बइठवले बा,
बाबू माई के अपना बइलवले बा ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
बइलाना = भगाना, सोरि=जड़, मरियादा=मर्यादा, मेहर=पत्नी
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भोजपुरी का ज्ञान न होने पर भी गीत अपनी भावनाए व्यक्त करने में पूर्ण सक्षम है
हम किस तरह से नये रंग ढंग में ढल कर कैसे मूल को त्याग जाते है
आदरणीया गीतिका वेदिका जी, भोजपुरी भाषी न होते हुए भी जिस तरह आपने रचना को पढ़ी और समझी है , मैं सराहना करता हूँ , आपके पाठकधर्मिता को नमन, उत्साहवर्धन हेतु आभार व्यक्त करता हूँ ।
आभार आदरणीय जीतेन्द्र पस्तारिया जी .
बहुत सुन्दर जी , एक दम सही , झकास |
आभार जी, इ रेडीमेड टाइप टिप्पणी प मन झुझुआ गईल :-)
का बात का बात का बात बड़का भईया हमका तो बहुतय मजा आई गवा, अइसन बेटवा होई तो अँखियाँ म पानी काहे न आई, बहुतय मजा आइल गवा जे बात, हार्दिक बधाई स्वीकारें बड़का भईया..
आभार अनुज .
बबुआ गेट प नाव माई क लिखवले बा,
आदरणीय बाग़ी जी
सादर
वर्तमान में जो घट रहा है को चित्रित करती रचना .
बधाई
शब्द अर्थ देने से पढ़ने में सरलता हुई, सोरि को सर समझ बैठा था .
आशीर्वाद हेतु आभार आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, रचना समझने में सुविधा हो इसलिये कुछ ठेठ भोजपुरी शब्दों का अर्थ दे दिया है ।
बहुत ही सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई......................................."
धन्यवाद भाई जी ।
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