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" चंदवा डांसर बन गइल "(भोजपुरी कहानी)                            - बृज भूषण चौबे

" जब तक पूरा मांग  के पइसा  ना मिली इ बियाह ना होई "  मडवा मे   लइका  के बाप के बात सुन के पतरू के मेहरारू के मुह सुखा गइल | अगर आज उ रहितन त इ बात सुने के ना मिलित  | पतरू गाँव के बनिया रहलन, एक हाली टेक्टर पर ओभर लोड कके धान गोला पर ले जात रहलन ,ओही घरी टाली उलट गइला से काफी घाव लागी गइल रहे , बहुते  दावा -बीरो भईल पइसा  फुकाइल तबो ना बच्लन ,आ अपना मेहरारू के ऊपर तिन गो लइकी एगो लइका  के छोड़ के इ दुनिया से हरदम खातिर दूर हो गइलन | समय बितल लइका -लइकी सेयान भइली सन लइका  बड रहे केहुतड़े  ओकर बियाह भइल , बाकि रहनी चाल ओकर खराब  धरा गइल ,उ आपन जिमेवारी ना समझलस आ बहुत बड नसेडी हो गइल ,घर मे  हरदम कलह मचवले रह्त रहे  | तिन गो बहिन रुपवा ,रनिया आ चंदवा जवना मे चंदवा त अबे  मिडिल स्कूल मे पढत  रहे बाकि रुपवा रनिया जरुरत  से ज्यादा सेयान हो गइल रहलिसन , ओकर चिंता ओकरा ना रहे | पतरू के मेहरारू कइसहू आपन बेटिन के लेके मजदूरी कके घर के खर्च चलावे | हरदम लईकिन  के बियाह  के चिंता लागल रह्त रहे ,उनका पता रहे सेयान लइकी  के ऊपर आदमी के कइसन नजर हो जाला ,गाँव मे तरह -तरह के बात होता | बेटा अइसन नालायक ओकरा इ सब के तनिको  चिन्ते नइखे  ,खाली  मेहरारू के बस मे रहता आ शराब पीके गिरल रहता | तीनो लइकीन  के रूप मे कवनो कमी ना रहे ,गरीबी मे रहते हूए भी चेहरा  के पानी के निखार मे तनिको गिरावट ना रहे ,जेने चलसनकेहू के भी एक नजर  घुमा के ताके पर मजबूर कद्सन  | इहे कारन रहे  कि हरदम ओहनिपर आदमी के नजर तिरछा रह्त रहे | गाँव के कई आदमी कई -कई बार गलत हरकत करके कोशिस भी कइले  रहे ,आवत जात राही मे केहू देख के दुबात बोल दे, ' इन्शान के इ बहुत बड खूबी ह केहू कमजोर के देख के ओकरा देह मे अउरी बल फाटेलागेला ' |  पतरू बो दुःख -सुख काट  एने- ओने ले कुछ चंदा मांगे के बडकी लइकी  रुपवा के बियाह ठीक कइली बाकि लाख कोशिश कइला  के बाद भी पूरा दहेज़ के पइसा ना जुटा पइली ,...लइका के बाप बिच माड़ो मे खड़ा होके हाला करे लागल "अगर तोहरा औकात ना रहे  त काहें बियाह ठीक कइलू," |अईसे   बोले जइसे  कवनो बहुत बड़का सेठ महजान ह ,खैर इ ओकरो दोष ना रहे इ हमनी के समाज के रित हो गइल ब़ा कि  तनिको अपना ले झुकल आदमी के पावत ओकरा पर अइसन चढ़ के दबा द कि उ उठ ना पावस आ चारो खाने चितान हो जास | पतरू बो कतनो मनवनी कइली बाकि ,दहेज़ ले लोभ मे डुबल उलोभी बात ना मन्लस " लइकवा कवनो टूअर टापर ना ह एकरा के पाले पोसे मे रूपया खर्चा कईले  बानी रुपया इकिड़ा ना ,चल हो इ बियाह ना होई "| बारात लौट  गइल, माड़ो सुन होगाइल, रोयन पीटन परी गइल  ,लइकी रुपवा इ सही ना पवलस आ फशरी लगा के आपन इहलीला समाप्त  कईलेहलस | देखे वाला देखते रहि गइल |
                          पतरू बो इ बिपत ना सहि पवली आ खटिया ध लेहली ,दुनो लइकी रनिया आ  चंदवा कतनो सेवा कईलिसन बाकि ,जब उ खाटी छोडली तब तक इ दुनिया भी छोड़ चुकल रहली | माई के मरला के बाद लइका पतोह के  कवनो  खास असर  ना रहे ,बाकिर रनिया चंदवा टूट गइली सन ,घर मे भौजाई आभाई के खोभसन सुनी के ओहनी के जियल अउरी मोहाल हो गइल  रहे | चंदवा पढाई छोड़ के काम करे लागल ,रनिया के बियाह होखे के  कवनो ठेकान ना रहे , भाई के कवनो मतलबे ना भौजाई  के ताना सुनत -सुनत कान पाकी गइल रहे | कवनो चिज के एगो सीमा होला ,समय होला | आदमी जिनिगी  खाली जिए खातिर ना जिएला ओकर कुछ मन मे इक्षा होला, ख्वाहिश  होला, सपना होला रनियो के मन मे कुछ अइसने सपना रहे जियेवाला उमिर बितवला से क़ा फायदा,जब उ उमिर के कवनो मायने ना रहे  | अगर कवनो  समाज के तंत्र कमजोर ब़ा त उ अपना अन्दर केहू के बांध के नइखे राख सकत ,एकरे नतीजा भइल रनिया एकदिन गवही  के एगो लइका के साथ मे भाग गइल | भाई के कपार के एगो चिंता ओराइल ,भौजाई के गाँव भर मे लईकिन  के रहन  चाल के सिकायत करके बहुत बड हथियार मिलल |
                       समय बीतल रनिया के कवनो पता ना रहे ,चंदवा केहुतड़े  जिनिगी बितावत रहे बाकिर सायद ओकर इ पता ना रहे उ सोलहवा बसंत पार क चुकलबिया, धीरे -धीरे गावं -घर मे ओकर जवानी के चरचा शुरू हो गइल ब़ा " इहो उहे न होइहन केहुके लेके भगीहन "लोग  टाही जोहता कब मछरी जाल मे फंशी |गाँव के बड घर के  जवान  लइकन चंदवा के भाई प़र खास ध्यान देत बाड़सन् सबका पता ब़ा ओकारा खाली शराब से मतलब रहेला | चिरई के पकडे खातिर  लोग दाना डाले के कोशिस करे, बाकिर चंदवा अपना नियत इमान के पक्का लइकी रहे केहुके झांसा  मे ना आवे ,उ जानत रहे एगो लइकी  के सबसे बड धन ओकर इज्जत होला ,उगरिब बिया बाकिर समय से लड़ी ,आ जरुर एकदिन अइसन आई जब लोग इजत दिहन ,बाकि उ ओकर सोच रहे ,ओकरा बारे मे लोग क़ा सोचता ओकरा पता ना रहे |ओकरा पता ना रहे की अईसे  होई , जब एक दिन  ' हरिबंश पाड़े ' के लइका बधारी मे ओकरा इउज्ज्त प़र हमला बोल देहलस,बाकि कइसहू भागल  ,सकुता गइल; घबरा गइल  | केकरा से क़ा कहों, केहुसे कहला प़र लोग ओकरे दोष  दिहन " जवानी से मातल बिया मार करवाई " केनियो असरा ना देख के थाना  प़र गइल, पुलिश थाना काहें खातिर होला केहू के  रक्षे  करेखातिर न जरुर ओइजा मदद मिली |  गइल ,बाकि काहेंके दरोगा जी चंदवा प़र ऊपर निचे तक आंख गडा के मोछ प़र हाँथ फेरे लगलन " तोरे बहिन न कुछ दिन पहिले एगो के लेके भागल बिया ,तोहनी के बटले बडिसन अइसन केहू तोहनी के इज्जत क़ा लुटी तोहनी के दुसरे के इज्जत लुट लेबी सन , पाड़े  जी के हम जनतानी  उनकर घर अइसन ना ह  तुही ओ लइका  के फसवले होखबी आ पइसा ऐंठे के चकर मे लागल होखबी , अरे पैसे कमाए के ब़ा त बोल हम बानी न काहे परेसान बाड़ी   .... " दरोगा जी के बात सुन के चंदाव समझ  गइल की एइजा क़ा होखेवाला ब़ा,कईसहु  भागल  | घरे  आइल त जमवड़ा  लागल रहे " करे मोए गाँव के लइकन संगे तू  मुह करिया करत फिरताडी ,झूठ इल्जाम लगावे के भइल ह त हमरे लइका मिलल ह थाना  मे गइल रली ह ,गाँव के बदनाम करे प़र लागल बाड़ी ,एगो त एगो के लेके भाग्बे कईलस  तुहू केहू के लेके भाग्बी ,तोहनी  के पीछे गाँव के लइका बर्बाद हो ताड़सन "हरिबश पाड़े भरल गाँव के आदमी के बिच मे चंदवा के गारी देके इज्जत के धजिया उडावत रहलन ,बाकि ओइजा केहू बोलेवाला ना रहे ,बल्कि सब ह मे ह मिलावे |चंदवा  के भाई पिय्कड़ गारी के खिश मे आके चंदवे के  मारेलाग्ल | बेबश बेशहारी चंदवा बेचारी दया के भीख मांगे लागल "हाँथ जोड़तनी  पाव परतानी हमार कवनो गलती नइखे हम केहू के नईखी बर्बाद करत बल्कि गाँव के आदमी हमरे इज्जत के खेले के कोशिश करता, " बाकि ना भरल  सभा मे द्रोपती के चिर खिचाला त भाई बन के कृष्ण जी आवेलन बाकि एइजा त भाइए भरल सभामे इज्जत उतारे प़र लागल ब़ा ,| नशा मे चंदवा के मारत- मारत बेदीन क देहलस  शारीर के कपडा तार- तार हो गइल , वाह ! कतना मजा आवेला जब केहू  दुसर बदनाम होला ,इ बात ओह घरी तमाश देख रहल लोग ही बता सकत ब़ा |  " भाग जो इ गाँव ले तू रहबी त जिए ना देम मुआ घालम, तोरा  चलते हमार जियल दुसवार भइल ब़ा , तू नारहबी  त हम सुख  से जियम भाग  जो, "  भाई के मुह ले इ बात सुन के चंदवा एगो छोट लइका  जइसन फुट के रोये लागल ,करुण विलाप करे लागल  ओइसही जइसे मेला मे भुला गइला  प़र कवनो बालक सबकर चेहरा देख के रोवेला | साँझ होगइल रहे किरिन ना डूबल रहे ,बाकि  चारो तरफ अन्हरिया घेर लेह्ल्स दसो दिशा  झन- झन करेलाग्ल ,गाँव के सिवान मे बिपति रोवेलगली चंदवा के रोआइ सबका देहि मे गड़े लागल ,साचो हे तरे केहू के बदनाम ना काइल जाला | चंदवा के भाई मुह लटका के बाती फेक के चल दिहलस आ चल दिहलन  गाँव आ समाज के  इज्जत के पहरुआ लोग अब केहू के मुह मे जबान  ना रहे बोले भर |
                      किरिन डूबी गइल अन्हार हो गइल , चंदवा ओइजे गिरल रोअत रहे  |अचानक मन मे आइल उठी के चल देहलस धीरे से लुकात गाँव के केहू देख ना पावल राती रहे , कुछ घरी  के बाद उ  शहर के स्टेसन प़र पहुच गइल |  गाँव मे सुबेरे हाला भइल चंदवा भाग गइल बाकि केहुके लेके ना अकेले "ठीक भइल रहित त गाँव के इज्जत माटी मे मिला दित अइसन लईकिन  के गाँव मे रहल दिहले ख़राब ब़ा " , " केनियो जास मरस- बिलास केहू के क़ा मतलब ", | भाइयो भौजाई अब सुख  से जिहन |  *     *  *
                    चंदवा स्टेसन पहुचाला के बाद ,नल से पानी पि के एगो सीमेंट के बेंच प़र बईठ गइल | लोग घुर- घुर के देखे लगलन | शारीर के कपड़ा कई जगह फाटला रहे ,केहू कहें पागल हिय केहू कहें जमाना बहुत  ख़राब ब़ा ना जाने कहाँ से आइल बिया |रात के बारह एक बजे लागल, ओही स्टेसन  पर पर बईठल रहलन  ' बिहारी लाला '  उमिर करीब पैतालीस पचास के आस पास रहे ,जवन कि एगो भसत नाच पाटी  के मालिक रहलन, उनकर कबे से नजर चंदवा  के चांदनी जइसन चमचमत चेहरा पर रहे ,अगर अइसन कवनो लइकी  उनका पाटी  मे आ जासन त फिर क़ा कहें के | स्टेसन के माहौल तनी जब सांत भइल त मन मे तनकी उमीद के किरन लेके चंदवा के पास  गइलन ,"कहाँ  घर ह बचिया  "| बात सुन के चंदवा उठ बईठल , माई के मरला के बाद पहिला बार ओके केहू बचिया कही के पुकरले रहे |बिहारी के चेहरा देखे लागल | " डेरा मत हमरा पता ब़ा तू कवनो मुशीबत मे बाडू , हम तोहार मदद करम ,बताव अपना बारे मे " | चंदवा भर आंखी लोर कके अपना आप बीती बतावे लागल ,चंदा नाव ह घर  माधोपुर  ह हमरा संगे हइहे- हइहे भइल ब़ा बात ,सुनी के बिहारी के मन भी दुखित भइल | " देख हमार नाव बिहारी ह ,हम एगो नाच पटी के मालिक हई , बाकिर हमार पाटी टूटे कगार पर बिया ,हम बहुत करजा मे बानी ,हमरा पाटी मे अइसन  डांसर नईखिसन  जवन जानता के दिल जित सक्सन ,तू मुशीबत मे बाडू हमरा तोहार मदद करे के चाही ,बाकिर हम तोहार मदद मांगत बानी ,तू हमार मदद क़र हम तोहरा के आपन पाटी के मालकिन बना  देम ," | "बाकिर .....",  "तू डेरा मत हम तोहरा संगे कवनो गलत बात नहोखे देम " |चंदवा  बिहारी के  बात समझ गइल रहे इ क़ा चाहताडन उनकर बाती मानला ओह घरी ओकारा सही बुझाइल " बाकि हम नाची गा  सकत कइसे बानी हमरा त इ सब ना आवेला " ," तु इ  सब हमरा पर छोड़ द  ." |
                  चंदवा त चाँद  नियन सुघर रहबे कइल , दू चार दस दिन के ट्रेनिग मे नाचे आ गावे मे भी अगाध हो गइल | बिहारी फेन से  नया सिरा से पाटी  खड़ा कइलन नाव धराइल  ' चंदा थिएटर कंपनी '  जेकर मालकिन चंदवा के बनवलन ,पाटी मे चंदवा के लेके चार गो लेडिस डांसर रहली बाकिर पाटी चंदवे पर टिकल रहे ,साटा लिखाये लागल ,हर महफ़िल मे चंदवा के रंग जमे लागल  लोग ओकर हुस्न  आ कला के दीवाना होगइल ,बात फैलल चर्चा होखे लागल ,चंदवा  के गाँवे भी लहर पहुचल क़ा त  " चंदवा डांसर बनी गइल " , |  "गाँव के इजत माटी मे मिला देहलस आदमी थुकिहल कि माधोपुर के लइकी बेश्या होली सन स्टेज पर नाचेवाली  नचनिया ' हू ' " , | सोचेवाला सोचता  ,बाकिर इ नइखे सोचत कि ओही नचनिया लइकी के एकदिन गाँव से बेदीन कके भगा दिहल रहे ,ओह्दीन गाँव के इज्जत कहाँ रहे ,क़ा  एगो आदमी के इज्जत से बड़ी  के गाँव के इज्जत होला ?
             चंदा रानी के नाच देखे खातिर  जवार जुटे लागल , मार हो जाय ,एगो गाना पर  तम्बू मे गोली चलेलागे  , एक -एक से बड लोग चाहे  सरपंच , मुखिया भा बिधायक सब ओकर रूप आ कला के दीवाना   होगइल  |  बिहारी  लाल  के ' चंदा थिएटर कंपनी ' असमान के बुलंदी छुए लागल , हर बड फक्सन मे चंदा रानी छावे लगली | ,बच्चा -बच्चा के जुबान पर चंदवा  के नाव बोलेलाग्ल , पुलिस थाना ,कचहरी हर जगह ओकर चरचा ब़ा ,बिध्यक जी चंदवा के प्रोग्राम खातिर स्पेसल सुरक्षा देले बाडन ,ओही पुलिस थाना से जहाँ एकदिन ओकरा इजत के रक्षा करे से इनकार क दिहल रहे ...चंदवा के गाँव के अब ओ गाँव के नाव  से ना बल्कि  ' चंदवा के गाँव 'से पहचानल जाला  बाकिर कबो चंदवा अपना गाँवे ना अवेले ओ गाव के लोग चाही के भी चंदवा से ना मिल पवेलन ,माधोपुर के लोग चंदवा के नाच देखे जालन बाकिर दूर से ही बैठ के देखेलन  ,केहू ओकरा से मिल नइखे पावत  जेकरा से मिले खातिर पूरा जवार बेचैन ब़ा |
                           .......आज चंदवा के बहुत बड बड लोग से पैठ होगाइल ब़ा बिधायक  जी से ओकर रिश्ता केहू से छिपल  नइखे बाकिर एगो सीमा मे ,केहुके मजाल नइखे कि केहू ओकारा इजत से खेले के कोशिस करे  , आज उ रानी बिया अपना मन के रानी , लोग ओकर अब इजत करेलन चाहे जवना नजर से करस नाचल गावल कवनो खराब  काम ना ह ,इ समाज के एगो अंग ह ,चंदवा  भी ओकर एगो हिस्सा बिया ....ओकारा अब दुनिया से कवनो मतलब नइखे  बल्कि दुनिया के ओकारा से मतलब ब़ा अब उ केहू केहे ना जले बल्कि लोग ओकरा केहे अवेलन  आज ओकारा पास का नइखे नाव ब़ा पहचान ब़ा रुपिया......सबसे बड इज्जत भी ब़ा एकरा से बड़ी के का चाहेला एगो आदमी  के जिंदगी बितावे खातिर .......|
                               *****************************************************
विचार ,शिकायत ,सुझाव के अवगत ब़ा ,धन्यवाद  |             -बृज       

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Replies to This Discussion

ब्रिज भाई, राउर लेखनी के बार बार परनाम बा, इ कहानी में समाज के दोहरा चरित्र उजागर कर देहले बानी, साथ में इहो बता दिहनी कि अगर महिला तबे ले अबला बिया जबले उ सहत बिया, जहिया सहल छोड़ दिही वोह दिन उ सबला बन जाई, 

बहुत खुबसूरत कहानी लागल, शिल्प भी बेजोड़ बा |

बहुत बहुत बधाई एह कृति पर |

kahani suru bhail ha ta thora niras rahal ha bakir jaise jaise aage badhat gail ha waise waise damdar hot gail ha baisay bahut badhia chunle bani jabardast hit.

 

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