सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर |
आभार आपका आदरणीय वर्मा जी।
मात्रिक ग़ज़ल कहे के कोरसिस बुझाता, आदरणीय प्रमोद जी, जेकरा अनुसार हर मिसरा में छौ गो गाफ़ के चाल बा. बाकिर रउआ एह मंच के परिपाटी के अनुसार अपना प्रस्तुति का सङे बहर के वजन जरूर दिहल करीं.
शुभकामना
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, बहर आ बहर के बजन का होला अउर किसे दिहल जाला सीखल चाहीला, सादर।
भाईजी, रउआ गाङाजी के घाट प ई जोहत लउक रहल बानीं जे पानी कहवाँ मीली !..
एह मंच प गजल के लगले आ ओकर अरूज़ सिखावे के एक-से एक लेख बाड़न सऽ. पढ़त जाईं आ सीखत जाईं. आ दोसर गजलकारन के हिन्दी गजलओ के देखत-पढ़त ढेर बूझे आ बुझाए के कारन बनीं. एही पाना के इस्क्रौलडाउन करत जाईं, आखिरी में गजल केकुछ हाइपरलिंक मिलिहें सऽ. ओह लिंकवन के खोलि के देखीं जे का लेखवा का कहत बाड़न सऽ
सादर
रउरे देखवल राहि पर चलि के गाङा जी के पानी पी के जेतना बुझाइल ह ओकरे सङे पहिलका "अकिल अझुराइल बा" मे फेलुन फेलुन फेलुन फे पर कढ़ले बानी । तनी देखिती -
आम असो गभुआइल बा गभुआइल - नव सृजन प्रक्रिया मे
खूब बउर भरुआइल बा भरुआइल -टसर के कपड़े की तरह ( रेशमी आभा मे )
काँच बने चटनी चटका
सतुअन थार सनाइल बा
मावस ना बगिया बिजुरी
सूरज उरज बराइल बा उरज - ऊर्जा
हाथ अ हाथिन सैकिलहा
देखि सभे अगराइल बा
जाति, जवार, धरम गेंड़ल गेंड़ल -घेरा बनाया हुआ
गाथ गुनल बिसराइल बा
" आम " कहाँ भजिहें भाँजी
अस अकिला अझुराइल बा अकिला -अकील बहादुर
-- - प्रमोद श्रीवास्तव
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