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दिन  भर महभारत  बांचेली !

हमरी  कपार   पर  नांचेली !

अपनी मांगन पर अड़ जाली !

जे मना करी हम लड़ जाली !

कहें हमसे कि जीन्स ले आव, हम नाही पहिनेलीं साड़ी !

नवहा  नवहा  हमरा  घर  में, मलिकाईन आईल बाड़ी !

 

घरवाके   होटल   जानेली !

हमराके   वेटर    मानेली !

पेप्सी  कोला  बीयर  पीएं !

पॉपकोर्न आ चिप्स प जीएं !

रोटी  तरकारी  रुचे  ना,  हमरासे मांगे बिरयानी !

नवहा नवहा हमरा घर में, मलिकाईन आईल बाड़ी !

 

पचहत्तर गो क्रीम  मंगावें !

सब पईसा में आगि लगावें !

हमरो के कुछ बाति  बतावें !

टेढ़ आँखि कइके  समझावें !

कहें हमके, “क्लीन हो जाओ, क्यों रखते ये घटिया दाढ़ी !”

नवहा  नवहा  हमरा  घर  में, मलिकाईन आईल  बाड़ी !

 

 

एकदिन काम से अइनी जब !

खूब  ऊ  सेवा  कईली  तब !

लगनी  सोचे  ई  का  होता !

कउवा  कईसे  बनल  तोता !

सोचत रहनी तवले कहली, “राजा, हमको चहिए गाड़ी !”

नवहा नवहा हमरा घर में,  मलिकाईन  आईल  बाड़ी !

 

नखरा कि उनकर एतना बा !

गीनि  ना  पाईं  केतना बा !

जेतने होखो  सब ठीक  बा !

जईसन होखो सब नीक  बा !

काहें कि हमरी मनवा में त, बस  ऊहे  समाईल बाड़ी !

नवहा नवहा हमरा घर में,  मलिकाईन  आईल  बाड़ी !

 

-पियुष द्विवेदी ‘भारत’

 

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Replies to This Discussion

आई हाई ...नवका ज़माना के नवकि कनिया के खूब बखान कईला भाई, मजा आ गईल, बवाल रचना बा, बोरा भर के बधाई स्वीकार करs पियूष भाई |

आदरणीय गणेश भईया.. रऊरो के बोरा भर के, कई कुंटल धन्यवाद...! कहीं-कहीं टंकड़ के गलती त नईखे न लागत ?

टंकण के त्रुटी नइखे जी, मस्त मस्त बा, बिलकुल नवकि मलकाईन लेखा :-))

तब त हड़ाह बा....चली फेर एक बेर अऊर धन्यवाद लीं !

आदरणीय भारत जी, सादर 

नीमन लागल. बधाई 

आदरणीय प्रदीप जी, रऊरा रचना नीक लागल, ई संतोष देता, धन्यवाद...!

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गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय आजी भाई उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
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