भजन
विशनु सी बंशी वाला, मुरली मनोहर लाला!
बंशी ने हरा मेरा मान, कान्ह मैं तेरा गुलाम।।
तान त्रिपुरारी सोहे, बम-बम-बम हर-हर बोले।
आये कैलास से भोला, विषयी विरत ज्ञान लेके।।
काम सर चलाने वाला, कामेषु को ऐसा जारा ।
आशुतोष का उसे प्राणदान, कान्ह मैं तेरा गुलाम।।1
लोभ-क्षोभ-मद-शोले, कदम्ब डाली पर डोले ।
बृम्हा सा शान धर के, गोपिन संग रास रच के।।
बसना हरण नन्दलाला, राधा सा नाम वाला ।
राधे ने हरा मेरा काम, कान्ह मैं तेरा गुलाम।।2
माया-मोह-क्रोध सारे, गोकुल ऐसे बल धारे ।
सखा-ग्वाल-बाल संग में, मथुरा के दंगल मारे।।
अर्जुन का सारथि कृष्णा, गीता का ज्ञान वाला ।
गीता ने हरा मेरा मान, कान्ह मैं तेरा गुलाम।।3
दहिया-माखन की चोरी, छोरिन की गगरी फोरी।
मैया को बूझन गोरी, ऊंखल उर जसुमति डोरी।।
मुख मा सृष्टि अस न्यारी, ऊंगली गोबर्धन धारी।
छोरे ने दिया सत्यम नाम, कान्ह मैं तेरा गुलाम।।4
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
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बहुत ही सुन्दर प्रयास है आपका!
आ0 बृजेश भाई जी, हार्दिक आभार। सादर,
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