तेरी आँखों मे वो नूर है साई
जब भी विकल हो शरण मे आई
तूने संभाला है मुझको मेरे साईं
गले से हर बार तूने लगाया है साईं
मेरे साईं ............
बहुत जख्म खाये जहां मे हमने
तुमने ही आके मेरी बिगड़ी बनाई
तेरी रहमत का जलवा है बिखरा
और तेरी कृपा का ही नूर है साईं
मेरे साई .......
मोह माया मे फंस कर भूले तुम्हें
फिर विकल होके तुमको पुकारा है साई
डगमगाती कश्ती न मिलता किनारा
नैया को पार तुमने लगाया है साईं
मेरे साईं .............
तेरी कृपा से दीप है जलते
सुबह ओ शाम सब तूने बनाई
बड़ी रौनके है इस जहान मे
तुम सा कोई रहबर नहीं मेरे साई
मेरे साईं ........................
तेरी कृपा से मेरी लेखनी है चलती
तेरी ही रहमत की है रौशनाई
मुझे शब्द रस और अलंकार दो
और लेखन का अद्भुत संसार दो .मेरे साई
मेरे साई ........ मेरे साईं ... .......
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