For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोष का दुरुपयोग
--------------
चाहे संपन्न देश हों या गरीब, जब ओलिंपिक्स या वर्ल्ड कप की बात आती है तो होस्ट देश में बड़े बड़े स्टेडियम और भव्य भवनों के आकर्षक निर्माण करने की होड़ लग जाती है और राज्य की अपार धनराशि व्यय की जाती है। वहीं दूसरी ओर देखा जाये तो उनके नागरिकों का जीवन बहुत ही निम्न स्तर का होता है, बच्चों सहित सभी को आवास, पानी , भोजन, चिकित्सा और वस्त्रों की कमी रहती है। यह लम्बे समय से बनी हुई समस्या है फिर भी आयोजक राष्ट्र को केवल दूसरों के सामने अपने को समृद्ध दिखाने की चाह में, गरीबी को छिपाते हुए, इतना तक कि कर्ज में डूबते हुए भी, बिलियनों डालर उन पर व्यय करना होते हैं जिन निर्माणों का भविष्य में कभी उपयोग नहीं होता। विश्लेषण करने पर इसके केवल दो ही कारण दिखाई देते हैं धन का दुरुपयोग और कराहती मानवता के प्रति हृदयहीनता। इसके प्रमाण ग्रीस 2004, चीन2008, कनाडा2010, लंदन2012 ओलिंपिक्स हैं जहाॅं अपने को केवल माडर्न और संपन्न दिखाने के लिये भूखे बिलखते लाखों लोगों को एक किनारे रख प्रचंड धनराशि का व्यय किया गया।


देखा गया है कि सरकारें जब थोड़ा सा धन एकत्रित कर लेती हैं तो उनके नेता अपने दिमाग को इसे खर्च करने के लिये लोगों को इसी प्रकार के सपनों में ले जाकर राज्य के धन का दुरुपयोग किये जाने को अच्छा सिद्ध करने में लग जाते हैं चाहे भले ही ग्रीस जैसे देशों को इस कार्य हेतु लिये गये कर्ज को चुकाने में आज तक पसीना बहाना पड़ रहा हो। इससे यही स्पष्ट होता है कि अधिक मात्रा में संचय किये गये भौतिक और मानसिक संसाधनों का इसी प्रकार दुरुपयोग होता है। इस प्रकार देश के कुछ लोग अपनी प्रतिष्ठा के प्रदर्शन करने के लिये अपने ही अन्य सभी नागरिकों को कष्ट सहने के लिये विवश कर देते हैं और यह कहते पाये जाते हैं कि वे सब स्वयं ही अपने दु,खों के लिये उत्तरदायी हैं।


यह ठीक है कि ओलिंपिक्स एक बड़ा मंच है जहाॅं प्रतिभाओं का प्रदर्शन होता है परंतु इस प्रकार से राज्य के धन का दुरुपयोग करना कहाॅं तक उचित है चाहे वे कामनवैल्थ गेम्स हों या वर्ल्ड कप या यूनीवर्सिटी टूर्नामेंट्स, सभी खेलों में नागरिकों से लिये गये कर के धन का ही दुरुपयोग किया जाता है। भूतकाल में इसी प्रकार मंदिरों और चर्चों के निर्माण पर भी भारी अपव्यय किया जाता रहा है। हमारे देश में अभिलेखीय प्रमाण हैं कि चार साल तक लिया गया कर केवल उड़ीसा के सूर्यमंदिर के निर्माण पर व्यय किया गया और उन चार वर्षों में कोई भी सामाजिक महत्व अर्थात् चिकित्सा , शिक्षा और जनकल्याण के अन्य कार्य किये ही नहीं गये। यूरोप में भी आज की स्थिति में दो प्रतिशत से अधिक नागरिक चर्च में नहीं जाते परंतु भूतकाल के निर्मित चर्च और उनसे जुड़ी भूमि बेकार पड़ी है। इस प्रकार सभी देशों में सामान्य जन कल्याण के बदले राज्य के धन का अनेक प्रकार से दुरुपयोग किये जाने के सैकड़ों उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हैं ।


कुछ लोग बकालत करते पाये जाते हैं कि ओलिंपिक्स से शाॅंति और मेलजोल को बढ़ावा मिलता है, परंतु देखिये 1936 में नाजी जर्मनी ने वर्लिन में ओलिंपिक का आयोजन किया परंतु उसके कुछ समय बाद ही वर्ल्ड वार सेकेंड शुरु हो गया, कोल्ड वार के समय भी यू एस और यूएसएसआर के बीच अनेक ओलिंपिक्स के आयोजन होते रहे परंतु कभी भी वे मिलिटरी या राजनैतिक तनाव से वे मुक्त नहीं रहे। मध्यपूर्व के देश भी दशकों तक ओलिंपिक्स में खेलते रहे परंतु फिर भी उनके देश स्थानीय और ग्लोबल वार में लगे रहे। इसी प्रकार भारत और पाकिस्तान भी ओलिंपिक्स और कामनवेल्थ खेलों में वर्षों भाग लेते रहे फिर भी वे एक दूसरे के प्रति दुश्मनी ही पाले रहे। इसलिये निष्कर्ष तो यही निकलता है कि ओलिंपिक्स से शाॅंति नहीं आ सकती जब तक कि शोषण की प्रवृत्ति को जड़ से समाप्त नहीं कर दिया जाता।


अब प्रश्न यह है कि इस समस्या का समाधान क्या है? इसके लिये विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे यूएनओ को हर बार मीटिग करने के लिये नये भवनों का निर्माण न कर उन्हीं पुराने भवनों का उपयोग करना चाहिये। इसके लिये पूरे विश्व में चार स्थान निर्धारित किये जा सकते हैं जहाॅं पर ओलिंपिक्स भी बदल बदल का होते रहें अतः हर स्थान पर 16 वर्ष में एक बार ही आयोजन होगा और इस बीच की अवधि में इनकी प्राथमिकता से देखरेख करते हुए एशियन गेम्स और अन्य प्रतियोगितायें भी वहाॅं आयोजित की जायें जिनका नियंत्रण अंतर्राट्रीय बोर्ड के द्वारा किया जाये। इससे प्राप्त होने वाली आय को सभी देशों में बाॅंट दिया जाये। इससे उन स्थानों और व्यवस्थाओं का सदुपयोग होता रहेगा और आय के साधन भी बने रहेंगे जबकि अभी वे गेम्स समाप्त होने के बाद देखरेख के अभाव में नष्ट ही होते जाते हैं।


आश्चर्य तो यह है कि हमारे गाॅंव और सामान्य जनता पूरे देश की रीढ़ हैं, इतना ही नहीं शहरों में भी समान्य जनता की बहुतायत है परंतु इनमें से अधिकांश को उनकी मूलभूत आवश्यकतायें जैसे भोजन, वस्त्र ,शिक्षा, चिकित्सा, आवास और जल आदि नहीं मिलते। मानव सभ्यता में हमेशा साधारण लोगों की संख्या अधिक होती है परंतु उन्हें मानव बनने के लिये समय ही नहीं मिल पाता। वे राष्ट्रधन के टुकड़ों पर ही जीते हैं पर फिर भी वे शेष समाज की सेवा करते हैं। वे अपना अधिकतम श्रम देते हैं और बदले में बदनामी पाते हैं, वे भूख से या उनकी प्रताड़ना से मरते हैं जिनकी वे सेवा करते हैं। वे जीवन की सभी सुविधाओं से बंचित रहते हेैं। वे अपने सिर पर लेम्प रखकर सब को उजाला देते हैं परंतु स्वयं अंधेरे में रहने को विवश होते हैं। इस प्रकार मानवमूल्यों को ह्रास करने का रोग समाज के ही अंगुलियों पर गिने जाने वाले धनी और सम्पन्न लोगों ने पाल रखा है।
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 385

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service