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हा हा हा..
जिल्ले इलाही, आप घोषित रूप से ’गुरुदेव’ हो चुके हैं .. ;-))
उसके बाद की पदोन्नति है ये .. हा हा हा..
आदरणीया, आप प्युरिफाइड या आरओ वाटर पीना तुरत बन्द कर दीजिये. तुरत मने तुरत, अभी के अभी.
सीधा बम्मा का पानी पीना शुरु कर दें. आप वाकई बहुत सुधार महसूस करेंगी.
(ये मेरी करबद्ध प्रार्थना है)
:-))
ये पोस्ट विधा सम्बन्धी है अतः हम इस पर अन्यथा बातचीत न करें.
सादर
ऑक्यूपेशनल हेज़र्ड सर जी .
//1- मुझे विषय और कथानक कैसे सूझा।//
भाई उस्मानी जी, मुझे आपका यह पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई, यह प्रश्न आपके अन्दर की सीखने की भूख को दर्शाता हैI कहा जाता है कि लघुकथा “साधारण” में से “असाधारण” को उभार लेने का नाम हैI इस बात को बहुत बारीकी से समझने की ज़रूरत हैI “असाधारण” तो रचना का निचोड़ हो गया, लेकिन वो निकला कहाँ से? “साधारण” सेI “साधारण” यानि कि हमारे आस पास घटित घटित होने वाली रोज़मर्रा की घटनाएँI अब रही बात कथानक सूझने की, तो इसके लिए आँख-कान हर वक़्त खुले रहने चाहियें और आपकी संवेदनाएं हर समय जागृत रहनी चाहिएँI कथानक खुद-ब-खुद मिलते रहेंगेI
एक बेहद मज़ेदार किस्सा सुनाता हूँ, तकरीबन 3 साल पहले मैं बेहद बीमार हो गया था, इतना ज्यादा कि मरते मरते बचाI शारीरिक कमजोरी (और अच्छी आर्थिक स्थिति) के कारण मैंने चार बार नौकरी से त्यागपत्र दिया, हालाकि वह स्वीकार नहीं हुआI लेकिन मैं नौकरी छोड़ने का पक्का इरादा कर चुका थाI बहरहाल एक शाम मेरे सिगरेट खत्म हो गए, मेरा छोटा बेटा राहुल जो उस समय बाज़ार गया हुआ था, मैंने उसको फोन किया कि मेरे लिए सिगरेट लेकर आनाI वह थोड़ी देर बाद आया, लेकिन सिर्फ 2 सिगरेट लेकरI उसने बताया कि खरीदारी करने के बाद उसके पास केवल 20 रुपये ही बचे थे इसलिए पूरा पेकेट नहीं ला सकाI बहरहाल, बात आई गई हो गईI लेकिन कुछ समय के बाद मेरे दिमाग में आया कि इसका पर्स तो हमेशा रुपयों से भरा रहता है तो ये सिर्फ दो सिगरेट लेकर क्यों आया? क्या इसने मुझसे झूठ कहा? झूठ कहा तो क्यों कहा? क्या ये केवल 2 सिगरेट इसलिए तो नहीं लाया कि मेरी सेहत अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं? लेकिन फिर मैंने सोचा अगर इसको मेरी सेहत की फिकर होती तो कल क्यों पूरा पैकट लाया था? यानि दिमाग में कई-कई प्रश्न उठने लगेI फिर अचानक एक बात और दिमाग में आई जो एक लघुकथा का कथानक बन गईI मैंने कल्पना की कि मैं रिटायर हो गया, प्राइवेट नौकरी थी सो पेंशन भी ना के बराबर हैI इसलिए मेरे बच्चे मेरे महंगे शौक पूरा करने में हिचकिचाते हैंI उसी कथानक को लेकर मैंने “श्रेय” नामक लघुकथा कही जोकि इसी मंच पर मौजूद हैI
ये तो हो गया कथानक ढूंढनाI विश्वास करें कि एक जागृत दिमाग वाले रचनाकार को कई दफा कथानक स्वयं ढूंढ लेता हैI भोपाल में मेरे साथ जो “लेट मेसेज डिलीवरी” का वाक़या हुआ था, वह याद है न? एक किस्सा और सुनाता हूँ, शायद यह बात और साफ़ हो जाएI एक आदमी को अफीम खाने की लत थीI एक दफा वह किसी दूसरे शहर गया, अब वहां उसके पास अफीम खत्म हो गईI बेगाना शहर, बगाने लोग पूछे भी तो किससे? बहुत परेशान हुआ बेचाराI आखिर में वह एक चौराहे पर पहुंचा और झूठ-मूठ पतंग उड़ाने का अभिनय करने लगाI थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति आया और उसकी काल्पनिक डोर के नीचे से झुक कर निकलाI तो उस अफीमी ने झट पहचान लिया और उस झुककर गुजरने वाले से पूछा “भाई माल है क्या?” तो उस सज्जन ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया “जितना मर्ज़ीI”
//2- कच्चा सांचा कितने समय में कैसे तैयार किया।//
यह बात हर रचनाकार के निजी कौशल पर निर्भर करती हैI बहुत दफा रेडीमेड मसाला मिल जाता है, जिसपर तुरंत कथा रची जा सकती है, लेकिन बहुत दफा काफी मशक्क़त के बाद भी सिर्फ सांचा ही तैयार होता हैI
//3- क्या? क्यों कहना है के जवाब के बाद कैसे कहना है के उत्तर में कैसे निर्णय लिया कि कच्चे सांचे को विवरणात्मक या संवाद या मिली-जुली शैली में पक्का रूप देना है?//
यह सबसे अहम सवाल हैI देखिए, हर थाने का एक एस.एच.ओ जैसा होता हैI मान लीजिए कि कोई अपराधी जिसकी बरसों से तलाश है, वह एक दिन अचानक थाने आकर आत्मसमर्पण कर देता हैI उस समय वह एस.एच.ओ क्या करेगा? सबसे पहले एफ.आई.आर ही लिखेगा न? लेकिन आत्मसमर्पण की बात एक अनाड़ी दारोगा तो लिख देगा, लेकिन एक तजुर्बेकार और अक़लमंद अफसर नहींI वह लिखेगा कि मुखबिरों से इस अपराधी की सूचना मिली, इसको पकड़ने के लिए शहर में फलाँ-फलाँ जगह नाके लगाये गए, अपराधी ने फरार होने की पूरी कोशिश की, पुलिस पार्टी पर हमला भी किया आदि आदिI बिलकुल उसी तरह एक लघुकथाकार भी अपनी कल्पनाशीलता का पुट देकर कुछ विवरण देता है, कुछ स्थितिओं का निर्माण करता है, कुछ आप कहता और कुछ पात्रों से कहलवाता हैI
//4- पक्की रचना लिखते लिखते ही पंचलाइन सूझ गई थी या पंचलाइन तय करके ही पक्की रचना लिखने बैठे?//
पंचलाइन जब भी पहले से ही निश्चित होगी तो लेखक उसको जस्टिफाई करने में रास्ते से भटक जाएगा और एकतरफा हो जायेगाI इससे रचना पूर्वधारणा से ग्रस्त हो सकती हैI
//5- यदि अंतिम पंक्ति लिखने पर भी कथा को पंचलाइन नहीं मिल पायी तो क्या किया? कितने समय बाद पंचलाइन कैसे सूझी? [सभी सवालों के जवाब वरिष्ठ सुधी लघुकथाकारों की उत्कृष्ट कृतियों के अध्ययन से ही व गुरूजन से चर्चा करके ही मिलेंगे, लेकिन हर रचना के साथ हर रचनाकार के अनुभव भिन्न हो सकते हैं]//
पंचलाइन बेसिकली है क्या? लघुकथा का निचोड़ ही है न? निचोड़ कैसे निकालना है यह बात तो अध्ययन और अभ्यास से ही आती है, इसका कोई शोर्टकट नहीं हैI लकिन पञ्च लघुकथा की जान भी है और सबसे बड़ी खूबी भी, इसके बगैर लघुकथा अधूरी और बेमानी हैI
6- पक्की रचना को फाइनल रूप कैसे दिया लघुकथा सम्मत शिल्प के साथ?
रचना को शिल्प-सम्मत बनाने के लिए सबसे ज़रूरी है शिल्प का ज्ञान होनाI लघुकथा कच्चे दूध से घी तैयार करने की कला हैI इसलिए एक कुशल लघुकथाकार केवल मक्खन निकाल कर ही संतुष्ट नहीं हो जाताI अत: उसको दूध से घी बनाने के सभी स्टेप मालूम होने ही चाहिएँI
हार्दिक आभार आ० सीमा सिंह जी I
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