अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली गीत क्रमांक - २
भगवती के गीत
अवलम्ब अहीं हे जगदम्बा, माँ, संतानक दुःख दूर करू |
बल, बुद्धि, विवेक, ज्ञान और धन सँ कोष हमर भरपूर करू ||
अहाँ माता छी, हम शिशु अबोध, नहीं कोप अहाँ के, सहि पायब |
जौं कष्ट सतओत मोन हमर, माँ, अहीं के गोहरायब ||
रक्षक बनि रक्षा करू हमर, नहिं ऐना कष्ट सँ चूर करू |
अवलम्ब अहीं हे जगदम्बा, माँ, संतानक दुःख दूर करू ||१ ||
बनि बेटी आँगन में खेलाउ, बनि पुत्र बनू कुल के गौरव |
जों हाथ अहाँ के माथ रहत, संसार व्यूह के हम तोड़व ||
माता बनि क हे जगजननी, जीवन में सौम्य - सुरूर भरू |
बल, बुद्धि, विवेक, ज्ञान और धन सँ कोष हमर भरपूर करू ||२ ||
कर्त्तव्य धर्म निर्वाह करी, बनि पुत्र अहाँ के चरण गही |
छाया में अहीं के जीवन - धन के भोगी, अहींक शरण रही ||
एहि तरहक सौम्य स्वभाव दिअ, अभिमान सँ ने मगरूर करू |
अवलम्ब अहीं हे जगदम्बा, माँ, संतानक दुःख दूर करू ||३ ||
संकट सँ हमर उबार करू, दुर्गा बनि हमरो दुर्ग बनूँ |
जग के अहाँ कारण - तारण छी, अहीं नाव के अब पतवार बनूँ ||
अब द्वार कतय हम जाई जतय, अहीं हमरा अब मंजूर करू |
बल, बुद्धि, विवेक, ज्ञान और धन सँ कोष हमर भरपूर करू ||४ ||
हम थाकि गेलौं, भटकैत- भटकैत, जग के जंजाल - जाल में माँ |
नहिं कोनो साथी, संबंधी अछि, हमर अब एहि हाल में, माँ ||
बड़ कष्ट उठोलौं हे अम्बा, बस , और ने अब मजबूर करू |
अवलम्ब अहीं हे जगदम्बा, माँ, संतानक दुःख दूर करू ||५ ||
अवलम्ब अहीं हे जगदम्बा, माँ, संतानक दुःख दूर करू |
बल, बुद्धि, विवेक, ज्ञान और धन सँ कोष हमर भरपूर करू ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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